[तसलीमा नसरीन की आत्मकथा का दूसरा भाग 'द्विखंदितो' जब प्रकाशित हुआ तो पश्चिम बगाल की वाममोर्चा सरकार ने उसे प्रतिबंधित कर दिया जिसका जनवादी लेखक संघ द्वारा विरोध किया गया था|ये कविता तभी लिखी गयी | आज फिर कभी सलमान रश्दी के बहाने कभी तसलीमा नसरीन के बहाने बोलने की आजादी को रोका टोका जा रहा है |ऐसे में मुझे अपनी ये पुरानी कविता याद आ गयी सोचा सबके साथ शेयर कर देनी चाहिए|]
मैं तो लडता था कि सबके लिये लडना है,
मुझको विश्वास था है सबसे सही पक्ष मेरा
मेरी आवाज दबे कुचले की आवाज है ये
मैं भी सिपाही हूँ सर्वहारा की फौजों का।
मुझको विश्वास था है सबसे सही पक्ष मेरा
मेरी आवाज दबे कुचले की आवाज है ये
मैं भी सिपाही हूँ सर्वहारा की फौजों का।
लेकिन ये क्या हुआ समझ नहीं आता है
मैं तो लडता हुआ आगे ही बढा जाता था |
मेरे बाद मेरे ही घर को जला डाला है
मेरी ही फौज के कुछ बडे ओहदेदारों ने।
जिनके सर पर है साया लाला झण्डों का
जिनके पॉंवों में लाल ही कालीन बिछे |
उनके हैं हाथ रंगें लाल लाल खून से हैं
खून मजदूरों का,किसानों का,जनमत का।
हम भी वह कहते जो हमको कहना है
सबको हक कहने का सब कोई बोले ।
कुर्सी पर बैठा जो कौन सा नियामक है
हम जब भी बोलें जो वो उसको तोलें ?
जिनके सर पर है साया लाला झण्डों का
जिनके पॉंवों में लाल ही कालीन बिछे |
उनके हैं हाथ रंगें लाल लाल खून से हैं
खून मजदूरों का,किसानों का,जनमत का।
वो जो जनता की आवाज कहे जाते थे
एक औरत की सर्द आह से डर जाते हैं |
कैसे जनता के नुमाईन्दें हैं देखो तो सही
जनता सडकों पर उतर आये तो छुप जाते हैं।
एक औरत की सर्द आह से डर जाते हैं |
कैसे जनता के नुमाईन्दें हैं देखो तो सही
जनता सडकों पर उतर आये तो छुप जाते हैं।
तुमने आवाज लगायी थी रूपकुवर के लिये
भॅंवरी देवी को तुमने ही ताकत दी थी |
तस्लीमा नसरीन से क्यों तुमको डर लगता है ?
वो भी आवाज है कुछ बन्द दिमागों के लिये।
भॅंवरी देवी को तुमने ही ताकत दी थी |
तस्लीमा नसरीन से क्यों तुमको डर लगता है ?
वो भी आवाज है कुछ बन्द दिमागों के लिये।
जिनको डरना है वो डरें उसकी आहट से
मैं तो सुनता हूँ मेरी रूह महक जाती है |
कहीं ऐसा तो नहीं बन्द दिमागों के लिये
आपके,खतरे की एक ओर घडी आती है।
मैं तो सुनता हूँ मेरी रूह महक जाती है |
कहीं ऐसा तो नहीं बन्द दिमागों के लिये
आपके,खतरे की एक ओर घडी आती है।
क्या है वो खतरा नई रोशनी में दिखता है
इस अधेरें में बराबर है कुऑं और खाई ।
आगे जाने की कोई राह है या कोई नहीं
पीछे जाने के सब रास्ते बन्द पहले से।
इस अधेरें में बराबर है कुऑं और खाई ।
आगे जाने की कोई राह है या कोई नहीं
पीछे जाने के सब रास्ते बन्द पहले से।
ये तय होगा तब,जब राह हो रौशन अपनी
राह रौशन हो तो जनता ही तय कर लेगी |
हमको जाना है किधर, किधर नहीं जाना है
झूठे ख्वाबों से नहीं होगा हकीकत से तय।
राह रौशन हो तो जनता ही तय कर लेगी |
हमको जाना है किधर, किधर नहीं जाना है
झूठे ख्वाबों से नहीं होगा हकीकत से तय।
कैसे आजाद ख्याली दे दें जनता को
जनता भेडों की तरह हॅंकती है, हॅंकती रहे
ऐसा कठमुल्ला भी चाहेंगें और हम भी
जिससे कायम रहे दीन औ धरम चैन ओ अमन।
जनता भेडों की तरह हॅंकती है, हॅंकती रहे
ऐसा कठमुल्ला भी चाहेंगें और हम भी
जिससे कायम रहे दीन औ धरम चैन ओ अमन।
साथ चलती रहे बाते बहुत प्रगति की
ऑंखें हों बन्द और राह रहे दुर्गति की।
खूब जयकारें हों जनमुक्ति के, जनशक्ति के
फेरे हम लेते रहें पूँजी की भक्ति के।
ऑंखें हों बन्द और राह रहे दुर्गति की।
खूब जयकारें हों जनमुक्ति के, जनशक्ति के
फेरे हम लेते रहें पूँजी की भक्ति के।
जनता जो जान जाये कुचल दो बेदर्दी से
हॅंसियॉं हथोडे को डरना क्या वर्दी से।
वर्दी पुलिस की हो या अर्द्ध फौजी हो
हॅंसिया हथोडे से पार नहीं पायेगी।
हॅंसियॉं हथोडे को डरना क्या वर्दी से।
वर्दी पुलिस की हो या अर्द्ध फौजी हो
हॅंसिया हथोडे से पार नहीं पायेगी।
त्रिशूल से डरती है नेकर से हार गयी
हॅंसिया हथोडे से भी क्या पार पायेगी।
हम भी तो कई बार जनता से लडे हैं,
हारी है जनता तो हार ही जायेगी।
हॅंसिया हथोडे से भी क्या पार पायेगी।
हम भी तो कई बार जनता से लडे हैं,
हारी है जनता तो हार ही जायेगी।
सत्ता जब अपनी हो फिर डर कैसा है
सत्ता से दूर जो उनको ही डरना है |
दिल्ली, गुजरात हो या फिर बंगाल हो
सत्ता के हाथों से जनता को मरना है।
सत्ता से दूर जो उनको ही डरना है |
दिल्ली, गुजरात हो या फिर बंगाल हो
सत्ता के हाथों से जनता को मरना है।
फिर भी हम जनवादी कहने को बकवादी
जो सच दिखता है वो सच बोलेंगें ।
हमको धमकाने की कौशिश भी न करना
जनता के दुश्मन को जूते से तोलेंगें।
जो सच दिखता है वो सच बोलेंगें ।
हमको धमकाने की कौशिश भी न करना
जनता के दुश्मन को जूते से तोलेंगें।
तस्लीमा अपनी है हमराही, हमबोली,
गैर भी होती तब भी हम लडते,
जो उससे लडता उससे तो लडते ही
गलती वह करती तो उससे भी लडते ।
गैर भी होती तब भी हम लडते,
जो उससे लडता उससे तो लडते ही
गलती वह करती तो उससे भी लडते ।
हम भी वह कहते जो हमको कहना है
सबको हक कहने का सब कोई बोले ।
कुर्सी पर बैठा जो कौन सा नियामक है
हम जब भी बोलें जो वो उसको तोलें ?
हक ये हमारा है जो इसको छीनेगा
उससे लडेंगें हम ऐलान अपना है ।
मौत के फतवों की दहशत ही कैसी
घुट घुट के जीने से अच्छा तो मरना हैं।
उससे लडेंगें हम ऐलान अपना है ।
मौत के फतवों की दहशत ही कैसी
घुट घुट के जीने से अच्छा तो मरना हैं।
क्योंकि मर जाने से बन्द नहीं हो सकती
बागी दिमागों की बारूदी आवाजें ।
फैलेगी चिंगारी तड तडकर टूटेगी
बुर्जी मीनारों की पत्थर के दुर्गों की।
बागी दिमागों की बारूदी आवाजें ।
फैलेगी चिंगारी तड तडकर टूटेगी
बुर्जी मीनारों की पत्थर के दुर्गों की।
सदियों की कारा के टूटेंगें फाटक सब ,
छूटेंगें कैदी सब जकडी जंजीरें से ।
जंजीरें मजहब की, अन्धे विश्वासों की,
जुल्मत की,गैरत की,दहशत की,वहशत की।
छूटेंगें कैदी सब जकडी जंजीरें से ।
जंजीरें मजहब की, अन्धे विश्वासों की,
जुल्मत की,गैरत की,दहशत की,वहशत की।
-अमरनाथ मधुर
میں تو لڈتا تھا کہ سب کے لئے لڈنا ہے، مجھ کو یقین تھا ہے سب سے صحیح حق میرا میری آواز دبے کچلے کی آواز ہے یہ میں تو لڈتا ہوا آگے ہی بڑھا جاتا تھا |
میں بھی سپاہی ہوں سروهارا کی افواج کا. لیکن یہ کیا ہوا سمجھ نہیں آتا ہے، میرے بعد میرے ہی گھر کو جلا ڈالا ہے میری ہی فوج کے کچھ بڑے اوهدےدارو نے.
جن کے پوو میں لال ہی قالین بچھے | ان کے ہیں ہاتھ رگے لال لال خون سے ہیں جن کے سر پر ہے سایہ لالہ جھڈو کا خون جو مزدوروں کا، کسانوں کا، رائے عامہ کا.
وہ جو عوام کی آواز کہے جاتے تھے ایک عورت کی سرد آہ سے ڈر جاتے ہیں | کیسے عوام کے نمايندے ہیں دیکھو تو سہی عوام سڑکوں پر اتر آئے تو چھپ جاتے ہیں.
تم نے آواز لگائی تھی روپكور کے لئے بھوري دیوی کو تم نے ہی طاقت دی تھی | تسلیمہ نسرین سے کیوں تم کو ڈر لگتا ہے وہ بھی آواز ہے کچھ بند دماغوں کے لیے.
جن کو ڈرنا ہے وہ ڈرے اس کی آہٹ سے میں تو سنتا ہوں میری روح مہک جاتی ہے | کہیں ایسا تو نہیں بند دماغوں کے لیے آپ، خطرے کی ایک اور گھڑی آتی ہے.
کیا ہے وہ خطرہ نئی روشنی میں لگ رہا ہے اس ادھےرے میں برابر ہے کنواں اور کھائی. آگے جانے کی کوئی راہ ہے یا کوئی نہیں پیچھے جانے کے تو سب راستے بند ہیں پہلے سے.
یہ تو طے ہوگا تب، جب راہ ہو روشن اپنی راہ روشن ہو تو عوام ہی طے کر لے گی | ہم کو جانا ہے کدھر، کدھر نہیں جانا ہے جھوٹے كھوابو سے نہیں ہوگا حقیقت سے طے.
کیسے آزاد كھيالي دے دیں عوام کو عوام بھےڈو کی طرح هكتي ہے، هكتي رہے ایسا كٹھمللا بھی چاهےگے اور ہم بھی جس سے قائم رہے دین او دھرم چین و امن.
ساتھ چلتی رہے باتیں بہت ترقی کی آنکھیں ہوں بند اور راہ رہے حالت کی. خوب جيكارے ہوں جن مکتی کے، جن شکتی کے پھیرے ہم لیتے رہیں سرمایہ کی دینداری کے.
عوام جو جان جائے کچل دو بےدردي سے هسي هتھوڈے کو ڈرنا کیا وردی سے. وردی پولیس کی ہو یا نیم فوجی ہو هسيا هتھوڈے سے پار نہیں پايےگي.
ترشول سے ڈرتی ہے نےكر سے ہار گئی هسيا هتھوڈے سے بھی کیا پار پايےگي. ہم بھی تو کئی بار عوام سے لڑے ہیں، ہاری ہے عوام تو ہار ہی جائے گی.
اقتدار جب اپنی ہو پھر ڈر کیسا ہے اقتدار سے دور جو ان کو ہی ڈرنا ہے | دہلی، گجرات ہو یا پھر بنگال ہو اقتدار کے ہاتھوں سے عوام کو مرنا ہے.
پھر بھی ہم جنوادي کہنے کو بكوادي جو سچ لگ رہا ہے وہ سچ بولےگے. ہم کو دھمکانے کی كوشش بھی نہ کرنا عوام کے دشمن کو جوتے سے تولےگے.
تسلیمہ اپنی ہے ہمراہی، همبولي، غیر بھی ہوتی تب بھی ہم لڈتے، جو اس سے لڈتا اس سے تو لڈتے ہی غلطی وہ کرتی تو اس سے بھی لڈتے.
ہم بھی وہ کہتے جو ہم کو کہنا ہے سب کو حق کہنے کا سب کوئی بولے. کرسی پر بیٹھا جو کون سا ریگولیٹری ہے ہم جب بھی سےکہنے لگے جو وہ اس کو تولے؟
حق یہ ہمارا ہے جو اس کو چھينےگا اس سے لڈےگے ہم اعلان اپنا ہے. موت کے فتوئوں کی دہشت ہی کیسی گھٹ گھٹ کے جینے سے اچھا تو مرنا ہے.
کیونکہ مر جانے سے بند نہیں ہو سکتی باغی دماغوں کی بارودی آوازیں. پھےلےگي چنگاری تڈ تڈكر ٹوٹے گی برجي مینار کی پتھر کے درگو کی.
صدیوں کی کارا کے ٹوٹےگے پھاٹک سب، چھوٹےگے قیدی سب جكڈي ججيرے سے. ججيرے مذہب کی، اندھے عقائد کی، جلمت کی، گےرت کی، دہشت کی، وحشت کی.
- امرناتھ مدھر
میں بھی سپاہی ہوں سروهارا کی افواج کا. لیکن یہ کیا ہوا سمجھ نہیں آتا ہے، میرے بعد میرے ہی گھر کو جلا ڈالا ہے میری ہی فوج کے کچھ بڑے اوهدےدارو نے.
جن کے پوو میں لال ہی قالین بچھے | ان کے ہیں ہاتھ رگے لال لال خون سے ہیں جن کے سر پر ہے سایہ لالہ جھڈو کا خون جو مزدوروں کا، کسانوں کا، رائے عامہ کا.
وہ جو عوام کی آواز کہے جاتے تھے ایک عورت کی سرد آہ سے ڈر جاتے ہیں | کیسے عوام کے نمايندے ہیں دیکھو تو سہی عوام سڑکوں پر اتر آئے تو چھپ جاتے ہیں.
تم نے آواز لگائی تھی روپكور کے لئے بھوري دیوی کو تم نے ہی طاقت دی تھی | تسلیمہ نسرین سے کیوں تم کو ڈر لگتا ہے وہ بھی آواز ہے کچھ بند دماغوں کے لیے.
جن کو ڈرنا ہے وہ ڈرے اس کی آہٹ سے میں تو سنتا ہوں میری روح مہک جاتی ہے | کہیں ایسا تو نہیں بند دماغوں کے لیے آپ، خطرے کی ایک اور گھڑی آتی ہے.
کیا ہے وہ خطرہ نئی روشنی میں لگ رہا ہے اس ادھےرے میں برابر ہے کنواں اور کھائی. آگے جانے کی کوئی راہ ہے یا کوئی نہیں پیچھے جانے کے تو سب راستے بند ہیں پہلے سے.
یہ تو طے ہوگا تب، جب راہ ہو روشن اپنی راہ روشن ہو تو عوام ہی طے کر لے گی | ہم کو جانا ہے کدھر، کدھر نہیں جانا ہے جھوٹے كھوابو سے نہیں ہوگا حقیقت سے طے.
کیسے آزاد كھيالي دے دیں عوام کو عوام بھےڈو کی طرح هكتي ہے، هكتي رہے ایسا كٹھمللا بھی چاهےگے اور ہم بھی جس سے قائم رہے دین او دھرم چین و امن.
ساتھ چلتی رہے باتیں بہت ترقی کی آنکھیں ہوں بند اور راہ رہے حالت کی. خوب جيكارے ہوں جن مکتی کے، جن شکتی کے پھیرے ہم لیتے رہیں سرمایہ کی دینداری کے.
عوام جو جان جائے کچل دو بےدردي سے هسي هتھوڈے کو ڈرنا کیا وردی سے. وردی پولیس کی ہو یا نیم فوجی ہو هسيا هتھوڈے سے پار نہیں پايےگي.
ترشول سے ڈرتی ہے نےكر سے ہار گئی هسيا هتھوڈے سے بھی کیا پار پايےگي. ہم بھی تو کئی بار عوام سے لڑے ہیں، ہاری ہے عوام تو ہار ہی جائے گی.
اقتدار جب اپنی ہو پھر ڈر کیسا ہے اقتدار سے دور جو ان کو ہی ڈرنا ہے | دہلی، گجرات ہو یا پھر بنگال ہو اقتدار کے ہاتھوں سے عوام کو مرنا ہے.
پھر بھی ہم جنوادي کہنے کو بكوادي جو سچ لگ رہا ہے وہ سچ بولےگے. ہم کو دھمکانے کی كوشش بھی نہ کرنا عوام کے دشمن کو جوتے سے تولےگے.
تسلیمہ اپنی ہے ہمراہی، همبولي، غیر بھی ہوتی تب بھی ہم لڈتے، جو اس سے لڈتا اس سے تو لڈتے ہی غلطی وہ کرتی تو اس سے بھی لڈتے.
ہم بھی وہ کہتے جو ہم کو کہنا ہے سب کو حق کہنے کا سب کوئی بولے. کرسی پر بیٹھا جو کون سا ریگولیٹری ہے ہم جب بھی سےکہنے لگے جو وہ اس کو تولے؟
حق یہ ہمارا ہے جو اس کو چھينےگا اس سے لڈےگے ہم اعلان اپنا ہے. موت کے فتوئوں کی دہشت ہی کیسی گھٹ گھٹ کے جینے سے اچھا تو مرنا ہے.
کیونکہ مر جانے سے بند نہیں ہو سکتی باغی دماغوں کی بارودی آوازیں. پھےلےگي چنگاری تڈ تڈكر ٹوٹے گی برجي مینار کی پتھر کے درگو کی.
صدیوں کی کارا کے ٹوٹےگے پھاٹک سب، چھوٹےگے قیدی سب جكڈي ججيرے سے. ججيرے مذہب کی، اندھے عقائد کی، جلمت کی، گےرت کی، دہشت کی، وحشت کی.
- امرناتھ مدھر



बोलने की आजादी का मतलब ये बिलकुल नहीं की आप दोसरों को गाली दें, बोलना ही हो तो दूसरों की बखान करें, दूसरों को सलाम करें ..
जवाब देंहटाएंताहिर खान
बहुत कुछ सामने आया है इस रचना के माध्यम से लेकिन ..कुछ कहने की आजादी .....और सोच समझ कर कहने में बहुत अंतर है ....!
जवाब देंहटाएंफिर भी हम जनवादी कहने को बकवादी
जवाब देंहटाएंजो सच दिखता है वो सच बोलेंगें ।
हमको धमकाने की कौशिश भी न करना
जनता के दुश्मन को जूते से तोलेंगें।
अभिव्यक्ति की सीमा रेखा कौन तय करेगा ?क्या एक आततायी अपने खिलाफ उठती किसी
जवाब देंहटाएंआवाज़ का बर्दाश्त करेगा ?सच को कब तक दबाओगे ?सवाल तो यह भी है कि सच से ये
डरने वाले कौन हैं ?इन सवालों से जूझना ज़रूरी है.-निर्मल गुप्त
बाहर से अभिव्यक्ति की सीमा रेखा कोई तय नहीं हो सकती,यह स्वविवेक
से तय होती है। पाठक यानी कि आम आदमी उसकी स्वीकार्यता तय कर देता
है।दबाने से चीजें फैलती हैं खुला छोड़ने से जिसमें कुछ सार नहीं
होता वो हवा में उड़ जाती हैं केवल जिसमें कुछ वजन होता है वही टिकाऊ रहती हैं ।