खोद खाद धरती सहै, काट कूट बनराय | कुटिल वचन साधु सहै, और से सहा न जाय ||
कस्तूरी कुँडल बसै, मृग ढ़ुढ़े बब माहिँ. ऎसे घटि घटि राम हैं, दुनिया देखे नाहिँ..
माला फेरत जुग गाया, मिटा ना मन का फेर. कर का मन का छाड़ि, के मन का मनका फेर..
माया मुई न मन मुआ, मरि मरि गया शरीर. आशा तृष्णा ना मुई, यों कह गये कबीर ||
प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय राजा परजा जेहि रूचै, सीस देइ ले जाय।।
जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं।
प्रेम गली अति साँकरी, तामें दो न समाहिं।।
जिन ढूँढा तिन पाइयाँ, गहरे पानी पैठ।
मैं बपुरा बूडन डरा, रहा किनारे बैठ।।
जंत्र - मंत्र सब झूठ है, मत भरमो जग कोय | सार शब्द जानै बिना, कागा हंस न होय ||
कबीर गर्ब न कीजिये, इस जीवन की आस | टेसू फूला दिवस दस, खंखर भया पलास ||
अंषड़ियां झाईं पड़ीं, पंथ निहारि-निहारि । जीभड़िंयाँ छाला पड़्या, राम पुकारि-पुकारि ॥
1
झीनी झीनी बीनी चदरिया |
काहे कै ताना काहे कै भरनी,
कौन तार से बीनी चदरिया |
इडा पिङ्गला ताना भरनी,
सुखमन तार से बीनी चदरिया |
आठ कँवल दल चरखा डोलै,
पाँच तत्त्व गुन तीनी चदरिया |
साँ को सियत मास दस लागे,
ठोंक ठोंक कै बीनी चदरिया |
सो चादर सुर नर मुनि ओढी,
ओढि कै मैली कीनी चदरिया|
दास कबीर जतन करि ओढी,
ज्यों कीं त्यों धर दीनी चदरिया |
2
साधो, देखो जग बौराना ।
साँची कही तो मारन धावै, झूठे जग पतियाना ।
हिन्दू कहत,राम हमारा, मुसलमान रहमाना ।
आपस में दौऊ लड़ै मरत हैं, मरम कोई नहिं जाना ।
बहुत मिले मोहि नेमी, धर्मी, प्रात करे असनाना ।
आतम-छाँड़ि पषानै पूजै, तिनका थोथा ज्ञाना ।
आसन मारि डिंभ धरि बैठे, मन में बहुत गुमाना ।
पीपर-पाथर पूजन लागे, तीरथ-बरत भुलाना ।
माला पहिरे, टोपी पहिरे छाप-तिलक अनुमाना ।
साखी सब्दै गावत भूले, आतम खबर न जाना ।
घर-घर मंत्र जो देन फिरत हैं, माया के अभिमाना ।
गुरुवा सहित सिष्य सब बूढ़े, अन्तकाल पछिताना ।
बहुतक देखे पीर-औलिया, पढ़ै किताब-कुराना ।
करै मुरीद, कबर बतलावैं, उनहूँ खुदा न जाना ।
हिन्दू की दया, मेहर तुरकन की, दोनों घर से भागी ।
वह करै जिबह, वो झटका मारे, आग दोऊ घर लागी ।
या विधि हँसत चलत है, हमको आप कहावै स्याना ।
कहै कबीर सुनो भाई साधो, इनमें कौन दिवाना ।
3
मन मस्त हुआ तब क्यों बोलै।
हीरा पायो गाँठ गँठियायो, बार-बार वाको क्यों खोलै।
हलकी थी तब चढी तराजू, पूरी भई तब क्यों तोलै।
सुरत कलाली भई मतवाली, मधवा पी गई बिन तोले।
हंसा पायो मानसरोवर, ताल तलैया क्यों डोलै।
तेरा साहब है घर माँहीं बाहर नैना क्यों खोलै।
कहै 'कबीर सुनो भई साधो, साहब मिल गए तिल ओलै॥
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