एक थे पजाब के मुख्य मंत्री बेअंत सिंह। उनके शासनकाल में सिख नौजवानों के फर्जी मुठभेड़ में मारे जाने के अंतहीन किस्से हैं। उनका अंत भी गुस्साये सिखों की गोली से हुआ । उनकी हत्या में कसूरवार पाये गये सरदार बलवंत सिंह राजोआना को 31 मार्च 2012 को फाँसी चढाने के आदेश कोर्ट ने दिये हैं। लेकिन वोटों के लालची सियासी नेताओं ने अपने मतभेद भुलाकर बलवंत सिंह को फाँसी दिये जाने का विरोध शुरू कर दिया है। व्यक्तिगत रूप से किसी के वैध या अवैध तरीके से प्राण लेने का मैं भी विरोधी हूँ।हत्यारों को बामशक्कत उम्र कैद की सजा मिलनी चाहिए । यह नियम सब पर लागू होना चाहिये | उद्देश्य कितना भी पवित्र क्यों न रहा हो लेकिन मानव जीवन का असामायिक घात घोर पाप है। पंजाब के आतंकवाद के दौर को याद करें । तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने अपने ही पाले पोसे भस्मासुर भिंडरावाले को ख़त्म करने के लिये स्वर्ण मंदिर में सेना भेजकर आपरेशन ब्लू स्टार चलाया जिसमें जनरैल सिंह भिंडरवाला मारा गया और स्वर्ण मंदिर को क्षति भी पहुँची । सिख स्वर्ण मंदिर के अपमान को सहन नहीं कर सके और इंदिरा गाँधी को मारकर ही दम लिया। लेकिन ख़ास बात यह है कि तब से अब तक पंजाब की नदियों में बहुत पानी बह चुका है और इन्दिरा गाँधी के वारिसों ने भी सिखों के जख्म पर मरहम रखने में कोई कसर नहीं छोडी है लेकिन सिखों की नफ़रत कम नहीं हुई। आज भी अगर आप स्वर्ण मंदिर जायें तो इंदिरा गाँधी के बारे में वहाँ यह इबारत लिखी मिलेगी -'उसने जैसा किया वैसा फल पाया।' क्या यह देशद्रोह की बात नहीं है कि देश की प्रधानमंत्री के हत्या को जायज ठहराने वाली इबारत धर्मस्थल पर लिखी जाये ? उसी अकाल तख़्त से आज फिर एक आतंकवादी हत्यारे के पक्ष में आवाज उठ रही है।आवाज उठाने पर आपत्ति नहीं ऐतराज इस बात पर है कि उन्होंने अभी भी अपनी गलतियाँ दुरुस्त नहीं की है।क्या इस देश में लोकतंत्र होने का ये मतलब है कि आप धर्मस्थलों में बैठकर हत्यारों को सरोपें भेंट करें ? क्या दुनिया के किसी और देश में ऐसी आजादी है ? बहरहाल पुराने जख्म हरें हो गयें हैं उस दौर की एक अपनी कविता याद आ गई है आप भी देख लीजिये ।
ये पंजाब की धरती जिसमें ऋषियों की रम रहीं ऋचायें,
जहॉं उठे स्वाहा के स्वर औ जहॉं महकती प्रणय कथायें,
जहॉं उठे स्वाहा के स्वर औ जहॉं महकती प्रणय कथायें,
याद मुझे इतिहास आ रहा विश्वविजेता वीर सिकन्दर,
शोणित से तलवारे धोता चढ आया जब भारत भू पर,
इस पंजाब की धरती के ही वीरों ने उसको ललकारा,
शीश काटकर शीश चढाकर उत्तर उसको दिया करारा।
शोणित से तलवारे धोता चढ आया जब भारत भू पर,
इस पंजाब की धरती के ही वीरों ने उसको ललकारा,
शीश काटकर शीश चढाकर उत्तर उसको दिया करारा।
झेलम का जल लाल हो गया भारत गौरव चमक रहा था,
ऐरावत सम अरूण ध्वजा ले पौरव चेहरा दमक रहा था,
अरे पराजित होने पर भी जिसका शौर्य नहीं बिका था,
विश्व विजेता के कदमो में जिसका मस्तक नहीं झुका था
ऐरावत सम अरूण ध्वजा ले पौरव चेहरा दमक रहा था,
अरे पराजित होने पर भी जिसका शौर्य नहीं बिका था,
विश्व विजेता के कदमो में जिसका मस्तक नहीं झुका था
यही कहीं पर फहराता है उसका अब भी विजय निसान।
ये पंजाब देश का गौरव नहीं बनेगा खालिस्तान ।।
औ गुरूओं की पुण्य परम्परा उसको कौन भुला सकता है?
देखो दीवारों से लगता फतेहसिंह का लहु रिसता है,
जैसे कहता जोरावर छोटे का नाम बडा होने दो,
छोटा हूँ तो इससे क्या है? पहले प्राण मुझे देने दो,
देखो दीवारों से लगता फतेहसिंह का लहु रिसता है,
जैसे कहता जोरावर छोटे का नाम बडा होने दो,
छोटा हूँ तो इससे क्या है? पहले प्राण मुझे देने दो,
सवा लाख से एक लडाने गुरू गोविन्द सिंह अडे हुये हैं
पंचकेसरी बलिदानी बन मुगल फौज पर चढे हुये हैं,
गुरू परम्परा बन्द हुई पर बन्द शहादत न होगी,
गरज उठा बन्दा वैरागी फिर से नयी बगावत होगी,
मुगल राज्य को ध्वस्त करेंगें और नहीं सहना अपमान।
ये पंजाब देश का गौरव नहीं बनेगा खालिस्तान ।।
पंचकेसरी बलिदानी बन मुगल फौज पर चढे हुये हैं,
गुरू परम्परा बन्द हुई पर बन्द शहादत न होगी,
गरज उठा बन्दा वैरागी फिर से नयी बगावत होगी,
मुगल राज्य को ध्वस्त करेंगें और नहीं सहना अपमान।
ये पंजाब देश का गौरव नहीं बनेगा खालिस्तान ।।
पर हमने करवट ही बदली एक विदेशी फिर चढ आया,
सात समन्दर पार का वासी बन्दर सेना ले बढ आया,
फूट डाल आपस मे लडवा कर सारी सत्ता हथियायी,
आतंक और विनाश की ऑंधी उसने चारों ओर चलायी।
सात समन्दर पार का वासी बन्दर सेना ले बढ आया,
फूट डाल आपस मे लडवा कर सारी सत्ता हथियायी,
आतंक और विनाश की ऑंधी उसने चारों ओर चलायी।
पर इस क्रूर फिरंगी का भी जिसने हृदय कपॉं दिया था,
युद्धवीर रणजीत सिंह वह इसी माटी का दिया हुआथा,
सिंहो से कुश्ती लडते थे जिसके हरिसिंह सेनानी,
भारतवासी कैसे भूलेंगें उसकी वह अमर कहानी,
युद्धवीर रणजीत सिंह वह इसी माटी का दिया हुआथा,
सिंहो से कुश्ती लडते थे जिसके हरिसिंह सेनानी,
भारतवासी कैसे भूलेंगें उसकी वह अमर कहानी,
अगर नाम भी लें हम उसका चोंकेगा अफगानिस्तान।
ये पंजाब देश का गौरव नहीं बनेगा खालिस्तान ।।
ये पंजाब देश का गौरव नहीं बनेगा खालिस्तान ।।
इस पंजाब का जलियॉंवाला बाग तो अब भी धधक रहा है,
वीर उधमसिंह की गोली से डायर अब भी तडफ रहा है,
लालाजी का गूँज रहा है साईमन वापिस जाओ का नारा,
आजादी से जीना ही है जन्मसिद्ध अधिकार हमारा,
वीर उधमसिंह की गोली से डायर अब भी तडफ रहा है,
लालाजी का गूँज रहा है साईमन वापिस जाओ का नारा,
आजादी से जीना ही है जन्मसिद्ध अधिकार हमारा,
तोड गुलामी की जंजीरे अब इतिहास नया लिखना है,
अपनी शोणित की स्याही से नव इतिहास हमें रचना है।
भगतसिंह की कुर्बानी का दृष्य उभरता आता मन में,
लगता सबसे बडा पाप है पराधीन रहना जीवन मे,
अपनी शोणित की स्याही से नव इतिहास हमें रचना है।
भगतसिंह की कुर्बानी का दृष्य उभरता आता मन में,
लगता सबसे बडा पाप है पराधीन रहना जीवन मे,
आजादी को पाने की खातिर कितने वीर हुये बलिदान।
ये पंजाब देश का गौरव नहीं बनेगा खालिस्तान ।।
ये पंजाब देश का गौरव नहीं बनेगा खालिस्तान ।।
कौन है वो जो सौदा करता है अब इस आजादी का,
कौन है वो जो घर में मातम लाता है बरबादी का,
कौन है वो जो हरियाले पंजाब में आग लगाता है,
कौन है वो जो देश के टुकडे फिर से करना चाहता है,
कौन है वो जो घर में मातम लाता है बरबादी का,
कौन है वो जो हरियाले पंजाब में आग लगाता है,
कौन है वो जो देश के टुकडे फिर से करना चाहता है,
कोई भी हो कह दो उससे देश नही यह बॅंट सकता,
भगत सिंह की धरती पर न भिन्डरवाला रह सकता,
भगत सिंह की धरती पर न भिन्डरवाला रह सकता,
जनरल वैद्य के हत्यारे भी जिन्दा न रह पायेंगें,
‘जिन्दा’ तेरी लाश सडक पर पागल कुत्ते खायेगें
उठो शूरवीरों के वशंज इनको मटियामेट करो,
ये गददार देश के दुश्मन इन्हें आग की भेंट करो,
‘जिन्दा’ तेरी लाश सडक पर पागल कुत्ते खायेगें
उठो शूरवीरों के वशंज इनको मटियामेट करो,
ये गददार देश के दुश्मन इन्हें आग की भेंट करो,
दुनियॉं में रहने न पाये इनका कोई नामनिशान।
ये पंजाब देश का गौरव नहीं बनेगा खालिस्तान ।।
ये पंजाब देश का गौरव नहीं बनेगा खालिस्तान ।।
ये अन्धे हैं नहीं देखते भारत कितना भूखा है,
ये अन्धें हैं नही देखते कहॉं बाढ है सूखा है,
ये अन्धें हैं नहीं देखते तरूणाई क्यों पीली है,
ये अन्धे हैं नही देखते मॉं की ऑंख क्यों गीली है,
ये अन्धें हैं नही देखते कहॉं बाढ है सूखा है,
ये अन्धें हैं नहीं देखते तरूणाई क्यों पीली है,
ये अन्धे हैं नही देखते मॉं की ऑंख क्यों गीली है,
ये अन्धे हैं नही देखते दुल्हन क्यों जल जाती है,
बहनें बाजारों में आकर आखिर क्यों बिक जाती हैं,
क्यो मजबूर बुढापा मॉंगें गन्दी गलियों में भिक्षा,
क्यो मासूम लडकपन पाता पाकिटमारों से शिक्षा,
बहनें बाजारों में आकर आखिर क्यों बिक जाती हैं,
क्यो मजबूर बुढापा मॉंगें गन्दी गलियों में भिक्षा,
क्यो मासूम लडकपन पाता पाकिटमारों से शिक्षा,
जिन ऑंखों से ये भी देखें दो इनको वो ऑंखें दान,
ये पंजाब देश का गौरव नहीं बनेगा खालिस्तान ।।
ये पंजाब देश का गौरव नहीं बनेगा खालिस्तान ।।
-अमरनाथ 'मधुर'
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