सोमवार, 12 अप्रैल 2021

जनवादी गीत संग्रह : 'लाल स्याही के गीत' 25- सर्वेश्वर दयाल सक्सेना



सर्वेश्वर दयाल सक्सेना

         

 एक 

पाठशाला खुला दो महाराज

मोर जिया पढ़ने को चाहे!


आम का पेड़ ये

ठूंठे का ठूंठा

काला हो गया

हमरा अंगूठा


यह कालिख हटा दो महाराज

मोर जिया लिखने को चाहे

पाठशाला खुला दो महाराज

मोर जिया पढ़ने को चाहे!


’ज’ से जमींदार

’क’ से कारिन्दा

दोनों खा रहे

हमको जिन्दा


कोई राह दिखा दो महाराज

मोर जिया बढ़ने को चाहे

पाठशाला खुला दो महाराज

मोर जिया पढ़ने को चाहे!


अगुनी भी यहाँ

ज्ञान बघारे

पोथी बांचे

मन्तर उचारे


उनसे पिण्ड छुड़ा दो महाराज

मोर जिया उड़ने को चाहे !

पाठशाला खुला दो महाराज

मोर जिया पढ़ने को चाहे!

               दो 

अजनबी देश है यह, जी यहाँ घबराता है

कोई आता है यहाँ पर न कोई जाता है |


जागिए तो यहाँ मिलती नहीं आहट कोई,

नींद में जैसे कोई लौट-लौट जाता है |


होश अपने का भी रहता नहीं मुझे जिस वक्त

द्वार मेरा कोई उस वक्त खटखटाता है |


शोर उठता है कहीं दूर क़ाफिलों का-सा

कोई सहमी हुई आवाज़ में बुलाता है |


देखिए तो वही बहकी हुई हवाएँ हैं,

फिर वही रात है, फिर-फिर वही सन्नाटा है|


हम कहीं और चले जाते हैं अपनी धुन में

रास्ता है कि कहीं और चला जाता है |


दिल को नासेह की ज़रूरत है न चारागर की

आप ही रोता है औ आप ही समझाता है ।


                      तीन 

जारी है-जारी है

अभी लड़ाई जारी है।


यह जो छापा तिलक लगाए और जनेऊंधारी है

यह जो जात पांत पूजक है यह जो भ्रष्टाचारी है

यह जो भूपति कहलाता है जिसकी साहूकारी है

उसे मिटाने और बदलने की करनी तैयारी है।

जारी है-जारी है

अभी लड़ाई जारी है।


 

यह जो तिलक मांगता है, लडके की धौंस जमाता है

कम दहेज पाकर लड़की का जीवन नरक बनाता है

पैसे के बल पर यह जो अनमोल ब्याह रचाता है

यह जो अन्यायी है सब कुछ ताकत से हथियाता है

उसे मिटाने और बदलने की करनी तैयारी है।

जारी है-जारी है

अभी लड़ाई जारी है।


 

यह जो काला धन फैला है, यह जो चोरबाजारी हैं

सत्ता पाँव चूमती जिसके यह जो सरमाएदारी है

यह जो यम-सा नेता है, मतदाता की लाचारी है

उसे मिटाने और बदलने की करनी तैयारी है।

 

जारी है-जारी है

अभी लड़ाई जारी है।



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