बिजेंद्र सिंह परवाज
मैं सोच रहा हूँ
आँखों में आंसू अंतर में पीर लिए |
जाने कब तक मानव का पग लाशों के ढेरों पर होगा ?
जाने कब तक अंधियारे का अधिकार सवेरों पर होगा ?
कब तक श्रमिकों के श्रम का फल धनवान उड़ाते जाएंगे ?
कब तक किसान उपवास लिए निज फसल उगाते जाएंगे?
कब तक भटकेगा मनुज यहां अपनी फूटी तकदीर लिए ?
मैं सोच रहा हूँ आँखों में आंसू, अंतर में पीर लिए |
कब तक सुन्दरतम चेहरों पर चिंता के चिन्ह उभरने हैं ?
कब तक मुस्कानों के दर पर अश्कों को धरने धरने हैं ?
कब तक आशा की देवी का घेराव करेगी मायूसी ?
कब तक पनपेगी धरती पर अन्याय पाप की जासूसी ?
कब तक बहलेगा धनिक यहां दानवता की तासीर लिए ?
मैं सोच रहा हूँ आँखों में आंसू, अंतर में पीर लिए |
कब तक नफ़रत के सागर में किश्तियाँ प्रेम की डूबेंगी ?
कब तक दुष्कर्मों से आखिर मानव की नस्लें ऊबेंगी ?
जाने कब तक वे शान्ति सुमन रण ज्वाला में जलते जाएँ ?
जिनके खिलने का ध्येय यही धरती का आँगन महकाएं |
कब तक बहलेगा यह समाज अन्यायों की तस्वीर लिए ?
मैं सोच रहा हूँ आँखों में आंसू, अंतर में पीर लिए |
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