मंगलवार, 7 जून 2011

सच्चे लोग, अच्छे लोग

            भ्रष्टाचार-1


   एक दिन पोस्ट ऑफिस में एक पत्र आया । एक आदमी ने ईश्वर को पत्र लिखा था कि मेरी पत्नि बहुत बीमार है कम से कम पचास रूपये चाहिये । पचास से कम में काम नहीं चलेगा। पचास रूपये तुरन्त भेज दो मनिआर्डर से। और पते में लिखा था परम पिता परमेश्वर को मिले। पोस्ट ऑफिस के लौगों को दया आयी कि इसको यह भी पता नहीं कि परमात्मा को कहीं चिटठयॉं लिखी जाती हैं? कही चिटिठयॉं पहुचायी जा सकती हैं? किसको उसका पता है? लेकिन होगा बहुत मुसीबत में  और होगा भोला भाला आदमी तो पोस्ट ऑफिस के क्लर्कों ने कहा कि हम कुछ रूपया इकटठा करके उसे भेज दें। चंदा तो किया मगर पच्चिस रूप्ये ही चन्दा हो पाया। तो उन्होंने पच्चिस रूपये ही भेज दिये कि कुछ तो सहायता मिलेगी। लौटती ही डाक से चिटठी फिर आयी। पता लिखा था परमात्मा को मिले । उसने लिखा था यह बात ठीक नहीं है। अगली बार सीधे ही भेजना। पोस्ट ऑफिस कि जरिये भेजा तो उन दुष्टों ने पच्चिस रूपये कमीशन काट लिया। ........                      ........                           ......

                 भ्रष्टाचार-2
आजकल बडी मंहगाई है। गुजारा करना मुश्किल हो रहा है। 
मंहगाई तो बढेगी ही।कितना भ्रष्टाचार है।
अरे सहाब सब बनियों ने बढा रखी है। एक की चीज चार में बेचते हैं। 
ओ ठेले वाले दो रूपये की मूंगफली देना। ठीक से तोलना। तुम भी बहुत गडबड करने लगे हो। 
सहाब डिबरी जला लूँ , अंधेरा हो रहा है। 
अरे मैं क्या यहॉं खडा रहूँगा । जल्दी दे। 
लो सहाब पहले आपको देता हूँ  ।डिबरी बाद में जला लूँगा। 
ये लो पचास ग्राम मूंगफली । 
हॉं पचाय ग्राम तो दोगे ही।
खूब लूट मचा रखी है कुछ ठिकाना है मंहगाई का।
लाओ दो। चलता हूँ । 
बदमाश कहीं का, साला बहुत मुनाफा खा रहा है। 
चलो चलते -चलते खाते रहेंगें।
रिक्शे के पैसे बचेगें। हिसाब बराबर हो जायेगा। 
अरे ये क्या दो रूपये भी मूंगफली में पडे हैं। 
लगता है तोलते हुये गिर गये। 
दो रुपये भी और दो रुपये की मूंगफली भी | अपना तो मजा आ गया | लेकिन लाला बड़ा बदमाश होता है  मुनाफा जरुर कमायेगा | कम तोला होगा | 

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