शुक्रवार, 14 अक्टूबर 2011

गीत -दिल्ली दूर नहीं है यारो

       दिल्ली दूर नहीं है यारो दिल्ली के असली हकदारों।           
थोडी ताकत ओर लगाओ थोडा उंचा तुम हुंकारों। 


खून  पसीना बोकर तुमने खेतों  में  सोना उपजाया,                         
राजी और नाराजी से है उसको दिल्ली तक पहुचाया।                         
ये सारी  दौलत अपनी है जल्दी उठो झपट्टा मारो।                           
दिल्ली दूर नहीं है यारो दिल्ली के  असली  हकदारों। 


खेतों  में तुम, खानों  में तुम, सरहद  खडे जवानों  में तुम।                  
कब तक तुम खामोश रहोगे, कब तक खडे रहोगे गुमसुम।               
जो चुप रहता वो सब सहता सुन लो ओ किस्मत के मारों।          
दिल्ली  दूर  नहीं  है  यारो  दिल्ली  के  असली  हकदारो। 


महलों के निर्माता तुम हो, सपनों के  युगदाता  तुम  हो                        
हे जनसाधारण मेहनतकशअपने भाग्य विधाता तुम हो,                   
ताज ओ तख्त तुम्हारे अपने नये जमाने के फनकारो।                       
दिल्ली  दूर  नहीं  है  यारो,  दिल्ली  के  असली हकदारों।।

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