बुधवार, 19 अक्टूबर 2011

गीत -रेशमी छुअन




एक दृष्टि मौसमी खुमार की,                                                              एक गन्ध चन्दनी बयार की। 
दूर तलक छू गई मुझे  कहीं      
रेशमी छुअन तुम्हारे प्यार की। 

हशरतों के रूप रंग निखर गये  
अनमने उदास पल संवर गये| 
हर तरफ गुलाब मुस्करा उठे 
धडकनें मचल उठी बहार की। 

सहम सहम रूप के नयन खुले 
अंग-अंग खुबुओं के रंग घुले।
मनचली हवा चली गली-गली, 
भर गयी सुगन्ध हरसिंगार की।

छल रही छवि छली अंनग की 
तैरती  तरंग  जल   तरंग  की |
कल्पना ने अनछुए अधर छुए
साधना सिहर उठी सितार  की।
                                                                -यशपाल कौत्सायन 

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें