
अवकाश का प्रार्थना पत्र
नम्र निवेदन करता हूँ मैं कुछ दिन का अवकाश मिले।
सुबह हुई और टिफिन उठाया बैठ गये बस में जाकर,
फिर भी दप्तर देर से पहुंचे ऐसा होता है अक्सर,
श्रीमती जी घर पर डॉंटे दप्तर में उपहास मिले।

इच्छाओं के मॉग पत्र सब दबा जरूरत के नीचे,
खींच रहे जीवन की गाडी रोनी सूरत को लेके ,
हॉंप रहे हैं तेज दौडते बस थोडी सी सॉंस मिले ।
दिल पर भारी बोझ हो जैसे तन मन ऐसा थका हुआ,
जैसे जाता बैल हो कोई परवशता में बिका हुआ,
खुशियॉं ढूंढे चारों कोने चारों बहुत उदास मिले ।
खाना दाना, नाच दिखाना, गाना पंछी का जीवन,
पिंजरे में भाता है तुमको, पर उसका भी करता मन,
खुली हवाओं में पर खोले उडने को आकाश मिले ।
अमरनाथ 'मधुर'
खाना दाना, नाच दिखाना, गाना पंछी का जीवन,
जवाब देंहटाएंपिंजरे में भाता है तुमको, पर उसका भी करता मन,
खुली हवाओं में पर खोले उडने को आकाश मिले ।
bahut sundar abhivyakti.badhai.
अमरनाथ जी आपकी अभिव्यक्ति बहुत ही सुन्दर भाव अभिव्यक्त करती है आपके ब्लॉग को आज ये ब्लॉग अच्छा लगा पर लिया गया है.थोडा समय निकल कर वहां भी उपस्थित हो और हमें अनुग्रहित करें.
जवाब देंहटाएंक्या बात है सर...
जवाब देंहटाएंवाह ..
बहुत दिनों बाद ऐसी कविता पढने को मिली..
बहुत बहुत उम्दा है...
बधाई..
आप उच्च कोटि के कवि हैं
सुन्दर काव्याभिव्यक्ति है.
जवाब देंहटाएंमधुर जी, अच्छी रचना के लिए बधाई स्वीकार करें.
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