जवानी के दिन वो, जवानी के दिन वो |
मोहब्बत के किस्से, कहानी के दिन वो|
महकती हुई रातरानी के दिन वो |
वो जिसकी मोहब्बत के मैं गीत गाता
जिसे हीर खुद को हूँ राँझा बताता |
मेरे ख़्वाब में वो हरेक रात आती |
वो आती थी जैसे किताबें उठाए
बहुत धीरे धीरे नजर को झुकाए |वो ऐसे ही अब भी चली आ रही है
मेरे दिल को अब भी बहुत भा रही है|
इधर मैं भी उसकी डगर पर खड़ा हूँ उसे फूल देने की जिद पर अड़ा हूँ |
मेरे पास तक आज आने दो उसको
उसे हाल अपना बताने दो मुझको|
कहूँगा मैं उससे न तुम बिन रहूँगा बहुत सह लिया है नहीं अब सहूँगा |


वो जब राह चलती मेरे पास आयी
झुकी पलकें धीरे से उसने उठायी |
नजर भर के एक बार मुझको यूँ देखा
मैं कुछ उससे बोलूँगा जैसे ये सोचा |
मगर मैं खड़ा चुप न मुँह खोलता हूँ
उसे देखता हूँ न कुछ बोलता हूँ |
झिझकती ठिठकती वो आगे बढ़ी थी
मेरे दिल पे जैसे कि बिजली गिरी थी|
मैं पत्थर के बुत सा वहीँ पे खड़ा हूँ
गली के न उस मोड़ से मैं मुड़ा हूँ |
जहाँ से मैं जाते उसे देखता था
मुझे मुड़ के देखेगी ये सोचता था |
ये उसकी गली का सिरा दूसरा है
इधर मैं उधर वो, नहीं तीसरा है|
लो अब वो मुड़ेगी पलटकर के देखा
खिले फूल दिल के जगी भाग्य रेखा|
ह्रदय में हिलोरे लगी फिर से उठने
मैं कल उससे कह दूँगा जो मेरे मन में|
जगे रात भर सुबह खुद को सॅंवारा
बहुत देर दर्पण में चेहरा निहारा |
नहीं मैंने कम कुछ कहीं खुद को पाया
वहीँ पहुंचा फिर से जहाँ कल था आया|
उसी तय समय पर वहाँ वो भी आयी
झुकी पलकें पहले सी उपर उठायी |
नजर में था उसकी न जाने क्या जादू
रहा दिल पे मेरे ना मेरा ही काबू |
जो कहनी थी मुझको वही बात कोई
लबों पे न आई बहुत आँख रोई |
जुबां सिल गयी न गया मझसे बोला
मोहब्बत का ये राज अब मैंने खोला|
यही सिलसिला यूँ ही बरसों चला था
मोहब्बत में मुझको कहाँ कुछ मिला था|
मगर वो मेरी नौजवानी के दिन थे
बड़ी खूबसूरत कहानी के दिन थे |
ये जो कुछ है मिलने बिछुड़ने का किस्सा
मेरी जिन्दगी का बहतरीन हिस्सा|
ये किस्सा मैं तुमको सुना तो रहा हूँ
मगर ये भी सच है बता जो रहा हूँ |
मैं फिर खोजता हूँ जवानी के वो दिन,
मौहब्बत की सच्ची कहानी के वो दिन|
जवानी के दिन वो जवानी के दिन वो।
मोहब्बत के किस्से, कहानी के दिन वो|
- अमरनाथ 'मधुर'
मो0-9457266975
جوانی کے دن وہ ، جوانی کے دن وہ |محبت کے قصے ، کہانی کے دن وہ |
گلابو کی رنگت جھلکتی ، مچلتي z مهكتي ہوئی راتراني کے دن وہ |وہ جس کی محبت کے میں گیت گاتاجسے ہیر خود کو ہوں راجھا بتاتا |میرے دل کو اب بھی بہت ہے ستاتیمیرے خواب میں وہ ہر رات آتی |
وہ آتی تھی جیسے کتابیں اٹھائےبہت دھیرے دھیرے نظر کو جھکائے |وہ ایسے ہی اب بھی چلی آ رہی ہےمیرے دل کو اب بھی بہت بھا رہا ہے |
ادھر میں بھی اس کی ڈگر پر کھڑا ہوںاسے پھول دینے کی ضد پر اڑا ہوں |
میرے پاس تک آج آنے دو اس کواسے حال اپنا بتانے دو مجھ کو |كهوگا میں اس سے نہ تم بن رہونگابہت برداشت کرلیا ہے نہیں اب سهوگا |
وہ جب راہ چلتی میرے پاس آئیجھکی پلکیں دھیرے سے اس نے اٹھائی |
نظر بھر کے ایک بار مجھ کو یوں دیکھامیں کچھ اس سے بولوگا جیسے یہ سوچا |مگر میں کھڑا چپ نہ منہ کھولتا ہوںاسے دیکھتا ہوں نہ کچھ بولتا ہوں |
جھجھكتي ٹھٹھكتي وہ آگے بڑھی تھیمیرے دل پہ جیسے کہ بجلی گری تھی |میں پتھر کے بت سا وہیں پہ کھڑا ہوںگلی کے نہ اس موڑ سے میں مڑا ہوں |
جہاں سے میں جاتے اسے دیکھتا تھامجھے مڑ کے دیکھے گی یہ سوچتا تھا |یہ اس کی گلی کا سرا دوسرا ہےادھر میں ادھر وہ ، نہیں تیسرا ہے |
لو اب وہ مڑےگي پلٹکر کے دیکھا
کھلے پھول دل کے پیدا ہوئی قسمت لائن |دل میں هلورے لگی پھر سے اٹھنےمیں کل اس سے کہہ دوں گا جو میرے دل میں |
جگے رات بھر صبح خود کو سوارابہت دیر آئینہ میں چہرہ نهارا |نہیں میں نے کم کچھ کہیں خود کو پایاوہیں پہنچا پھر سے جہاں کل تھا آیا |
اسی مقررہ وقت پر وہاں وہ بھی آئیجھکی پلکیں پہلے سی اوپر اٹھائی |نظر میں تھا اس کی نہ جانے کیا جادورہا دل پہ میرے نہ میرا ہی قابو |
جو كهني تھی مجھ کو وہی بات کوئیلبوں پہ نہ آئی بہت آنکھ روئی |جبا سل گئی نہ گیا مجھسے بولامحبت کا یہ راج اب میں نے کھولا |یہی سلسلہ یوں ہی برسوں چلا تھامحبت میں مجھ کو کہاں کچھ ملا تھا |
مگر وہ میری نوجوانی کے دن تھےبڑی خوبصورت کہانی کے دن تھے |یہ جو کچھ ہے ملنے بچھڑنے کا قصہمیری زندگی کا بهترين حصہ |
یہ قصہ میں تم کو سنا تو رہا ہوںمگر یہ بھی سچ ہے بتا جو رہا ہوں |میں پھر تلاش کرتا ہوں جوانی کے وہ دن ،موهببت کی سچی کہانی کے وہ دن |
جوانی کے دن وہ جوانی کے دن وہ.محبت کے قصے ، کہانی کے دن وہ |
-- امرناتھ 'مدھر'
محمد 0-9457266975
जुबां सिल गयी न गया मझसे बोला
मोहब्बत का ये राज अब मैंने खोला|
यही सिलसिला यूँ ही बरसों चला था
मोहब्बत में मुझको कहाँ कुछ मिला था|
मगर वो मेरी नौजवानी के दिन थे
बड़ी खूबसूरत कहानी के दिन थे |
ये जो कुछ है मिलने बिछुड़ने का किस्सा
मेरी जिन्दगी का बहतरीन हिस्सा|
ये किस्सा मैं तुमको सुना तो रहा हूँ
मगर ये भी सच है बता जो रहा हूँ |
मैं फिर खोजता हूँ जवानी के वो दिन,
मौहब्बत की सच्ची कहानी के वो दिन|
जवानी के दिन वो जवानी के दिन वो।
मोहब्बत के किस्से, कहानी के दिन वो|
- अमरनाथ 'मधुर'
मो0-9457266975
گلابو کی رنگت جھلکتی ، مچلتي z مهكتي ہوئی راتراني کے دن وہ |وہ جس کی محبت کے میں گیت گاتاجسے ہیر خود کو ہوں راجھا بتاتا |میرے دل کو اب بھی بہت ہے ستاتیمیرے خواب میں وہ ہر رات آتی |
وہ آتی تھی جیسے کتابیں اٹھائےبہت دھیرے دھیرے نظر کو جھکائے |وہ ایسے ہی اب بھی چلی آ رہی ہےمیرے دل کو اب بھی بہت بھا رہا ہے |
ادھر میں بھی اس کی ڈگر پر کھڑا ہوںاسے پھول دینے کی ضد پر اڑا ہوں |
میرے پاس تک آج آنے دو اس کواسے حال اپنا بتانے دو مجھ کو |كهوگا میں اس سے نہ تم بن رہونگابہت برداشت کرلیا ہے نہیں اب سهوگا |
وہ جب راہ چلتی میرے پاس آئیجھکی پلکیں دھیرے سے اس نے اٹھائی |
نظر بھر کے ایک بار مجھ کو یوں دیکھامیں کچھ اس سے بولوگا جیسے یہ سوچا |مگر میں کھڑا چپ نہ منہ کھولتا ہوںاسے دیکھتا ہوں نہ کچھ بولتا ہوں |
جھجھكتي ٹھٹھكتي وہ آگے بڑھی تھیمیرے دل پہ جیسے کہ بجلی گری تھی |میں پتھر کے بت سا وہیں پہ کھڑا ہوںگلی کے نہ اس موڑ سے میں مڑا ہوں |
جہاں سے میں جاتے اسے دیکھتا تھامجھے مڑ کے دیکھے گی یہ سوچتا تھا |یہ اس کی گلی کا سرا دوسرا ہےادھر میں ادھر وہ ، نہیں تیسرا ہے |
لو اب وہ مڑےگي پلٹکر کے دیکھا
کھلے پھول دل کے پیدا ہوئی قسمت لائن |دل میں هلورے لگی پھر سے اٹھنےمیں کل اس سے کہہ دوں گا جو میرے دل میں |
جگے رات بھر صبح خود کو سوارابہت دیر آئینہ میں چہرہ نهارا |نہیں میں نے کم کچھ کہیں خود کو پایاوہیں پہنچا پھر سے جہاں کل تھا آیا |
اسی مقررہ وقت پر وہاں وہ بھی آئیجھکی پلکیں پہلے سی اوپر اٹھائی |نظر میں تھا اس کی نہ جانے کیا جادورہا دل پہ میرے نہ میرا ہی قابو |
جو كهني تھی مجھ کو وہی بات کوئیلبوں پہ نہ آئی بہت آنکھ روئی |جبا سل گئی نہ گیا مجھسے بولامحبت کا یہ راج اب میں نے کھولا |یہی سلسلہ یوں ہی برسوں چلا تھامحبت میں مجھ کو کہاں کچھ ملا تھا |
مگر وہ میری نوجوانی کے دن تھےبڑی خوبصورت کہانی کے دن تھے |یہ جو کچھ ہے ملنے بچھڑنے کا قصہمیری زندگی کا بهترين حصہ |
یہ قصہ میں تم کو سنا تو رہا ہوںمگر یہ بھی سچ ہے بتا جو رہا ہوں |میں پھر تلاش کرتا ہوں جوانی کے وہ دن ،موهببت کی سچی کہانی کے وہ دن |
جوانی کے دن وہ جوانی کے دن وہ.محبت کے قصے ، کہانی کے دن وہ |
-- امرناتھ 'مدھر'
محمد 0-9457266975











Kavi Manoj Gurjar, Ankur Tomar, Vijaya Singh and 2 others like this.
जवाब देंहटाएं1-Vijaya Singh Khoobsurat...
February 2 at 8:35pm · Unlike · 2
2-Jayesh Dave मगर वो मेरी नौजवानी के दिन थे
बड़ी खूबसूरत कहानी के दिन थे |
ये जो कुछ है मिलने बिछुड़ने का किस्सा
मेरी जिन्दगी का बहतरीन हिस्सा|... वाह्ह .. बहुत सुन्दर अहसास कराती हुई .... कुछ कुछ... अपनी सी लगती हुई... शानदार कविता... mubaarakbaad.
February 2 at 9:34pm · Unlike · 1
3Deepak Agnimitra · Friends with Puja Shukla
आप तो सभी को फ्लेश बैक में ले गए... nice.......
February 2 at 10:53pm · Unlike · 1
4Amarnath Madhur दोस्तों आपके कमेंट्स भी बहुत प्यारे हैं | क्या कहूँ ये दिल का मामला है |
February 2 at 11:25pm · Like
5-Ankur Tomar Unki Mohabbat ke abhi nishaan baki hai,
Naam lab par hai aur jaan baki hai .
Kya hua agar dekh kar muh pher lete hai,
Tasalli hai ki shakal ki pehchaan baki hai …
February 3 at 12:14am · Like
6-Amarnath Madhur wah ankur| aapne khub phchana h|
February 3 at 12:16am · Like
7-Ankur Tomar Kaun aayega yahan?
Na koi aaya hoga..
Mera darwaja hawaon ne hilaya hoga
Dil-e-nadan na dhadak
Koi khat leke padosi ke ghar aaya hoga
...See More
February 3 at 12:16am · Like
8-Amarnath Madhur 'Koi khat leke padosi ke ghar aaya hoga' apne khaan nseeb ki dakiya edhar bhi aaye|
February 3 at 12:19am · Like
9-Ankur Tomar aaapka to email accnt h na . aajkal kavi bhi high technology se lais h. unhe daakiye ki kya kami khalti h.
February 3 at 12:23am · Like · 1
माउस की कोई क्लिक इंटरनेट पर "रातरानी" की खुशबू भी बिखेर सकती है......ये अहसास एकदम अलग सा है.....
जवाब देंहटाएंगुलाबों की रंगत झलकती, मचलती,
महकती हुई रातरानी के दिन वो |
वो जिसकी मोहब्बत के मैं गीत गाता
जिसे हीर खुद को हूँ राँझा बताता |
दिन में महकती रातरानी.....प्रेम के विरोधाभासों पर इतराती हुई सी लगती है....इस आंतरिक छुअन तक जाने के लिए जिस अंतरदृष्टि की ज़रूरत है वो खुद ही कविता में आई है....'शाब्दिक-प्रयास' से नहीं....
हीर-रांझा के रूप में खुद को चुन लेना "विरह" का अनचाहा या अजाना चुनाव ही है......फिर मिलन तो संभव नही था... .हीर, झंग (लाहौर) के सरदार, चूचक स्याल की लड़की, राँझा, तखत हजारे का यायावर पथिक.............
चिनाब का पानी आज तक शायद उस मिलन की बाट जोहता है............मगर विरह तो प्रेम की दुल्हन का नौलखा हथफूल है.......शुभकामनाएँ
वो आती थी जैसे किताबें उठाए
बहुत धीरे धीरे नजर को झुकाए
सुंदर अहसास मधुर जी.......ये किताबें प्रेमपूर्ण नाज़ुक हाथों में हैं..... बोझिल बौद्धिकता तो नही हो सकतीं....उनके काग़ज़ो पर कुछ भी लिखा हो.....
.मगर उन नरम हथेलियों की थरथराहट में जयदेव का गीत गोविंद और कालिदास का कुमारसंभव जैसा कुछ.सिहर रहा होगा.....जिसे झुकी पलकों से ही पढ़ा जाना संभव है...
इधर मैं भी उसकी डगर पर खड़ा हूँ
नजर भर के एक बार मुझको यूँ देखा
मैं कुछ उससे बोलूँगा जैसे ये सोचा |
मगर मैं खड़ा चुप न मुँह खोलता हूँ
उसे देखता हूँ न कुछ बोलता हूँ |
प्रतीक्षा......प्रेम-पथ के किनारे पड़ी गरम शिला है.....उस पर कहीं ना कहीं सुस्ताना ही पड़ता है....सौभाग्यशाली हैं आप...ये आकुलता, ये व्याकुलता....इनकी सेंक ने खूब पका दिया है.....
"आवण कह गए अजहुं न आये, जिवडा अति उकलावै।" मुझे एक पुराना शेर याद आया.....चुप हो गया हूँ आपकी सूरत को देखकर / करनी थीं मुझको आपसे कितनी शिक़ायतें
चुप्पी...सबसे तीखी तकरार और सबसे मीठा इज़हार दोनो को समेटे होती है.....मौन के संगमरमर से प्रेम के ताजमहल बहुत बार तराशे गये हैं.....बधाई
जहाँ से मैं जाते उसे देखता था
मुझे मुड़ के देखेगी ये सोचता था |
ये उसकी गली का सिरा दूसरा है
इधर मैं उधर वो, नहीं तीसरा है|
प्रेम....दो अलग-अलग ऊर्जाओं के अलग-अलग छोर....अलग-अलग सिरों का एकात्म-बिंदु ही तो है....वाह....इधर मैं उधर वो, नहीं तीसरा है|
ये "दो" ही एक में बदल जाते हैं......प्रेम गली अति सांकरी या में दो ना समाय........
जो कहनी थी मुझको वही बात कोई
लबों पे न आई बहुत आँख रोई |
जुबां सिल गयी न गया मझसे बोला
मौन की इस ज़िल्द के भीतर.......अभिव्यक्ति का धड़कता प्रेम-ग्रंथ सांस ले रहा है.....प्रेम शब्दों के रथ पर सवार होकर आता ज़रूर है.....
मगर बाकी सफ़र मौन के खड़ाउँ पहनकर ही तय करना होता है....वही वास्तविक अंतर्यात्रा है.....
इस सुंदर, भावपूर्ण, अतीत-यात्रा में सहभागी बनाने के लिए शुक्रिया मधुर जी.......मन की गहराइयों से शुभकामनाएँ
-कुमार पंकज
कविता की खुलकर सराहना और काव्यगत विसंगतियों पर इशारा करने के लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया | आपसे इसी शैली में प्रतिक्रिया की आशा थी| टिपण्णी पर आपके गहन अध्ययन की छाया है | हर जगह आपका वक्तव्य सन्दर्भ से भारी होता है | कोई भी पाठक मूल से ज्यादा आपके वकतव्य से आनंदित होगा | आप के सहयोग के लिए मैं आपका आभारी रहूँगा यह मुझे नव रचना के लिए प्रेरित करता रहेगा |
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