[जमील मजहर 'सयानावी' उर्दू शायरी में एक ऐसा नाम है, जो अपने काम के अनुरूप बहुत कम पहचाना गया है | जिसकी गजल सुनते ही मन में तरंगे उठने लगती है, कानों में शहनाइयां बजने लगती है | उनकी एक प्रतिनिधि गजल देंखें | ]
मेरी खुद्दार तबियत को गवारा भी नहीं,
जी हजूरी के सिवा दूसरा चारा भी नहीं |
जिन्दगी छीन के वो ले गया मेरी मुझसे,
और सितम ये है कि उसने मुझे मारा भी नहीं |
दर ब दर अब तो भटकना मेरी मजबूरी है,
तुमने रोका भी नहीं, तुमने पुकारा भी नहीं |
जिंदगी जंग है तुझसे मेरी मरते दम तक,
तुझको जीता भी नहीं और मैं हारा भी नहीं |
मैं तेरे प्यार को तस्लीम करूँ तो कैसे ?
मेरी जानिब तेरा हल्का सा इशारा भी नहीं |
मेरी खुद्दार तबियत को गवारा भी नहीं,
जी हजूरी के सिवा दूसरा चारा भी नहीं |
जिन्दगी छीन के वो ले गया मेरी मुझसे,
और सितम ये है कि उसने मुझे मारा भी नहीं |
दर ब दर अब तो भटकना मेरी मजबूरी है,
तुमने रोका भी नहीं, तुमने पुकारा भी नहीं |
जिंदगी जंग है तुझसे मेरी मरते दम तक,
तुझको जीता भी नहीं और मैं हारा भी नहीं |
मैं तेरे प्यार को तस्लीम करूँ तो कैसे ?
मेरी जानिब तेरा हल्का सा इशारा भी नहीं |
जिन्दगी छीन के वो ले गया मेरी मुझसे,
जवाब देंहटाएंऔर सितम ये है कि उसने मुझे मारा भी नहीं |
Behrin rachna, aabhar.
धन्यवाद आपने तव्वजो दी इसके लिए बहुत बहुत शुक्रिया |
जवाब देंहटाएंमुझे ये शेर बहुत पसंद है -
ज़िन्दगी जंग है तुझसे मेरी मरते दम तक '
तुझको जीता भी नहीं और मैं हारा भी नहीं |
बहुत खूबसूरत ग़ज़ल
जवाब देंहटाएंजिंदगी जंग है तुझसे मेरी मरते दम तक,
तुझको जीता भी नहीं और मैं हारा भी नहीं |
वाह...
शुक्रिया मधुर जी.