गुरुवार, 14 अप्रैल 2011

कविता - निर्मल गुप्त

   










लडकियॉं उदास हैं
लडकियॉं उदास हैं ,
अब वे कैसे खेलें खेल
उनके खेलन कीे हर जगह पर
अधिकार कर लिया है
उदंड लडकों की टोलियों ने,
लडकियॉं उदास हैं
पर वह अनन्त काल तक
भला उदास कैसे रहेंगी
 उनकी तो फितरत में है
हॅंसना ,खिलखिलााना
फुर्र से उड जाने वाली
कभी  अबालील
तो कभी
तितली में तब्दील हो जाना।
लडकियॉं उदास हैं,
पर वे नहीं हैं पराजिता
कोई लाख बॉंध डाले,
उनके परों को,
चाहेे बींध दे
उनके मनोभावों को
हिदायतों के नुकीले आलपिनों में,
वे आज नही तो कल
हॅंसेगी जरूर,खिलखिलायेगी भी
खिलन्दरी भी करेगी,
कुलॉंचे भी भरेगी।
लडकियॉं उदास हैं,
उनके मन के
अराजक वर्षा वनों में,
उमड रहे हैं जल प्रपात
कौन कब तक रोक पायेगा
उनके प्रवाह को
जल प्रलय बनकर
उनका कहर बरपाना तय है।
लडकियॉं उदास हैं,
तो सारी कायनात उदास है
जितनी जल्दी हो सके
ससम्मान लौटा दो उन्हें
उनके खेलने की जगह
खोल दो उनके परों को ,
भरनों दो उन्हें उन्मुक्त उडान,
लडकियॉं उदास हैं
तो समझ लो
यह कोई अच्छी खबर नहीं है।


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