गुरुवार, 23 फ़रवरी 2012

कविता-'वो'-विजय गुप्ता [نظم - 'وو' - وجے گپتا]



 जनवादी लेखक संघ मेरठ  के 14 सदस्यों की कविताओं का संग्रह 'मैं पूरा हिन्दुस्तान हूँ'  उदभावना प्रकाशन राजनगर गाजियाबाद द्वारा प्रकाशित किया गया है। जलेस मेरठ के ब्लॉग और फेसबुक पर मेरी वॉल पर इस संग्रह की अधिकॉंश कवितायें समय-समय पर प्रकाशित की गई हैं।आज प्रस्तुत है वरिष्ट कवि विजय गुप्ता की कविता 'वो'। पढें और अपनी राय से अवगत करायें।
                                                 'वो'

मौसम बंसन्त का
महीना फाल्गुन का
महकी-महकी सी हवा
पीली पीली सरसों
मखमली घास पर,
खिलते फूलों पर
मॅंडराते भोंरे और तितलियॉं
गीत गाती महिलायें
ऋतुराज बसंत को
महिमा मडिंत करते कविगण।
ऑंखें गडा कर
देखा जो मैने उपर
गगन में भी
कालिमा सी  नजर आने लगी,
चॉंद में गडढे
व भयाक्रॉंत तारे दिखायी देने लगे
निशा भागती पीछे को
दामन बचाती सी दिखी,
धरा पर मुझे वो
सिर्फ और सिर्फ
कागज और प्लास्टिक के टुकडे
बीनते दिखे।



                                                                         -विजय गुप्ता 
نظم - 'وو' - وجے گپتا
جنوادي مصنف یونین میرٹھ کے 14 ارکان کی نظم کا مجموعہ 'میں مکمل ہندوستان ہوں' ادبھاونا اشاعت راجنگر غازی آباد کی طرف سے شائع کیا گیا ہے. جلےس میرٹھ کے بلاگ اور فیس بک پر میری وال پر اس مجموعے کی ادھكش كوتايے وقت - وقت پر شائع کی گئی ہیں. آج پیش ہے ورشٹ شاعر وجے گپتا کی شاعری 'وہ'. پڑھ اور اپنی رائے سے آگاہ كرايے.
                                                 
'وہ'موسم بسنت کامہینہ پھالگن کامهكي - مهكي سی ہواپیلی پیلی سرسوں مخملی گھاس پر کھلتے پھولوں پر مڈراتے بھورے اور تتلي گیت گاتے مہلایں رتراج بسنت کو جلال مڈت کرتے كوگ. آنکھیں گڈا کر دیکھا جو میں نے اوپر گگن میں بھی كالما نظر آنے لگی، چد میں گڈڈھے اور بھياكرت تارے دکھائی دینے لگے نشا بھاگتی پیچھے کو دامن بچاتی سی نظر آئی، دھرا پر مجھے وہ صرف اور صرف کاغذ اور پلاسٹک کے ٹكڈے بينتے نظر آئے.


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