महमूद मेरठी
एक - संगठन गीत
उम्मीद की किरन है आशा का एकतारा |
ये अंजुमन हमारी ये संगठन हमारा ||
हम कारे दिलनवाजी अंजाम दे रहे हैं,
संसार को जनू का पैगाम दे रहे हैं |
फितरत का है तकाजा दिल का है ये इशारा|
ये अंजुमन हमारी ये संगठन हमारा |
एक हम ही आशना हैं दस्तूर के सफ़र के,
सो बार जा चुके हैं हम आग से गुजर के |
शोलों ने भी दिया है गुलजार का नजारा
ये अंजुमन हमारी ये संगठन हमारा |
गुलशन में आशियाँ की तामीर यूँ भी की है,
बातिल को हर कदम पर हमने शिकस्त दी है |
हमने दिया है एक एक मजलूम को सहारा
ये अंजुमन हमारी ये संगठन हमारा |
वो जोश है कि दिल में फिर होसलें पाले हैं,
यां जब हम चले हैं कुछ इस तरह चले हैं |
चलती है बादलों में जैसे पवन की धारा ,
ये अंजुमन हमारी ये संगठन हमारा ||
आवाज को हमारी जब साज मिल गया है,
धरती दहल गयी है आकाश हिल गया है |
गूंजा है फिर फिजां में महरो वफ़ा का नारा
ये अंजुमन हमारी ये संगठन हमारा |
माना की जिंदगी में हर सिम्त तीरगी है,
हमने वफ़ा की कश्ती मौजों को सोंप दी है |
हिम्मत ये कह रही मिल जायेगा किनारा
ये अंजुमन हमारी ये संगठन हमारा |
दो
राहबर बनायेंगे न रहनुमा बनायेंगे,
रास्ते के पेच-ओ-ख़म ही रास्ता दिखायेंगे |
अब निगार-ए-खाना-ए-दिल में नहीं कोई सनम,
अब किसी की जुल्फ के अफई ना सर उठायेंगे |
क्या सुजुदे शोक की मंजिल नजर से उठ गयी,
क्या कदम- कदम पर अब वो मरहले न आयेंगे |
वाय मयकशी की तेरा एतबार उठ गया,
हम समझ रहे थे अब ना कदम डगमगायेंगे |
तोड़कर 'महमूद'हम एक दिन कफस की तीलियाँ '
फिर कफस की तीलियों से आशिंया बनायेंगे |
तीन
वो ही आरजू वो ही जुस्तजू वो ही कशमकश है जो कम नहीं
कभी दिल की चोटों में दर्द सा कभी फिकरे सोजो अलम नहीं |
मुझे दे तो जौके नजर वो दे तुझे हर मुकाम से देख लूँ
के पसंद मेरे मिजाज को ये तजाये दे दैरो हरम नहीं |
यहाँ बच के चल मेरे हमसफ़र कहीं मुस्करा के ना लूट लें
ये मेरे शहर के ग़जाल हैं तेरे बुतकदे के सनम नहीं |
वो ही रबते बाहम का सिलसिला चलो छोड़ो तुमंने कता किया
ये अजाबो कहरो इताब क्यों जो निगाहें लुतफे करम नहीं |
करे खुद पै महमूद नाज क्या उसे दौरे-हाजिर ने क्या दिया?
जो शऊरे-शेरो सुखन मिला तो मताऐ लौहे कलम नहीं |
- महमूद मेरठी
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