अमरनाथ 'मधुर'
एक
काम के घन्टें दो बढ़ते हैं, मजदूरी का एक रुपैया
अच्छे दिन आये हैं भैया, अच्छे दिन आये हैं भैया |
चोर डाँटता कोतवाल को,थाने में पिट रहे सिपैया
अच्छे दिन आये हैं भैया, अच्छे दिन आये हैं भैया |
संस्कारी जासूस देख लो, देशभक्ति के गीत गवैया
अच्छे दिन आये हैं भैया, अच्छे दिन आये हैं भैया |
ऊँची बिल्डिंग खड़ी शान से, बुलडोजर से ढही मडैया
अच्छे दिन आये हैं भैया, अच्छे दिन आये हैं भैया |
गौभक्तों से पीछे रह गए, महोबा वाले खूब लड़ैया
अच्छे दिन आये हैं भैया, अच्छे दिन आये हैं भैया |
गाय पालता पहलू खां है पहलू खां को खा गयी गैया
अच्छे दिन आये हैं भैया, अच्छे दिन आये हैं भैया |
रोहित लटक गया फांसी पर दिल्ली में पिट गया कन्हैया
अच्छे दिन आये हैं भैया, अच्छे दिन आये हैं भैया |
ना नजीब का पता चला कुछ, रजधानी में रोती मैया
अच्छे दिन आये हैं भैया, अच्छे दिन आये हैं भैया |
जुमले फेंक रहा जादूगर, नाच जमूरे था था थैया
अच्छे दिन आये हैं भैया,अच्छे दिन आये हैं भैया |
दो
तुम भी पढ़ना सीख गये ये ठीक नहीं है |
पढ़कर लड़ना सीख गये ये ठीक नहीं है |
खड़े खड़े तुम तो चुपचाप पिटा करते थे
तुम भी जड़ना सीख गये ये ठीक नहीं है |
परम्पराओं का पहाड़ रास्ता रोके था,
तुम भी चढ़ना सीख गये ये ठीक नहीं है |
सदियों से सबसे तुमको पीछे रखा था
आगे बढ़ना सीख गये ये ठीक नहीं है |
धोखा, झूठ, फरेब हमारी ही पूंजी थी
तुम भी गढ़ना सीख गये ये ठीक नहीं है |
तुमको तो 'मंडेला' बनकर के जीना था
मगर मरे 'रोहित वेमुला' ठीक नहीं है |
तीन
'सरकारी कर्मचारियों का क्रान्ति गीत '
हर जोर जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है।
हम रूके नही हम झुके नही कहता इतिहास हमारा है।।
जब आजादी की जंग छिडी गॉंधी, सुभाष, नेहरू बोले,
जिसको आजादी प्यारी है, अपने बाजू का बल तोले|
शिक्षक,प्रशासक,फौजी सब छोडे नौकरियॉं सरकारी,
मजदूर मिलों से बाहर हों धरने की कर लें तैयारी|
ट्रेनें पटरी पर खडी रहें सरकारी चक्का जाम रहे,
हडताल रहेगी पूरी यह मालूम खास औ आम रहे|
गैरों की करें गुलामी हम गैरत को नही गवारा है।
हर जोर जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है।।
तन मन में लहर उठी ऐसी सब मचल उठे भारतवासी, मजदूर,किसान,वकील चले, जेले भरने चढने फॉंसी |
सरकारी ओहदेदारों ने सरकारी हुकुम नहीं माने,
गोरे बिफराये फिरते थे, हाथों में बन्दूकें थामें |
पर सबको धुन थी एक यही कुछ करेगें या मर जायेंगें,
चाहे जितनी कुर्बानी हो गोरे भारत से जायेंगें।
जो शीश चढे संगीनों पे उनमें सुमार हमारा |
हर जोर जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है।।
अग्रेंज देश से चले गये मिल गयी सभी को आजादी,
पॉंवों में हमारे ही क्यों है जंजीर गुलामी की बॉंधी ?
अब भी कानून पुराने हैं हक नहीं हम कुछ कहने का,
हक नहीं देश की पंचायत में विधि विधायक रहने का |
विधि के समक्ष समता,स्वतंत्रता सब कहने की बातें हैं,
जो कुछ पहले से मिला हुआ उसको लेने की घातें हैं |
मत देने का अधिकार भी बस लिखा रह जाता सारा है।
हर जोर जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है।
आजादी चोर लुटेरों को, हत्यारों, को बदकारों को,
आजादी कफन खसोटों को,बातिल बुजदिल गद्दारों को |
वे ही संसद में जाते हैं, वे ही कानून बनाते हैं,
सच बोलने वालों को अब भी सूली पर वही चढाते हैं |
हडताल प्रदशन धरने को विद्रोह बताया जाता है,
हक़ माँगने वाला सरेआम गोली से उडाया जाता है |
कानून बघेरे बॉंच रहे मुन्सिफ का चलता आरा है।
हर जोर जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है।।
चुप रहने वालो मुंह खोलो कैसे आजाद हुये हैं हम,
गददारों को गददी देकर केवल बरबाद हुये हैं हम |
कितने काले कानून बने हमसे बिन पूछे बिन जाने,
वे संसद में हम बाहर हैं हम माने भी तो क्यों मानें ?
हम मॉंग मॉंग कर हार चुके कितने दिन मॉंगें जायेंगें,
अब हम ससंद में बैठेंगें हम ही कानून बनायेगें |
सबके हक में राशन शासन का करना अब बॅंटवारा है।
हर जोर जुल्म की टक्कर में संघर्ष हमारा नारा है।।
चार
हम कोई सरकार नहीं हैं, उसके हिस्सेदार नही हैं।
फिर क्यूँ प्रश्न हमारे से है? हम तो जिम्मेदार नहीं हैं।
वादा नहीं किया था हमने
नौकरियाँ दो करोड़ देंगे ।
अगर हाथ नापाक उठेगा
तो हम हाथ मरोड़ भी देंगे।
जो बिरयानी खाकर आयें, हम वो रिश्तेदार नहीं हैं।
फिर क्यूँ प्रश्न हमारे से है? हम तो जिम्मेदार नहीं हैं।
हम तो बुलेट ट्रेन में बैठे
घूम रहे स्मार्ट सिटी हैं ।
तुम कहते हो हम लोगों की
इक जुगाड़ में पड़ी फटी है।
मिग,मिराज,औ जैगुआर पर,अपना अख्तियार नहीं है।
फिर क्यूँ प्रश्न हमारे से है? हम तो जिम्मेदार नहीं हैंं ।
काला धन वापस आया है,
गंगा की हो गयी सफाई ।
बाकि जो कुछ बचा हुआ है
साफ करेंगे मेहुल भाई ।
रमता जोगी राम फकीरा सेवक चौकीदार नहीं हैं।
फिर क्यूँ प्रश्न हमारे से है? हम तो जिम्मेदार नहीं हैं।
पांच
पढ़ रही हैं बेटियाँ, बढ़ रही हैं बेटियाँ
रोकने वालों से जंग लड़ रही हैं बेटियाँ |
गलियाँ दे,लाठियाँ ले, रोकने थे वे चले
लाठियों के सामने ही अड़ रही हैं बेटियाँ |
द्रोपदी,सीता,अहिल्या पूजने वालों सुनो
बन के मैरिकोम मुक्का जड़ रही हैं बेटियाँ |
तोड़ देंगी गढ़ सभी,वो तोड़ देंगी मठ सभी
अब मठाधीशों पे भारी पड़ रहीं हैं बेटियाँ |
फूल,कलियाँ जो समझकर नोचने में हैं लगे
शूल बन आँखों में उनकी गढ़ रहीं हैं बेटियाँ |
छ:
रुजगार की बातें अभी नहीं,अधिकार की बातें अभी नहीं|
सरकार परेशां है अपनी, सरकार की बातें अभी नहीं |
उत्तर में चीन दबाता है,पश्चिम में पाक चिढाता है
अमरीका बैठा दूर हमें दोनों से ही लड़वाता है |
हम एक शीश के बदले में सौ शीश काट कर ले आते
लेकिन क्या करें लड़ें कैसे नेकर ढीला हो जाता है |
पहले ढीला नेकर कस लें,सलवार की बातें अभी नहीं
सरकार परेशां है अपनी, सरकार की बातें अभी नहीं |
मसलें कितने हैं बड़े बड़े जिनमें उलझी हैं सरकारें
लेकर आजादी मानेगें, लगता पढ़ने वाले सारे |
सरकार पढाई बंद करे औ' बंद करे पढ़ने वाले
या सरहद से ले बुला टैंक, भेजे स्कूलों में सारे |
कुछ इंतजाम करना होगा, इनकार की बातें अभी नहीं |
सरकार परेशां है अपनी, सरकार की बातें अभी नहीं |
कुछ लव जेहादी घूम रहे संस्कृति पर भारी खतरा
बजरंग दाल टोली देती है,हर होटल,पारक पर पहरा |
सरकारों की जिम्मेदारी ऐसे वीरों का मान रखे
जो देख रहे किस लड़की का किस लडके से चक्कर गहरा |
नफ़रत चाहे जितनी कर लें पर प्यार की बातें अभी नहीं|
सरकार परेशां है अपनी, सरकार की बातें अभी नहीं |
आपात स्थिति है देखो, बाबाओं पर संकट भारी
सबको भेजेगी जेल अदालत की लगती ये तैयारी |
हर बाबा से, हर डेरे से माँगा जाएगा सब हिसाब
कितनी हत्याएं की तुमने, लूटी अस्मत कितनी सारी|
पहलें दे दें इनका हिसाब, प्रचार की बातें अभी नहीं |
सरकार परेशां है अपनी, सरकार की बातें अभी नहीं |
बच्चें मर जाएँ बिना दवा क्या पड़ी तुम्हें चिल्लाने की ?
इंसानों से ज्यादा जिम्मेदारी है गाय बचाने की |
गौमूत्र पियेंगे भक्त सभी तब तो होगा उनका ईलाज
अपनी भी जिम्मेदारी है ये बात उन्हें समझाने की |
ये अटल फैसला है अपना, तकरार की बातें अभी नहीं |
सरकार परेशां है अपनी, सरकार की बातें अभी नहीं |
तुम कहते हो सरकारों का है काम वो जनता को देखें
ना भावनाओं की भट्टी में, वो वोटों की रोटी सेंकें |
सबको मिल जाए हवा,दवा,रोजी,रोटी,कपड़ा,मकान
मंदिर जाएँ या हम मस्जिद, वो ना रोके,वो ना टोके |
बेकार की बातें हैं सब ये, बेकार की बातें अभी नहीं |
सरकार परेशां है अपनी, सरकार की बातें अभी नहीं |
मारें कलबुर्गी जायेंगे, मारे जायेंगे पनसारे
गौरी को घुसकर मारेंगे उसके ही घर में हत्यारे |
खामोश बैठने वालो तुम ये कान खोल कर सुन लेना
जो एक साथ मिल ना बोले, मारो जाओगे तुम सारे |
ये करो फैसला करना क्या ?सरकार की बातें अभी नहीं
सरकार परेशा है अपनी , सरकार की बातें अभी नहीं |
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