मंगलवार, 20 अप्रैल 2021

जनवादी गीत संग्रह : 'लाल स्याही के गीत' 31-बिजेंद्र सिंह परवाज

 




बिजेंद्र सिंह परवाज 


मैं सोच रहा हूँ 

आँखों में आंसू अंतर में पीर लिए |


जाने कब तक मानव का पग लाशों के ढेरों पर होगा ?

जाने कब तक अंधियारे का अधिकार सवेरों पर होगा ?

कब तक श्रमिकों के श्रम का फल धनवान उड़ाते जाएंगे  ?

कब तक किसान उपवास लिए निज फसल उगाते जाएंगे?


कब तक भटकेगा मनुज यहां अपनी फूटी तकदीर लिए ?

मैं सोच रहा हूँ आँखों में आंसू, अंतर में पीर लिए |



कब तक सुन्दरतम चेहरों पर चिंता के चिन्ह उभरने हैं ?

कब तक मुस्कानों के दर पर अश्कों को धरने धरने हैं ?

कब तक आशा की देवी का घेराव करेगी मायूसी  ?

कब तक पनपेगी धरती पर अन्याय पाप की जासूसी ?


कब तक बहलेगा धनिक यहां दानवता की तासीर लिए ?

मैं सोच रहा हूँ आँखों में आंसू, अंतर में पीर लिए |



कब तक नफ़रत के सागर में किश्तियाँ प्रेम की डूबेंगी ?

कब तक दुष्कर्मों से आखिर मानव की नस्लें ऊबेंगी ?

जाने कब तक वे शान्ति सुमन रण ज्वाला में जलते जाएँ ?

जिनके खिलने का ध्येय यही धरती का आँगन महकाएं |


कब तक बहलेगा यह समाज अन्यायों की तस्वीर लिए ?

मैं सोच रहा हूँ आँखों में आंसू, अंतर में पीर लिए |


1 टिप्पणी: