सोमवार, 26 सितंबर 2011

चौराहे के बुत - गीत -अमरनाथ 'मधुर'















जिनके  चौराहों  पर बुत हैं  इतिहासों में लिखा नाम है|         
उनमें कुछ भी खास नहीं है, केवल उनका खास काम है। 

उनमें  से  जाने कितनों  की  फुटपाथों  पर  रात  कटी  है,                
भरी  दुपहरी  सिर  पर  गुजरी, पॉंवों  में  भी धूल अटी है।                      
ये उनकी मेहनत और हिम्मत झण्डा गाड दिया पर्वत पर            
स्वागत में कालीन बिछे हैं,जग उनको करता प्रणाम है। 


वंदनऔरअभिनन्दन की ऋत बरसों बाद खिला करती है,             
उससे पहले जीवन तरू को कितनी धूंप मिला करती है,          
बरसों बाद हुआ करता है, पौधे का बरगद बन जाना,                     
पहले  वह  भी ऐसा जैसे  बगिया मे  पौधे  तमाम  हैं।


तुम जन साधारण हो तो क्या तुमपर ही तो टिकीआस है,             
तुममें भगत सिह जिन्दा है, तुममें गॉंधी है सुभाष है।            
समता,ममता, स्वतंत्रता के सपने सत्य अवश्य होंगें,                             बढे चलो हिम्मत न हारो, तुमसे खुद डरता निजाम है।


सपनों को गिरवी रखने के तुमने दस्तखत नहीं किये हैं|    
क्यों दुनियॉं के चोर, लुटेरे  फंदा  तुम  पर  कसे हुये हैं,     
अन्यायी समझौतों की फिर तुम पर पाबन्दी ही क्या है,                 
उन्हें तोडना इन्कलाब है, भारत माता को सलाम है।


कह दो सारे चोर लुटेरे अपने घर को वापिस जायें,                               जो दावत देकर लाये हैं उनको अपने संग लें जायें।                 
ये  स्वदेशी  चोर  विदेशी  चोरों  के  मौसेरे  भाई,                   
इनकी भी पहचान हो गई अब न गफलत में अवाम है।


महलों के निर्माता तुम हो,सपनों के युगदाता तुम हो।              
हे जनसाधारण मेहनतकश अपने भाग्यविधाता तुम हो।                
मत सोचों कोई पोंछेगा  आकर  गीले  नयन  तुम्हारे,              
जब तक तुम सब अलग-थलग हो तब तक चिन्तायें तमाम हैं।


जिस दिन  मिलकर हुंकारोगे सारी  धरती  हिल जायेगी,            
मेहनत की वाजिब कीमत क्या सारी दौलत मिल जायेगी।           
लेकिन ध्यान रहे रग-रग में जब तक लहु लाल बहता है,              
हाथों  में  हो  लाल  पताका, उससे गददारी  हराम है। 



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