बुधवार, 24 अगस्त 2011

गजल-जमील मजहर 'सयानावी'

[जमील मजहर 'सयानावी' उर्दू शायरी में एक ऐसा नाम है, जो अपने  काम  के  अनुरूप बहुत कम पहचाना गया है | जिसकी गजल  सुनते  ही मन में तरंगे उठने लगती है, कानों में शहनाइयां बजने  लगती है | उनकी एक प्रतिनिधि गजल देंखें  | ]


मेरी  खुद्दार  तबियत  को  गवारा  भी  नहीं,
जी  हजूरी  के  सिवा  दूसरा  चारा  भी  नहीं |


जिन्दगी  छीन  के  वो ले  गया  मेरी  मुझसे, 
और सितम ये है कि उसने मुझे मारा भी नहीं |


दर ब दर अब तो भटकना मेरी  मजबूरी  है, 
तुमने रोका भी नहीं, तुमने पुकारा भी नहीं |


जिंदगी जंग  है  तुझसे  मेरी मरते दम तक, 
तुझको जीता भी नहीं और मैं हारा भी नहीं |


मैं  तेरे  प्यार  को  तस्लीम  करूँ  तो  कैसे ?
मेरी जानिब तेरा हल्का सा इशारा भी नहीं |

3 टिप्‍पणियां:

  1. जिन्दगी छीन के वो ले गया मेरी मुझसे,
    और सितम ये है कि उसने मुझे मारा भी नहीं |
    Behrin rachna, aabhar.

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  2. धन्यवाद आपने तव्वजो दी इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया |
    मुझे ये शेर बहुत पसंद है -
    ज़िन्दगी जंग है तुझसे मेरी मरते दम तक '
    तुझको जीता भी नहीं और मैं हारा भी नहीं |

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  3. बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
    जिंदगी जंग है तुझसे मेरी मरते दम तक,
    तुझको जीता भी नहीं और मैं हारा भी नहीं |
    वाह...
    शुक्रिया मधुर जी.

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