बुधवार, 14 अप्रैल 2021

हमारे प्रतिनिधि कवि : 27-निदा फाजली

 





निदा फाजली 

एक 

कभी किसी को मुकम्मल जहाँ नहीं मिलता |

कहीं ज़मीं तो कहीं आसमाँ नहीं मिलता |

 

बुझा सका है भला कौन वक़्त के शोले

ये ऐसी आग है जिसमें धुआँ नहीं मिलता |


तमाम शहर में ऐसा नहीं ख़ुलूस न हो

जहाँ उमीद हो सकी वहाँ नहीं मिलता |


कहाँ चिराग़ जलायें कहाँ गुलाब रखें

छतें तो मिलती हैं लेकिन मकाँ नहीं मिलता |


ये क्या अज़ाब है सब अपने आप में गुम हैं

ज़बाँ मिली है मगर हमज़बाँ नहीं मिलता |


चिराग़ जलते ही बीनाई बुझने लगती है 

खुद अपने घर में ही घर का निशाँ नहीं मिलता |


जिसे भी देखिये वो अपने आप में गुम है

ज़ुबाँ मिली है मगर हमज़ुबा नहीं मिलता |


तेरे जहान में ऐसा नहीं कि प्यार न हो

जहाँ उम्मीद हो इस की वहाँ नहीं मिलता  |

दो 

गरज बरस प्यासी धरती पर फिर पानी दे मौला |

चिड़ियों को दाना, बच्चों को गुड़धानी दे मौला |


दो और दो का जोड़ हमेशा चार कहाँ होता है

सोच समझवालों को थोड़ी नादानी दे मौला |


फिर रोशन कर ज़हर का प्याला चमका नई सलीबें

झूठों की दुनिया में सच को ताबानी दे मौला |


फिर मूरत से बाहर आकर चारों ओर बिखर जा

फिर मंदिर को कोई मीरा दीवानी दे मौला |


तेरे होते कोई किसी की जान का दुश्मन क्यों हो

जीने वालों को मरने की आसानी दे मौला |

 तीन 


धूप में निकलो घटाओं में नहा कर देखो |

ज़िन्दगी क्या है किताबों को हटा कर देखो |


वो सितारा है चमकने दो यूँ ही आँखों में

क्या ज़रूरी है उसे जिस्म बनाकर देखो |


पत्थरों में भी ज़ुबाँ होती है दिल होते हैं

अपने घर की दर-ओ-दीवार सजा कर देखो |


फ़ासला नज़रों का धोखा भी तो हो सकता है

वो मिले या न मिले हाथ बढा़ कर देखो |

 चार 

दिल में ना हो ज़ुर्रत तो मोहब्बत नहीं मिलती

ख़ैरात में इतनी बड़ी दौलत नहीं मिलती |


कुछ लोग यूँ ही शहर में हमसे भी ख़फा हैं

हर एक से अपनी भी तबीयत नहीं मिलती |


देखा था जिसे मैंने कोई और था शायद

वो कौन है जिससे तेरी सूरत नहीं मिलती |


हँसते हुए चेहरों से है बाज़ार की ज़ीनत

रोने को यहाँ वैसे भी फुरसत नहीं मिलती |

   पांच :   दोहे 

सब की पूजा एक सी, अलग अलग हर रीत |

मस्जिद जाये मौलवी, कोयल गाये गीत |


पूजा घर में मूर्ती, मीरा के संग श्याम 

जितनी जिसकी चाकरी, उतने उसके दाम |


सीता, रावण, राम का, करें विभाजन लोग

एक ही तन में देखिये, तीनों का संजोग |


मिट्टी से माटी मिले, खो के सभी निशां

किस में कितना कौन है, कैसे हो पहचान |


मुम्बई मां है
कराची बिछुड़ा हुआ बेटा,
ना मैंने मां के सामने कभी तलवार उठाई है
ना मेरी मां कभी बन्दूक ताने रण में आई है
गलत है रेडियो
झूठी है सब अखबार की खबरें
ये कैसा शौरो हंगामा है ये कैसी लड़ाई है?
_ निदा फ़ाज़ली


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