हमारा भी हक है बहारे चमन पर
ये कहना तो कोई बगावत नहीं है।
इससे पहले कि लोग बिना पढे ही पत्थर बरसाना शुरू कर दें मैं यह साफ कहे देता हूँ कि मैं समलैंगिकता पर नहीं समलैंगिकों के मौलिक अधिकार पर अपनी राय रख रहा हूँ । जिन लोगों को नापसन्द हो वो इसकी उपेक्षा कर चुप लगा सकते हैं या अपना एतराज जैसे चाहें वैसे दर्ज कर सकते हैं मुझे कोई परवाह नहीं है। जो समर्थन करना चाहें उनकी भी बहुत चाह नहीं है लेकिन जो तर्कसंगत संवाद करना चाहें उनका हार्दिक स्वागत है।
अभी कुछ दिन पहले दिल्ली उच्च न्यायालय ने समलैंगिकता को अपराध ठहराने वाली सविंधान की धारा 377 को मूल अधिकारों का उल्लंघन बताते हुये गैरआपराधिक करार दिया था| दिल्ली हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार 18 साल की उम्र से ऊपर रजामंदी से किया गया समलैंगिक रिश्ता अपराघ नही है। समलैंगिकता को कानूनी तौर पर मान्यता देते हुए भारतीय दंड संहिता की धारा 377 को गैरआपराधिक करार दिया है। हाईकोर्ट के अनुसार स्त्री का स्त्री से या पुरूष का पुरूष से सहमति से संबंध बनाना अपराघ नही है। जिसके विरूद्ध कुछ लौगों द्वारा सर्वोच्च न्यायालय में दायर की गई अपील विचाराधीन है। सर्वोच्च न्यायालय ने भारत सरकार को नोटिस जारी कर पूछा है कि वह बताये कि समलैंगिकता अपराध कैसे है? भारत सरकार ने अपना हलफनामा दाखिल कर दिया है जिसमें उसने कहा है कि यह नैतिक नहीं है। यह भी कहं गया है कि भारतीय समाज में यह स्वीकार्य नही है। टी0 वी0 चैनल जो हमेशा ही अपनी टी आर पी बढाने के लिये गरमागरम मुददों की तलाश में रहते हैं इस पर बहस का नाटक कर रहे हैं। मैंने इस बहस को देखा है। जैसा कि अक्सर होता है एंकर बडे.बडे सवाल पूछते हैं और जब जबाब उनकी अपेक्षा के अनुरूप न हो तो समय की कमी का बहाना करके कैमरा हटा लेते हैं। जो थोडा भी कुछ कहना चाहता है वो उससे सीधे पूछते हैं आप समलैकिता को स्वीकार करते हैं? ये सवाल पीछे छूट जाता है कि अन्य नागरिकों की तरह समलैगिकों को भी वो सारे अधिकार मिलने चाहिये या नहीं जो संविधान ने सबको दिये हैं ? कुछ तथाकथित बुद्धिजीवी किस्म के लौग कहते हैं कि इस पर चर्चा होनी चाहिये और जैसा कि लोकतंत्र में होता है बहुमत की राय से इस पर फैसला हो जाना चाहिये।
इसमें कोई दो राय नहीं कि लोकतंत्र सबसे अच्छी व्यवस्था है और लोकतंत्र में बहुमत से फैसला होता है। लेकिन बहुमत का फैसला ही लोकतंत्र नही है और न ही लोकतंत्र बहुमत की तानाशाही का नाम नहीं है। लोकतंत्र की कुछ बुनियादी मान्यतायें हैं और अल्पमत के अधिकारों की रक्षा करना उसकी पहली जिम्मेदारी है। कुछ लोगों को सिर्फ इसलिये दण्डित नहीं किया जा सकता कि वे बहुसंख्यकों के अनुरूप नहीं रहते या अपनी अलग राय रखते हैं।
जहॉं तक जनमत की राय का प्रश्न है तो यह जरूरी तो नहीं कि जनता का बहुमत हमेशा ही सही हो और उसे बिना किसी ना नुकर के सबको स्वीकार कर लेना चाहिये। अगर ये बात सही होती तो फिर राजा राम मोहन राय सती प्रथा का विरोध ना कर पाते। उस वक्त अगर जनता की राय पूछी जाती तो बहुमत सती प्रथा के पक्ष में होता। इसी प्रकार बहुत से प्रश्न हैं जिन पर जनता की राय दकियानूसी और अवैज्ञानिक रही है लेकिन प्रगतिशील समाज सुधारकों ने मानव के सुन्दर भविष्य की चाह रखकर अपनी जान की परवाह किये बिना तमाम प्रतिगामी मूल्यों का विरोध करते हुये अपने प्रगतिशील विचारों को दृढता से समाज के सामने रखा और लोकतांन्त्रिक तथा विधि सम्मत तरीके से उन्हें समाज में लागू करने के सतत प्रयास किये।बाल विवाह,स्त्री शिक्षा, विधवा विवाह,दहेज निषेध,बंधुआ मजदूरी,बाल श्रम आदि कुछ ऐसे ही मुददे हैं जिन पर समाज का दृष्टिकोण सरकार और समाज सुधारकों के सतत प्रयासों के बाद ही सकारात्क दिशा में परिवर्तित हुआ है। इसलिये यह कहना कि सभी पारम्परिक समाज और संस्कृति के अनुरूप रहें या बहुमत की राय को मान लें बहुत ज्यादती की बात कही जायेगी। आखिर वो लौग या समुदाय जिनका दुनिया में अपना कोई देश नहीं है उन्हें भी अन्य नागरिकों की तरह पूर्ण संवैधानिक अधिकरों और जन्मजात मानवाधिकारों के साथ पूर्ण स्वतंत्रता से जीने का हक है। समलैंगिक भी ऐसे ही लोग हैं।
यह बात समझ से परे है कि उनके साथ अपराधियों जैसा व्यवहार क्यों होना चाहिये? वे समाज को क्या नुकसान पहुचाते हैं? कहा जाता है कि उनका आचरण असामाजिक है। घूम फिर कर बात समाज पर ही आ जाती है।एक आदमी अपने बेडरूम में क्या करता है इससे समाज या सरकार को क्या लेना देना है? जो समाज या सरकार लोगों के बेडरूम में झॉंकती फिरती है और उस पर निगरानी रखती है वो खुद असामाजिक है, बेडरूम में सोने वाला नहीं।ये कैसा समाज है जहॉं बलात्कारियों, दहेज हत्यारों, कन्या भ्रूण हत्यारों,किडनी चोरों, जमाखोरों, तमाम तरह के भ्रष्टाचारियों के पैरोकार मिल जायेंगे और समाज उन्हें जरा भी हिकारत की निगाह से नहीं देखता। लेकिन समलैंगिको पर हर कोई पत्थर बरसाने को तैयार है। इस सन्दर्भ में मुझे एक ऑंखों देखी घटना आ गई है। एक बार मैं कहीं बाहर जा रहा था मैने बस स्टैन्ड पर देखा एक ओर भीड जमा है और उॅचे जगह पर एक बदहवास व्यक्ति को बैठाकर लोग मारे जा रहे हैं। पता लगा कि वो एक जेबकतरा है और एक आदमी की जेब काटकर पचास रूपये निकालते रंगे हाथ पकडा गया। बस फिर क्या था पब्लिक ने मारना पीटना शुरू कर दिया। अब जो भी आता वो उसमें दो हाथ जरूर लगा देता। पिटने वाले का बुरा हाल था उसे कोई कुछ कहने ही नहीं दे रहा था। मैंने देखा कि एक आदमी जिसे मैं भली प्रकार जानता था भीड में पीछे से बार.बार निकल कर आता और उस जेब कतरे के दो थप्पड मारता और फिर भीड में पीछे जाकर खडा हो जाता। ऐसा उसने पता नहीं कितनी बार किया |मेरी बस जाने लगी और मैं तो इसी हालत में छोडकर चला आया। मारने वाला आदमी वही आदमी था जो बसों का मुन्शी था और ड्राईवर कडन्कटरों को गलत तरीके से बसों को देर से लाने ले जाने के छूट देने के लिये उनसे दिन भर पैसे ऐंठता रहता था। यह आदमी स्वभाव से इतना दब्बू था कि किसी को मारना तो दूर कभी किसी से नहीं लड सकता था । यहॉं भीड में यह आदमी जबरदस्त हिसंक हो रहा था और पिजरें में बन्द जानवर जैसे जेबकतरे को बढ चढकर लतिया रहा था।
अगर आप गौर से देखें तो तमाम तरह के गलीच लौग भीड में बहादुर बन जाते हैं और अपने बडे बडे अपराधों को भूलकर मामूली अपराध करने वाले पर अत्याचार करने में सबसे आगे होते हैं। समलैंगिको के प्रति भी लोगों का व्यवहार ऐसा ही होता है। जो लोग उन्हें गरिया रहे हैं उनकी वास्तविक जिन्दगी गन्दगी से भरी पडी है, वे किस्म किस्म के माफिया हैं अपराध की दुनियॉ के सरताज हैं। समलैंगिक जो किसी को कोई नुकसान नहीं पहुॅचाते उनके व्यक्तिगत स्वतंत्रता के अधिकार का, निजता के अधिकार का, अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का बिल्कुल भी सम्मान नहीं किया जा रहा है। कहा जाता है कि मेरी स्वतंत्रता की सीमा वहॉं समाप्त हो जाती है जहॉं से आपकी स्वतंत्रता शुरू होती है। समलैंगिको के बारे में यह सिद्धान्त क्यों नहीं लागू होता। अगर ऐसा होता तो आप उनके बेडरूम में झॉंकने नहीं जाते।
यह कहा जाता है कि यह प्राकृतिक जीवन नहीं है। आप मानते हैं कि आदमी को प्रकृति ने उत्पन्न किया है तो फिर उसकी इच्छायें,यौन भावनायें भी प्रकृति ने ही उत्पन्न की हैं। आप कहते हैं कि जानवर ऐसा यौन व्यवहार नहीं करते । हॉं हम जानते हैं कि जानवर ऐसा नहीं करते। लेकिन जानवर तो ऋतुकाल को छोडकर अन्य किसी वक्त संभोग भी नहीं करते।जानवर बलात्कार भी नहीं करते। मनुष्य क्यों करता है?बलात कर्म तो सरासर जुर्म है दसरे की स्वतंत्रता का बलात हरण। समलैंगिक ऐसा नहीं करते। मनुष्य क्यों नहीं उसी प्राकृतिक जीवन को अपना लेता। जानवर श्रंृगार भी नहीं करते जानवर अपने नाखून और बाल भी नहीं काटते, कपडे भी नहीं पहनते, किताब भी नहीं पढते। अगर प्राकृतिक जीवन ही जीवन है तो फिर सभ्यता किस चिडिया का नाम है? आप जियें प्राकृतिक जीवन।
आप कहें ये तो कुतर्क है। आप कह सकते हैं । लेकिन ये भी तो कुतर्क है कि दो वयस्क परस्पर सहमति से अपनी जिन्दगी भी न जियें और समाज के पारम्परिक मूल्यों को ही स्वीकार करते हुये अपनी दमित इच्छाओं के साथ जिन्दगी गुजार दें। दमित यौन भावनाओं से,काम कुंठाओं से जो अपराध और समस्यायें जन्म लेती हैं उनसे निपटने में सारा समाज खुद को असमर्थ पाता है लेकिन एक गैर आपराधिक कर्म को बिना वजह नैतिकता का हवाला देकर अपराध कर्म लिया गया है ।
मजे की बात ये है कि और किसी बात पर एक राय हों या न हो लेकिन समलैगिकता के मुददे पर वामपंथी और दक्षिण पंथी पूरी तरह एकमत हैं कि यह अनैतिक है। बात-बात पर भारतीय संस्कृति की रक्षा का हवाला देने वाले अगर अपनी सॉंस्कृतिक विरासत की जॉंच पडताल करें तो समलैंगिकता के अनेक उदाहरण मिल जायेंगें।पर वे कुछ सुनेंगें ही नहीं | इसलिये इन दक्षिणपंथी बजरबटटुओं और कठमुल्लओं से कोई गिला शिकवा नहीं हैं, लेकिन प्रगतिशील और जनवादी विचारकों/प्रचारकों का क्या करें जो उनके सुर में सुर मिला रहे हैं। फिदेल कास्त्रों ने सगर्व घोषणा की है कि क्यूबा में एक भी समलैंगिक नहीं है। अब फिदेल कास्त्रों कोई बात कह दंे तो फिर वामपंथी जनवादियों के लिये कहने को कुछ बचता नहीं है।
'फिदेलकास्त्रों जिन्दाबाद' का नारा लगाते हमारे भी गला नहीं थकता, लेकिन ये बात कुछ हजम नहीं हुई कि उनके राज्य में एक भी समलैंगिक नहीं है। ये बिल्कुल वैसा ही है जैसे स्वर्ग से आदम को धकेल दिया गया हो। अब आदम का क्या है? वो नई दुनिया बसा लेगा,जिसमें बसन्त आयेगा, फूल महकेंगें और पंछी चहकेंगें। और तुम्हारा स्वर्ग? यकीकन वो एक दिन उजड जायेगा।क्योंकि तुमने मनुष्य की स्वतंत्रता का हनन किया है उसकी भावनाओं का दमन किया है । मैं गलत हो सकता हूँ लेकिन ये भी नहीं हो सकता कि तुम महान हो तो तुम्हारी सारी बाते सहीं हैं और वे सब मान ही लेनी चाहियें। आपके यहॉं पूॅजी के पुजारी रह सकते हैं समलैंगिक नहीं। हमें तो नहीं चाहिये ऐसा स्वर्ग। हमको मालूम है जन्नत कि हकीकत लेकिन दिल को बहलाने को गालिब ये ख्याल अच्छा है।
जिस विचारक ने ये कहा कि मैं तुम्हारी बात से असहमत हूँ लेकिन तुम्हारे इस अधिकार की रक्षा के लिये मैं अपने प्राण दे दूंगा वह मानवाधिकारों का सबसे बडा हिमायती है। समलैंगिकों को इसी दृष्टिकोण से देखा, तोला जाना चाहिये और यह तभी हो सकता है जब हम अपने दिमागों से नैतिकता के घने जालों को हटा दें। जब तक हमारे दिमागों को सदियों पुराने इन जालों ने घेर रखा है रोशनी कि कोई किरन अन्दर नहीं जा सकती और जब तक दिमाग रौशन नहीं होंगें हम कोई फैसला वक्त के अनुरूप नहीं ले सकेंगें। यह कितनी विचित्र बात है कि आज आतंकवादी हत्यारों के मौलिक अधिकारों, सेक्स वर्करों के यौन व्यापार के अधिकारों, लिव इन रिलेशनशिप के अधिकारों और तो आत्महत्या के अधिकार के पक्षधर मौजूद हैं जिनकी गात सुनी जाती है और जिन्हें हिकारत से भी नहीं देखा जाता लेकिन समलैंगिकों के अधिकारों का जिक्र आते ही लोगों के चेहरे पर व्यंग्यात्मक मुस्कान दिखयी देने लगती है।कुछ लौग हिकारत की निगाह से देखते हैं कुछ लौग चुप रहने में समझादारी दिखाते हैं। जो लौग बातचीत करते भी हैं उनमें चटकारे लेने का भाव रहता है या उपदेशत्मक दुराग्रह। वे समझते हैं ये नासमझ पाप कर्म में लिप्त लौग हैं इन्हें सही रास्ते पर लाना हमारी जिम्मेदारी है या इन्हें समाज से दूर रखा जाना चाहिये ताकि समाज शुद्ध सात्विक रहे। इनसे पूछों तुम्हारी परम्परागत जीवन शैली ने तो समाज में कितनी तरह की समस्यायें पैदा कर दी हैं। आज सबको ना खाने को रोटी है ना रहने को मकान। ना साफ पानी है ना साफ हवा। तुमने कितनी ताबडतोड आबादी बढायी है कि न कहीं प्रकृति सुरक्षित है ओर न कहीं प्राकृतिक जीवन। फिर भी तुम समाज और प्रकृति के रखवाले होने का दम भरते हो। समलैंगिक ऐसा अपराध नहीं करते । हम कहते हैं कि आप अपनी जिन्दगी जियो और उन्हें उनकी जिन्दगी जीने दो। जैसे वो आपको कुछ नहीं कहते वैसे ही आप भी उनके बेडरूम में झॉंकना बन्द कर दें। कम शब्दों में कहूँ -
हमारा भी हक है बहारे चमन पर
ये कहना तो कोई बगावत नहीं है।
अब घोडे की तरह हैं हैं मत करने लगना|
ہمارا بھی حق ہے بهارے چمن پر یہ کہنا تو کوئی بغاوت ہے. اس سے پہلے کہ لوگ بغیر پڑھے ہی پتھر برسانا شروع کر دیں میں یہ صاف کہے دیتا ہوں کہ میں کمزور پر نہیں اور ہم جنس پرستی کے بنیادی حقوق پر اپنی رائے رکھ رہا ہوں. جن لوگوں کو ناپسند ہو وہ اس کی بے اعتنائی کر چپ لگا سکتے ہیں یا اپنا اعتراض جیسے چاہیں ویسے درج کر سکتے ہیں مجھے کوئی پرواہ نہیں ہے. جو حمایت کرنا چاہیں ان کی بھی بہت چاہ نہیں ہے لیکن جو مناسب بات چیت کرنا چاہیں ان کا دل خوش آمدید. ابھی کچھ دن پہ لے دہلی ہائی کورٹ نے ہم جنس جرم ٹھہرانے والی سودھان کی دفعہ 377 کو بنیادی حقوق کی خلاف ورزی بتاتے ہوئے اوچھت قرار دیا تھا جس کے خلاف کچھ لوگو کی طرف سے سپریم کورٹ میں دائر کی گئی اپیل زیر غور ہے. سپریم کورٹ نے حکومت کو نوٹس جاری کر پوچھا ہے کہ وہ بتائے کہ ہم جنس جرم کیسے ہے؟ہندوستان کی حکومت نے اپنا حلف نامہ داخل کر دیا ہے جس میں اس نے کہا ہے کہ یہ اخلاقی نہیں ہے. یہ بھی كه گیا ہے کہ بھارتی سماج میں یہ قابل قبول نہیں ہے. ٹی 0 وی 0 چینل جو ہمیشہ ہی اپنی ٹی آر پی بڑھانے کے لیے گرماگرم مددو کی تلاش میں رہتے ہیں اس پر بحث کا ڈرامہ کر رہے ہیں. میں نے اس بحث کو دیکھا ہے. جیسا کہ اکثر ہوتا ہے اینکر بڑے. بڑے سوال پوچھتے ہیں اور جب جواب ان کی توقع کے مطابق نہ ہو تو وقت کی کمی کا بہانہ کر کے کیمرے ہٹا لیتے ہیں. جو تھوڑا بھی کچھ کہنا چاہتا ہے وہ اس سے براہ راست پوچھتے ہیں آپ سملےكتا کو قبول کرتے ہیں؟ یہ سوال پیچھے چھوٹ جاتا ہے کہ دیگر شہریوں کی طرح سملےگكو کو بھی وہ سارے حق ملنے چاہئے یا نہیں جو آئین نے سب کو دیئے ہیں؟ کچھ نام نہاد دانشور قسم کے لوگ کہتے ہیں کہ اس پر بحث ہونی چاہئے اور جیسا کہ جمہوریت میں ہوتا ہے اکثریت کی رائے سے اس پر فیصلہ ہو جانا چاہیے. اس میں کوئی دو رائے نہیں کہ جمہوریت سب سے بہتر نظام ہے اور جمہوریت میں اکثریت سے فیصلہ ہوتا ہے. لیکن اکثریت کا فیصلہ ہی جمہوریت نہیں ہے اور نہ ہی جمہوریت اکثریت کی تانا شاہی کا نام نہیں ہے. جمہوریت کی کچھ بنیادی مانيتايے ہیں اور الپمت کے حقوق کے تحفظ کرنا اس کی پہلی ذمہ داری ہے. کچھ لوگوں کو صرف اس لئے دڈت نہیں کیا جا سکتا کہ وہ اکثریت کے مطابق نہیں رہتے یا اپنی الگ رائے رکھتے ہیں. جہاں تک رائے عامہ کی رائے کا سوال ہے تو یہ ضروری تو نہیں کہ عوام کا اکثریت ہمیشہ ہی صحیح ہو اور اسے بغیر کسی نا نكر کے سب کو قبول کر لینا چاہیے.اگر یہ بات صحیح ہوتی تو پھر راجہ رام موہن رائے ستی کے رواج کی مخالفت نہ کر پاتے. اس وقت اگر عوام کی رائے پوچھی جاتی تو اکثریت ستی کے رواج کے حق میں ہوتا. اسی طرح بہت سے سوال ہیں جن پر عوام کی رائے دقیانوسی اور اوےجنانك رہی ہے لیکن ترقی پسند سماج کی اصلاح کرنے والوں نے انسانی کے خوبصورت مستقبل کی چاہ رکھ کر اپنی جان کی پرواہ کئے بغیر تمام پرتگامي اقدار کی مخالفت کرتے ہوئے اپنے ترقی پسند خیالات کو درڈھتا سے سماج کے سامنے رکھا اور لوكتانترك اور قانون سممت طریقے سے انہیں سماج میں نافذ کرنے کی مسلسل کوشش کی. بال شادی، عورت کی تعلیم، بیوہ کی شادی، جہیز نشےدھ، بدھا مزدوری، بچہ مزدوری وغیرہ کچھ ایسے ہی مددے ہیں جن پر سماج کا نقطہ نظر حکومت اور سماج کی اصلاح کرنے والوں کی مسلسل کوششوں کے بعد ہی سكاراتك سمت میں بدل گیا ہے. اس لئے یہ کہنا کہ تمام روایتی سماج اور ثقافت کے مطابق رہیں یا اکثریت کی رائے کو مان لیں بہت جيادتي کی بات کہی جائے گی. آخر وہ لوگ یا فرقے جن کا دنیا میں اپنا کوئی ملک نہیں ہے انہیں بھی دیگر شہریوں کی طرح مکمل آئینی ادھكرو اور پیدائشی حقوق انسانی کے ساتھ رپوےا آزادی سے جینے کا حق ہے. ہم جنس پرست بھی ایسے ہی لوگ ہیں. یہ بات سمجھ سے پرے ہے کہ ان کے ساتھ مجرموں جیسا سلوک کیوں ہونا چاہئے؟ وہ سماج کو کیا نقصان پهچاتے ہیں؟ کہا جاتا ہے کہ ان کا رویہ اساماجك ہے. گھوم پھر کر بات سماج پر ہی آ جاتی ہے. ایک آدمی اپنے بیڈروم میں کیا کرتا ہے اس سے سماج یا حکومت کو کیا لینا دینا ہے؟ جو سماج یا حکومت لوگوں کے بیڈروم میں جھكتي پھرتي ہے اور اس پر نگرانی رکھتی ہے وہ خود اساماجك ہے، بیڈروم میں سونے والا نہیں. یہ کیسا سماج ہے جہاں بلاتكاريو، جہیز قاتلوں، لڑکی جنین قاتلوں، گردے چورو، جماكھورو، تمام طرح کے بھرشٹاچاريو کے پےروكار مل جائیں گے اور سماج انہیں ذرا بھی حقارت کی نگاہ سے نہیں دیکھتا. لیکن سملےگكو پر ہر کوئی پتھر برسانے کو تیار ہے. اس سلسلے میں مجھے ایک آنکھوں دیکھی واقعہ آ گئی ہے. ایک بار میں کہیں باہر جا رہا تھا میں نے بس اسٹینڈ پر دیکھا ایک طرف بھیڑ جمع ہے اور اچے جگہ پر ایک بدحواس شخصیت کو بٹھا کر لوگ مارے جا رہے ہیں. پتہ لگا کہ وہ ایک جےبكترا ہے اور ایک آدمی کی جیب کاٹ کر پچاس روپے نکالتے رنگے ہاتھ پکڑا گیا. بس پھر کیا تھا پبلک نے مارنا پیٹنا شروع کر دیا. اب جو بھی آتا وہ اس میں دو ہاتھ ضرور لگا دیتا. پٹنے والے کا برا حال تھا اسے کوئی کچھ کہنے ہی نہیں دے رہا تھا.میں نے دیکھا کہ ایک آدمی جس میں بھلی طرح جانتا تھا بھیڑ میں پیچھے سے بار. بار نکل کر آتا اور اس جیب کترے کے دو تھپپڈ مارتا اور پھر بھیڑ میں پیچھے جا کر کھڑا ہو جاتا. ایسا اس نے پتہ نہیں کتنی بار کیا میری بس جانے لگی اور میں تو اسی حالت میں چھوڑ کر چلا آیا. مارنے والا آدمی وہی آدمی تھا جو بسوں کا منشی تھا اور ڈرائیور كڈنكٹرو کو غلط طریقے سے بسوں کو دیر سے لانے لے جانے کے چھوٹ دینے کے لئے ان سے دن بھر پیسے ےٹھتا رہتا تھا. یہ آدمی فطرت سے اتنا دببو تھا کہ کسی کو مارنا تو دور کبھی کسی سے نہیں لڈ سکتا تھا. یہاں بھیڑ میں یہ آدمی زبردست هسك ہو رہا تھا اور پجرے میں بند جانور جیسے جےبكترے کو بڑھ مسلم بڑھ چڑھ کر لتيا رہا تھا. اگر آپ غور سے دیکھیں تو تمام طرح کے گليچ لوگ بھیڑ میں بہادر بن جاتے ہیں اور اپنے بڑے بڑے جرائم کو بھول کر معمولی جرم کرنے والے پر ظلم کرنے میں سب سے آگے ہوتے هےے. سملےگكو کے متعلق بھی لوگوں کا رویہ ایسا ہی ہوتا ہے. جوے لوگ انہیں گریا رہے ہیں ان کی اصلی زندگی گندگي سے بھی پڑی ہے، وہ قسم قسم کے ماپھيا ہیں جرم کی دني كے سرتاج ہیں. سملےبك جو کسی کو کوئی نقصان نہیں پهچاتے ان کے ذاتی آزادی کے حق کا، رازداری کے حق کا، اظہار کی آزادی کے حق کا بالکل بھی احترام نہیں کیا جا رہا ہے. کہا جاتا ہے کہ میری آزادی کی حد وہاں ختم ہو جاتی ہے جہاں سے آپ کی آزادی شروع ہوتی ہے. سملےگكو کے بارے میں یہ اصول کیوں نہیں لاگو ہوتا. اگر ایسا ہوتا تو آپ ان کے بیڈروم میں جھكنے نہیں جاتے. یہ کہا جاتا ہے کہ یہ قدرتی نہیں ہے. آپ مانتے ہیں کہ آدمی کو فطرت، قدرت نے پیدا کیا ہے تو پھر اس کی اچچھايے، جنسی بھاونايے بھی فطرت، قدرت نے ہی پیدا کی ہیں. آپ کہتے ہیں کہ جانور ایسا جنسی عمل نہیں کرتے. ہاں ہم جانتے ہیں کہ جانور ایسا نہیں کرتے. لیکن جانور تو رتكال کو چھوڑ کر دیگر کسی وقت جماع بھی نہیں کرتے. جانور جنسی زیادتی نہیں کرتے. انسان کیوں کرتا ہے؟ بلات کرم تو سراسر جرم ہے دسرے کی آزادی بلات هر. ہم جنس پرست ایسا نہیں کرتے. انسان کیوں نہیں اسی فطری زندگی کو نہیں اپنا لیتا. جانور شررگار بھی نہیں کرتے جانور اپنے ناخن اور بال بھی نہیں کاٹتے، کپڑے بھی نہیں پہنتے، کتاب بھی نہیں پڑھتے. اگر فطری زندگی ہی زندگی ہے تو پھر تہذیب کس چڈيا کا نام ہے؟ آپ جيے قدرتی زندگی. آپ کہیں یہ تو كترك ہے. آپ کہہ سکتے ہیں. لیکن یہ بھی تو كترك ہے کہ دو بالغ باہمی رضامندی سے اپنی زندگی بھی نہ جيے اور سماج کے روایتی اقدار کو ہی قبول کرتے ہوئے اپنی دمت خواہشات کے ساتھ زندگی گزار دیں. دمت جنسی جذبات سے، کام كٹھاو سے جو جرم اور مسائل جنم لیتی ہیں ان سے نمٹنے میں سارا سماج خود کو ناقابل پاتا ہے لیکن ایک غیر مجرمانہ عمل کو بغیر وجہ اخلاق کا حوالہ دے کر جرم کرم قرار دے رہا ہے. مزے کی بات یہ ہے کہ اور کسی بات پر ایک رائے ہوں یا نہ ہو لیکن سملےگكتا کے مددے پر بائیں بازو اور جنوبی پتھي پوری طرح متفق ہیں کہ یہ غیر اخلاقی ہے. بات بات پر بھارتی ثقافت کی حفاظت کا حوالہ دینے والے اگر اپنی سسكرتك وراثت کی جچ کو بلایا گیا تو کریں تو ہم جنس کے کئی مثال مل جايےگے. اس لئے ان بازو بجربٹٹو اور كٹھمللو سے کوئی گلہ شکوہ نہیں وہ تو ہیں ہی روایت کے پجاری. لیکن ترقی پسند اور جنوادي دانشوروں / پرچاركو کا کیا کریں جو ان کے سر میں سر ملا رہے ہیں. پھدےل كاسترو نے سگرو اعلان کیا ہے کہ کیوبا میں ایک بھی ہم جنس پرست نہیں ہے. اب پھدےل كاسترو کوئی بات کہہ دے تو پھر بائیں بازو کی جنواديو کے لئے کہنے کو کچھ بچتا نہیں ہے. پھدےلكاسترو زندہ باد کا نعرہ لگاتے ہمارے بھی گلا نہیں تھکتا لیکن یہ بات کچھ ہضم نہیں ہوئی کہ ان کے ریاست میں ایک بھی ہم جنس پرست نہیں ہے. یہ بالکل ویسا ہی ہے جیسے آسمان سے آدم کو دھکیل دیا گیا ہو. اب آدم کا کیا ہے؟ وہ نئی دنیا بسا لے گا، جس میں بسنت آئے گا، پھول مهكےگے اور پنچھی چهكےگے. اور تمہارا آسمان يكيكن وہ ایک دن اجڑ جائے گا. کیونکہ تم نے آزادی کشی کی ہے. میں غلط سکتا ہوں لیکن یہ بھی نہیں ہو سکتا کہ آپ کو بہت بڑا ہو تو تمہاری ساری باتیں سهي ہیں اور وہ سب مان ہی لینی چاہئیں. آپ یہاں پوجي کے پجاری رہ سکتے ہیں ہم جنس پرست نہیں. ہمیں تو نہیں چاہیے ایسا جنت. ہم کو معلوم ہے جنت کہ حقیقت لیکن دل کو بہلانے کو غالب یہ خیال اچھا ہے.جس وچارك نے یہ کہا کہ میں تمہاری بات سے متفق نہیں ہوں لیکن تمہارے اس حق کی حفاظت کے لیے میں اپنی جان دے دوں گا انسانی حقوق کا سب سے بڑا حامی ہے. ہم جنس پرستی کو اسی نقطہ نظر سے دیکھا تولا جانا چاہیے اور یہ تبھی ہو سکتا ہے جب ہم اپنے دماغوں سے اخلاق کے گھنے جالو کو حذف کر دیں. جب تک ہمارے دماغوں کو صدیوں پرانے ان جالو نے گھیر رکھا ہے روشنی کہ کوئی کرن اندر نہیں جا سکتی اور جب تک دماغ روشن نہیں ہوں گے ہم کوئی فیصلہ وقت کے مطابق نہیں لے سكےگے. یہ کتنی وكھتر بات ہے کہ آج دہشت گرد قاتلوں کے بنیادی حقوق، جنسی ورکروں کے جنسی تجارت کے حقوق، لو ان رلےشنشپ کے حقوق اور تو خود کشی کے حق کے حامی موجود ہیں جن کی گات سنی جاتی ہے اور جنہیں حقارت سے بھی نہیں دیکھا جاتا لیکن ہم جنس پرستی کے حقوق کا ذکر آتے ہی لوگوں کے چہرے پر مسکراہٹ ويگياتمك دكھيي دینے لگتی ہے. کچھ لوگ حقارت کی نگاہ سے دیکھتے ہیں کچھ لوگ چپ رہنے میں سمجھاداري دکھاتے ہیں. جو لوگ بات چیت کرتے بھی ہیں ان میں چٹكارے لینے کا احساس رہتا ہے یا اپدےشتمك ارادہ. وہ سمجھتے ہیں يےے ناسمجھ گناہ کرم میں ملوث لوگ ہیں انہیں صحیح راستے پر لانا ہماری ذمہ داری ہے یا انہیں سمال سے دور رکھا جانا چاہئے تاکہ سماج پاک ساتوک رہے. ان سے پوچھو تمہاری روایتی طرز زندگی نے تو سماج میں کتنی طرح کی مشکلات پیدا کر دی ہیں. آج سب کو نا کھانے کو روٹی ہے نا رہنے کو مکان. نا صاف پانی ہے نہ صاف ہوا. تم نے کتنی پیہم آبادی بڈھايي ہے کہ نہ کہیں فطرت، قدرت محفوظ ہے اور نہ کہیں قدرتی زندگی. پھر بھی تم سماج اور فطرت کے ركھوالے ہونے کا دم بھرتے ہو. ہم جنس پرست ایسا جرم نہیں کرتے. پھر بھی ہم کہتے ہیں کہ آپ اپنی زندگی جیو اور انہیں ان کی زندگی جینے دو. جیسے وہ آپ کو کچھ نہیں کہتے ویسے ہی آپ بھی ان کے بیڈروم میں جھكنا بند کر دیں. کم الفاظ میں کہوں - ہمارا بھی حق ہے بهارے چمن پر یہ کہنا تو کوئی بغاوت نہیں ہے. اب گھوڈے کی طرح ہیں ہیں مت کرنے لگنا |
सितवत अहमद -अमरनाथ जी, मेरा मानना है की आप समलैंगिक के मौलिक अधिकारों की बात करते करते आपके शब्द समलैंगिक की पूरी वकालत कर गए. लघु में मेरा ये मानना है
जवाब देंहटाएंसमलैंगिक का मौलिक अधिकार - कोई समस्या नहीं है, जब तक वे अपने अधिकारों के साथ हस्तक्षेप
जन्म (अगर कोई हो) समलैंगिक - एक छोटी सी समस्या है,
से एक्वायर्ड समलैंगिक प्रवृत्ति - बड़ी समस्या
विस्तार में सबसे पहले बात करते हैं Naturality की, क्या मुख्य ये मान लूं की अगर सारी दुनिया गे हो दुनिया ऐसे ही चलती रहेगी ?? मेरे खयाल से जो समलैंगिक अधिकार चिल्ला रहे हैं वो ही नही होते अगर उनके माँ बाप समलैंगिक होते करने के लिए. प्राकृतिक कारक मैं यहाँ आराम करो.
अगला क्या समलैंगिक विवाह गलत करनाहै?
1. अभी वे चाहते हैं कि उनके विवाह वैध करने के लिए?? आप समारोह में भाग लेने चाहेंगे??अगर वे जोड़ी के बारे में पूछनाचाहें तो , क्या आप अपने बच्चों को बताओगे?
2. क्या तुमने कभी एक समलैंगिक flirted गया है?? वे एक निश्चित सर्कल के भीतर रहना नहीं है, वे स्त्रीगत लोगों से नए भागीदार के रूप में अच्छी तरह से और इसलिए प्राप्त करने की कोशिश - `गे` प्रवृत्ति जब वे सफल एक्वायर्ड. एक बेटा है जो एक सीधे जीवन था हो सकता है की कल्पना कीजिए, लेकिन इसके बजाय वह अपने झुकाव में परिवर्तन. यहीं आपका उनके बेडरूम में झाँकने वाली दलील कमज़ोर पैड जाती है.
तो फिर वहाँ hetrosexuality है, यह स्पष्ट रूप से कई भागीदारों, और इसलिए जिले वफादारी, बेशर्मी, और एड्स की वृद्धि की धमकी भी शामिल है.
बलात्कार की बात पर आते हैं जो की बेशक इतनी घटिया हरकत है की उसके लिये मुख्य तालिबानी सज़ा की हिमायत करता हूँ ,,,,,,,, क्या गारंटी है कि समलैंगिकों में बलात्कार की घटनाएँ नहीं होती? हालाकि ये कोई मुद्दा नहीं है.
सितवत अहमद -अमरनाथ जी,
जवाब देंहटाएंसभ्यता की बात से देखिए सभ्यता के साथ कुछ बुरी चीज़ें तक जुड़ जाती हैं, इसीलिए निरंतर सुधार चलता रहता है. इनसान की भलाई Naturality में है वरना हैं हम जानते हैं कि प्रकृति कैसे बदला लेती है. एड्स भी unnaturality की दें है हमें भूलना नहीं चाहिए. हो सकता है से कुछ भी बूरा हम देखें, अपनी ग़लतियों के नतीजे में है.
उदाहरण हर पाप के भी मिलते हैं, समलैंगिकता के उदाहरण मिलना इसके जायज़ है जाने की दलील नहीं है.
समझौते की बात बेशक की है समलैंगिकों को बूरा कहने घाव का निशान पापी अपने गिरेबान में भी झांके और बाकी बुराइयों का भी प्रखर विरोध करेन के लिए है. समलैंगिक पर बराबर अत्याचार का भी कोई औचित्य नहीं है. बेहतर इंसान वो पाल ही रहे हैं, स्कूल, कॉलेज, बाजार, रोजगार, समाज सब उनके लिये खुले हैं, लेकिन हमें याद रखना होगा कि इंसान के अंदर बुराइयों की तरफ खीचने की अंतर्निहित क्षमता होती है, लॉग व्यभिचार फिर आनंद के नये नये तरीके निकालते रहते हैं, और इनका प्रचार प्रसार भी हो जाता है (यहाँ मेरा इशारा हेतेरोसेक्सुँल्स की तरफ है जो बढ़िया नही हैं की वो समलैंगिक माननीय लेकिन अलग भूलभुलैया के लिए वो अनावश्यक को भी नहीं छोड़ रहे).
जैसा की मैंने कहा की मामला इतना सीधा नहीं है. मजबूरी से कोई दिक्कत नहीं, लेकिन ये शौक बुरी चीज है. दुनिया से नही बीमार के ज़रूर हो सकती है करने के लिए चलेगी है. हमें पता है कि अभी स्त्रैघ्ट्स भी कितना काम कर रहे हैं, वासनाओं से आगे और आगे ही असली जीवन है |
प्रतिउत्तरः-
जवाब देंहटाएं1- व्यक्तिगत स्वतंत्रता का जन्मजात अधिकार सबका है। समलैंगिकों के इस अधिकार का सम्मान किया जाना चाहिये। उलके साथ भेदभाव और उत्पीडन बन्द होना चाहिये। अपनी इस बात के समर्थन में मैं किसी भीसीमा तक जाने को तैयार हूॅं।
2- पूरे समाज के समलैंगिक होने, समलैंगिक विवाह, और समलैंगिको के सन्तान होने की बात के सवाल उतावलेपन के सवाल हैं। इनके बारे में स्पष्टीकरण देने का मतलब समलैंगिक होना, समलैंगिकता का समर्थक होना, समलैंगिकता प्रचारक प्रसारक होना हो जायेगा जो नासमझी की बात होगी।
पूरा समाज समलैंगिक नहीं हो सकता। पूरा समाज आज या कभी भी एक स्थिति में नहीं होता। समाज की धारा मुड तुडकर बहती रहती है। यही जीवन है। स्थिरता सडाव है। सन्तानोत्पत्ति के सवाल का जबाब भी यही है। वैसे आवश्यकता आविष्कार की जननी है। यहीं प्राकृतिक जीवन शैली की बात करें। निश्चय ही परम्परागत वैवाहिक जीवन सुखद है लेकिन वह समाज के अनुशासित और नियमित है प्राकृतिक नहीं है। प्राकृतिक जीवन में विवाह जैसी कोई बात नहीं है।
प्राकृतिक जीवन यह है कि स्त्री के ऋतुमति होते ही दैहिक सम्बन्ध हो और पुनः ऋतुमति होने तक सामान्य जीवन जियें। लेकिन ऐसा नहीं है नर नारी में सन्तानोपत्ति के लिये ही काम सम्बन्ध नहीं हांेते कामानन्द के लिये भी होते हैं जो ना पाप है ओर ना अपराध।
परिचर्चा में कुछ तर्क ऐसे हैं जैसे विधवा विवाह के समर्थक से कहा जाये कि पहले पत्नि को विधवा करो और फिर उसका विवाह करना। अभी तो अन्तरजातीय विवाह भी ठीक से स्वीकार्य नहीं हुये हैं तो विवाह गलत है?अपने और पराये के बेटे का प्रश्न नहीं है। समलैंगिक भी किसी के बेटे/बेटी हैं किसी के मॉं/बाप हैं। वे गैर अलगन हीं होते। उन सबमें भी वही सब गुण अवगुण होते हैं जो अन्य में होते हैं।
संक्षेप में मूल बात यह है कि किसी के भी बेडरूम की निगरानी नहीं होनी चाहिये। अगर हाती है तब कोई रूकने वाला नहीं है बेमतलब का तमाशा और उत्पीडन जरूर होगा।