8-मजाज लखनवी
एक
हिजाब ऐ फ़ितनापरवर अब उठा लेती तो अच्छा था |
खुद अपने हुस्न को परदा बना लेती तो अच्छा था |
तेरी नीची नज़र खुद तेरी अस्मत की मुहाफ़िज़ है
तू इस नश्तर की तेज़ी आजमा लेती तो अच्छा था |
तेरी चीने ज़बी ख़ुद इक सज़ा कानूने-फ़ितरत में
इसी शमशीर से कारे-सज़ा लेती तो अच्छा था |
ये तेरा जर्द रुख, ये खुश्क लब, ये वहम, ये वहशत
तू अपने सर से ये बादल हटा लेती तो अच्छा था |
दिले मजरूह को मजरूहतर करने से क्या हासिल
तू आँसू पोंछ कर अब मुस्कुरा लेती तो अच्छा था |
तेरे माथे का टीका मर्द की किस्मोत का तारा है
अगर तू साजे बेदारी उठा लेती तो अच्छा था |
तेरे माथे पे ये आँचल बहुत ही खूब है लेकिन
तू इस आँचल से एक परचम बना लेती तो अच्छा था।
दो
बोल ! अरी, ओ धरती बोल !
राज सिंहासन डाँवाडोल !
बादल, बिजली, रैन अंधियारी,
दुख की मारी परजा सारी
बूढ़े, बच्चे सब दुखिया हैं,
दुखिया नर हैं, दुखिया नारी
बस्ती-बस्ती लूट मची है,
सब बनिये हैं सब व्यापारी !
बोल अरी, ओ धरती बोल ! !
राज सिंहासन डाँवाडोल!
कलजुग में जुग के रखवाले
चांदी वाले सोने वाले |
देशी हों या परदेशी हों
नीले पीले गोर काले |
मक्खी भुनगे भून भून करते
ढूंढे हैं मकड़ी के जाले |
बोल अरी, ओ धरती बोल !
राज सिंहासन डाँवाडोल !!
तीन
मज़दूर हैं हम
मेहनत से ये माना चूर हैं हम
आराम से कोसों दूर हैं हम
पर लड़ने पर मजबूर हैं हम|
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम |
गो आफ़त ओ ग़म के मारे हैं
हम ख़ाक नहीं हैं तारे हैं
इस जग के राज-दुलारे हैं |
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम |
बनने की तमन्ना रखते हैं
मिटने का कलेजा रखते हैं
सरकश सर ऊँचा रखते हैं|
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम|
हर चन्द कि हैं अदबार में हम
कहते हैं खुले बाज़ार में हम
हैं सब से बड़े संसार में हम |
मज़दूर में हम मज़दूर हैं हम |
जिस सम्त बढ़ा देते हैं क़दम
झुक जाते हैं शाहों के परचम
सावन्त हैं हम बलवन्त हैं हम |
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम |
गो जान पे लाखों बार बनी
कर गुज़रे मगर जो जी में ठनी
हम दिल के खरे बातों के धनी|
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम|
हम नज़्म-ए-कुहन को ढा देंगे
हम अर्ज़-ओ-समा को हिला देंगे
हम क्या हैं कभी दिखला देंगे |
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम |
हम जिस्म में ताक़त रखते हैं
सीनों में हरारत रखते हैं
हम अज़्म-ए-बग़ावत रखते हैं |
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम |
जिस रोज़ बग़ावत कर देंगे
दुनिया में क़यामत कर देंगे
ख़्वाबों को हक़ीक़त कर देंगे |
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम |
हम क़ब्ज़ा करेंगे दफ़्तर पर
हम वार करेंगे क़ैसर पर
हम टूट पड़ेंगे लश्कर पर |
मज़दूर हैं हम मज़दूर हैं हम|
चार
सरमाएदारी
कलेजा फुक रहा है और जबाँ कहने से आरी है
बताऊँ क्या तुम्हें क्या चीज यह सरमाएदारी है
यह वह आँधी है जिसके रो में मुफलिस का नशेमन है,
यह वह बिजली है जिसकी जद में हर दहक़ां का खरमन है
यह अपने हाथ में तहजीब का फानूस लेती है,
मगर मजदूर के तन से लहू तक चूस लेती है
यह इंसानी बला खुद खूने इंसानी की गाहक है,
वबा से बढकर मुहलक, मौत से बढकर भयानक है।
न देखें हैं बुरे इसने, न परखे हैं भले इसने,
शिकंजों में जकड कर घोंट डाले है गले इसने।
कहीं यह खूँ से फरदे मालोजर तहरीर करती है,
कहीं यह हड्डियाँ चुन कर महल तामीर करती है।
गरीबों का मुकद्दस खून पी-पी कर बहकती है
महल में नाचती है रक्सगाहों में थिरकती है।
[ जनवादी गीत संग्रह - 'लाल स्याही के गीत' ]
[ जनवादी गीत संग्रह - 'लाल स्याही के गीत' ]


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