बशीर बद्र
एक
यूँ ही बे-सबब न फिरा करो, कोई शाम घर में भी रहा करो |
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो |
कोई हाथ भी न मिलाएगा, जो गले मिलोगे तपाक से
ये नये मिज़ाज का शहर है, ज़रा फ़ासले से मिला करो |
अभी राह में कई मोड़ हैं, कोई आयेगा कोई जायेगा
तुम्हें जिसने दिल से भुला दिया, उसे भूलने की दुआ करो |
मुझे इश्तहार-सी लगती हैं, ये मोहब्बतों की कहानियाँ
जो कहा नहीं वो सुना करो, जो सुना नहीं वो कहा करो |
कभी हुस्न-ए-पर्दानशीं भी हो ज़रा आशिक़ाना लिबास में
जो मैं बन-सँवर के कहीं चलूँ, मेरे साथ तुम भी चला करो |
ये ख़िज़ाँ की ज़र्द-सी शाम में, जो उदास पेड़ के पास है
ये तुम्हारे घर की बहार है, इसे आँसुओं से हरा करो |
नहीं बे-हिजाब वो चाँद-सा कि नज़र का कोई असर नहीं
उसे इतनी गर्मी-ए-शौक़ से बड़ी देर तक न तका करो |
दो
अच्छा तुम्हारे शहर का दस्तूर हो गया |
जिसको गले लगा लिया वो दूर हो गया |
कागज में दब के मर गए कीड़े किताब के
दीवाना बे पढ़े-लिखे मशहूर हो गया |
महलों में हमने कितने सितारे सजा दिये
लेकिन ज़मीं से चाँद बहुत दूर हो गया |
तन्हाइयों ने तोड़ दी हम दोनों की अना
आईना बात करने पे मज़बूर हो गया |
सुब्हे-विसाल पूछ रही है अज़ब सवाल
वो पास आ गया कि बहुत दूर हो गया |
कुछ फल जरूर आयेंगे रोटी के पेड़ में
जिस दिन तेरा मतालबा मंज़ूर हो गया |
तीन
दिखला के यही मंज़र बादल चला जाता है |
पानी से मकानों पे कैसे लिखा जाता है |
उस मोड़ पे हम दोनों कुछ देर बहुत रोये
जिस मोड़ से दुनिया को एक रास्ता जाता है |
दोनों से चलो पूछें उसको कहीं देखा है
इक काफ़िला आता है इक काफ़िला जाता है |
दुनिया में कहीं इनकी तालीम नहीं होती
दो चार किताबों को घर में पढ़ा जाता है |
चार
आँखों में रहा दिल में उतरकर नहीं देखा |
कश्ती के मुसाफ़िर ने समन्दर नहीं देखा |
बेवक़्त अगर जाऊँगा, सब चौंक पड़ेंगे
इक उम्र हुई दिन में कभी घर नहीं देखा |
जिस दिन से चला हूँ मेरी मंज़िल पे नज़र है
आँखों ने कभी मील का पत्थर नहीं देखा |
ये फूल मुझे कोई विरासत में मिले हैं,
तुमने मेरा काँटों-भरा बिस्तर नहीं देखा |
पत्थर मुझे कहता है मेरा चाहने वाला
मैं मोम हूँ उसने मुझे छूकर नहीं देखा |
पांच
हमारा दिल सवेरे का सुनहरा जाम हो जाए |
चरागों की तरह आँखें जलन जब शाम हो जाए |
मैं खुद भी एहतियातन उस गली से काम गुजरता हूँ
कोई मासूम क्यों मेरे लिए बदनाम हो जाए |
अजब हालात ये यूँ दिल का सौदा हो गया आखिर
मौहब्बत की हवेली जिस तरह नीलाम हो जाए |
समंदर के सफर में इस तरह आवाज दो हमको
हवाएं तेज हों और कश्तियों में शाम हो जाए |
मुझे मालूम है उसका ठिकाना फिर कहाँ होगा
परिंदा आसमान छूने में जब नाकाम हो जाए |
उजाले अपनी यादों के हमारे साथ रहने दो
ना जाने जिंदगी की किस गली में शाम हो जाए |
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