जब दूर रहेंगे दोनों ही, ना पास कोई भी आएगा |
रिश्तों की सारी गर्माहट
किश्तों में घटती जायेगी
जो अब थोड़ी सी दूरी है
मीलों तक बढती जायेगी
फागुन के गुण अवगुण होगें सावन भी खूब रुलाएगा |
जब दूर रहेगें दोनों ही ना पास कोई भी आएगा |
मौसम की मार महामारी
जीवन जीने की दुश्वारी
अलगाव सहन होगा कैसे
दुःख क्या कम पहले से भारी?
थक गए बहुत बोझा ढोते, ये बोझा कौन उठाएगा ?
जब दूर रहेगें दोनों ही ना पास कोई भी आएगा |
अच्छे दिन आने वाले हैं
ये आस लिए दिन बीत गए
मन की कोठरियां में रखे
चाहत के सब घट रीत गए
लुढ़का कर खाली घट कोई, फिर क्या कुछ इनसे पायेगा ?
जब दूर रहेगें दोनों ही ना पास कोई भी आएगा |
-अमरनाथ 'मधुर'
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें