नदी को बहते जाने दो
नदी को मुस्कराने दो, नदी को गुनगुनाने दो।
नदी की धार मत रोको,नदी को बहते जाने दो।
नदी की धार मत रोको,नदी को बहते जाने दो।
नदी की धार के संग संग प्रकृति का प्यार बहता है, नदी की धार में उसका अलग संसार बहता है
नदी की धार में इतिहास की तासीर बहती है
नदी की धार में पूरी सदी की पीर बहती है
नदी के साथ है जीवन नदी के साथ हैं सपने
नदी का है सफर लम्बा नदी को बहते जाने दो।।
नदी के ही किनारे सम्यतायें जन्म पाती हैं,
नदी के ही किनारे बस्तियॉं जीवन उगाती हैं
नदी के धार से बंजर जमीनें मुसकराती हैं,
नदी के धार से खेतों में फसलें लहलहाती हैं
नदी के ही किनारे बस्तियॉं जीवन उगाती हैं
नदी के धार से बंजर जमीनें मुसकराती हैं,
नदी के धार से खेतों में फसलें लहलहाती हैं
नदी से अन्न मिलता है, नदी से तृप्ति मिलती है
नदी का है भरा ऑंचल ,उसे जी भर लुटाने दो।|
नदी का है भरा ऑंचल ,उसे जी भर लुटाने दो।|
नदी कुछ कुछ परीशां है,नदी कुछ कुछ खफा सी है
नदी की रूह में उतरी कोई गहरी उदासी है,
नदी के दिल में यूँ सबके लिए रहती मौहब्बत है,
नदी को इन दिनों हमसे मगर थोडी शिकायत है
नदी का जिस्म घायल है नदी का मन कसैला है,
नदी की रूह में उतरी कोई गहरी उदासी है,
नदी के दिल में यूँ सबके लिए रहती मौहब्बत है,
नदी को इन दिनों हमसे मगर थोडी शिकायत है
नदी का जिस्म घायल है नदी का मन कसैला है,
नदी को दास्तॉं अपने गमों की कह सुनाने दो।
नदी घर से चली थी स्वच्छ निर्मल धार लेकर के,
मचलती, झूमती, लम्बे सफर की ,ख्वाहिशें भर के
ये थोडे से सफर के बाद ही क्या रंग बदला है,
नदी की चाल बदली है नदी का ढंग बदला है
ये थोडे से सफर के बाद ही क्या रंग बदला है,
नदी की चाल बदली है नदी का ढंग बदला है
नदी का जिस्म मैला है,नदी का रूप उजडा है
नदी ऑंसू बहाती है, नदी के दिन पुराने दो।।
नदी ऑंसू बहाती है, नदी के दिन पुराने दो।।
नदी में रोज लाखों लोग अपने जिस्म धोते हैं, नदी को बॉंटकर अस्वच्छता खुद स्वच्छ होते हैं
नदी में पशु नहाते हैं, नदी में वस्त्र धुलते हैं
नदी की धार में कचरों के अनिगिन ढेर घुलते हैं
नदी बदरंग हो जाये, कि बिल्कुल स्याह पड जाये
नदी की गोद में मत मैल इतना भी समाने दो।
ये नदियों के किनारे जितने मिल हैं, कारखाने हैं नदी के बल पर जिन्दा हैं मगर दुश्मन पुराने हैं
नदी से धडकने लेकर उसे ये मोल देते हैं
कि लाखों उसमें जहरीले रसायन घोल देते हैं
नदी बीमार दिखती है,नदी बिल्कुल न मर जाये,
नदी की धार में इतना जहर भी मत घुलने दो।
नदी से धडकने लेकर उसे ये मोल देते हैं
कि लाखों उसमें जहरीले रसायन घोल देते हैं
नदी बीमार दिखती है,नदी बिल्कुल न मर जाये,
नदी की धार में इतना जहर भी मत घुलने दो।
ये मत समझो नदी चुपचाप हरेक जुल्म सह लेगी,
सितम पर तुम सितम करते रहो खामोश बह लेगी
नदी जब क्रोध करती है तो दहशत फैल जाती है
नदी तब सिन्धु घाटी सभ्यता खण्डहर बनाती है
कभी वो वक्त क्यूँ आये, नदी गुस्से से भर जाये नदी को आस की, उल्लास की कविता रचाने दो।।
सितम पर तुम सितम करते रहो खामोश बह लेगी
नदी जब क्रोध करती है तो दहशत फैल जाती है
नदी तब सिन्धु घाटी सभ्यता खण्डहर बनाती है
कभी वो वक्त क्यूँ आये, नदी गुस्से से भर जाये नदी को आस की, उल्लास की कविता रचाने दो।।
--- लक्ष्मीशंकर वाजपेयी


अमल करने लायक सार्थक विचारों की अभिव्यक्ति है इस कविता में.
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