आंधी और तूफानों में
मंदिर और वीरानों में,
दीप तुझे जलना होगा |
पथ में गहन अन्धेरा हो
साथी कोई न तेरा हो
मन में न घबराना तू
थककर न बुझ जाना तू
तम को दूर भगाने को
सबको राह दिखाने को
दीप तुझे जलना होगा |
सारी रात जले रहना
परवानों से ना डरना
ये उजले पंखों वाले
सबके सब दिल के काले
इनसे स्नेह बचाने को
और किसी के पाने को
दीप तुझे जलना होगा |
देवालय का प्रांगण हो
या कुटिया का आँगन हो
तू सबको देकर प्रकाश
भरना जीवन में उल्लास
किलकारी के हंसने को
लाठी टेक के चलने को
दीप तुझे जलना होगा |
जलना ही तो जीवन है
स्नेह मिला अपनापन है
इस धरती के कण-कण में
युग रूपायित क्षण -क्षण में
यह सन्देश पठाने को
दीपक नया जलाने को
दीप तुझे जलना होगा |
-अमरनाथ 'मधुर'
04-11-1983
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