गुरुवार, 17 फ़रवरी 2011

विरासत-इक भूला बिसरा नाम..'निश्तर खानकाही'

              












निश्तर खानकाही'


  बच्चे डरे-डरे से यह क्या पूछते हैं आज
अखबार के हिसाब से कितने मरे हैं आज |


हंस-हंस के यूँ तो सबसे मिला हूँ मगर ये क्या
... झूठी हंसी से होठ बहुत दुख रहे हैं आज   |


आतंक राजनीति की दुनिया का दास है
मालिक भी अपने दास से सहमे हुए हैं आज |



टायर कहीं फटे तो ये लगता है कुछ हुआ
आहट भी हो ज़रा सी तो हम कांपते हैं आज..|
                                                 अमित भारतीय अनन्त अमान   के सौजन्य से

2 टिप्‍पणियां:

  1. यथार्थ और सही अंदाज में बात कही है.

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  2. 'राम का अंतर्द्वंद' तो दिखाई नहीं दिया बाकी मेरे ब्लाग पर देखने की कृपा करें.

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