शुक्रवार, 12 मार्च 2021

[जनवादी गीत संग्रह - 'लाल स्याही के गीत' ] 3-ब्रजमोहन के गीत



             एक 

चले चलो दिलों में घाव ले भी चले चलो 

चलो लहुलहान पांव ले भी चले चलो |

चलो की आज साथ साथ चलने की जरूरतें 

चलो की ख़त्म हो ना जाएँ जिंदगी की हसरतें |


जमीन ख्वाब जिंदगी यकीन सबको बांटकर 

वो चाहते हैं बेबसी में आदमी झुकाये सर |

वो चाहते हैं जिंदगी हो रौशनी से बेखबर 

वो एक एक करके अब जला रहे हैं हर शहर| 

जले हुए घरों के ख्वाब ले भी चले चलो |


वो चाहते हैं बांटना दिलों के सारे बलबले 

वो चाहते हैं बांटना ये जिंदगी के काफिले |

वो चाहते हैं ख़त्म हों उम्मीद के ये सिलसिले 

वो चाहते हैं गिर सकें ना लूट के ये सब किले |

सवाल ही है अब जबाब ले के भी चले चलो |


वो चाहते हैं जातियों की बोलियों की फूट हो 

वो चाहते हैं धर्म को तबाहियों की छूट हो 

वो चाहते हैं जिंदगी में हो फरेब लूट हो 

वो चाहते हैं जिस तरह भी हो सके ये लूट हो |

सिरों पे जो बची है छांव ले के भी चले चलो |

चले चलो दिलों में घाव ले के भी चले चलो |

                     दो 

सर पे आसमान हो सकून का सकून का

पांव के तले जमीन हो जो प्यार दे सके |

हवाएं हों जो दुःख चुरा के मुस्करा के उड़ सकें 

हरेक पेड़ छांव दे सके करार दे सके 

अगर जो ऐसा हो सके तो इस जहां को फूँक दो |

लहू से तरबतर हरेक आसमान को फूँक दो |


पंछियों के कारवां उड़ें तो फिर थामें नहीं 

दूर तक शिकारियों का खौफ हो ना जाल हो 

सफर न हो उदासियों का जंगलों के रास्ते 

किसी के स्वप्न टूटने की ना कोई मिसाल हो 

 अगर जो ऐसा हो सके तो इस जहां को फूँक दो|


फसल से बात करके घर में सुख से सोये हर किसान 

चिमनियों की आग में जले ना चाहतों के  घर

सभी के होठ गए उठें हरेक दिल में गीत हो 

किसी की आँख में ना दुश्मनी का हो जहर |

अपने मन भर सुबह के सूर्य की उजास को 

नयी इमारतों की नींव में जो सर बिछा सके 

जिंदगी को मौत से अगर जो तुम बचा सको 

जलाओ ये जहां अगर नया जहां बना सको |


नया जहां बना सको तो इस जहां को फूँक दो |

लहू से तरबतर हरेक आसमान को फूँक दो ||

                     तीन 

किसने चाहा था सूरज दिखाई ना दे 

किसने चाहा था जीवन सुनाई ना दे 

किसने चाहा था ये क़त्ल होते रहें 

और इंसान अपनी गवाही ना दे |


किसकी आँखों में थी नींव दीवार की 

किसके सीने में घर थे बिखरते हुए 

किसके हाथों में किस किसकी बंदूक थी 

किसने देखा है अपने को मरते हुए 

किसने चाहा था रिश्तों के पिंजरें बनें 

कोई पिंजरा किसी को दिखाई ना दे |


कुछ भी सोचें बिना कुछ भी समझे बिना 

चल पड़े हम भला कौन सी राह पर 

नफरतों का खुदा तो सलामत ही है 

हम जलाने में मसरूफ हैं अपने घर 

वक्त ने हाथ काटे हैं किसके बता 

भाई के हाथ में हाथ भाई ना दे |


जो पराये हैं वो कब किसी के हुए 

पर जो अपने हैं उनको ये क्या गया 

सबकी चाहें मारी सबके सपनें लुटे 

सबके सीने में एक आदमी खो गया 

मरने वालों पे भी कोई रो ना सके 

कोई दुनिया को ऐसी तबाही ना दे |

चार 

चारों तरफ़ बुनें बैठी हैं


गर्म हवाएँ ताना-बाना

कोयल छोड़ सुरीला गाना...


गा सकती है

तो मैं केवल आज़ादी के गीत सुनूँगा

वरना सबसे पहले

धड़ से गरदन तेरी अलग करूँगा


तूने सीखे गीत सुरीले, तू क्या जाने क्या होता है

भूख माँगती है जब खाना...


मन बहलाने

औ’ फुसलाने का मौसम अब चला गया है

सुर के छल-कपटों में

जाने कितना जीवन छला गया है

आग लगी है मन में ऐसी — धू-धू करके जलते सपने

अपना ही घर है बेगाना...

हरिया खेतिहर की औरत नंगी मरी मिली,

सबने देखा खेतों की भी आँखें डरी मिलीं...


ज़मींदार के नाख़ूनों को सबने पहचाना

नकली आँख पड़ी है, था पटवारी भी काना

और दरोगा के जूतों की छापें हरी मिलीं...


बल्लम धँसा हुआ छाती में सूखा हुआ लहू

मरने तक जी तोड़ लड़ी होगी हरिया की बहू

जिसने उसको देखा उसकी आँखें जली मिलीं...


पांच 

तू और मैं तो भाई इक खेत की फ़सल हैं

कन्धों पर तेरे-मेरे इक जैसे ही तो हल हैं ...


तू मेरा घर जलाए या मैं जलाऊँ तेरा

अपनी ही बस्तियों में होना है सब अन्धेरा

इक आग की लपट हम इक झील के कँवल हैं ...


वो कौन है जो हम को दुश्मन बनाए जाता

ताक़त को जो हमारी दीमक-सा खाए जाता

आँखों में किसकी जंगल औ’ भेड़ियों के छल हैं ...


अपनी हँसी-ख़ुशी और सुख-दुख हैं एक जैसे

हम एक-दूसरे के दुश्मन हैं भला कैसे

दुनिया के बाजुओं का मैं और तू ही बल हैं ...

 


 


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