भाषा के बारे में लोग कैसे कैसे दुराग्रह पाले हुए हैं.अंगरेजी नहीं पढेंगें हिन्दी पढेंगें .हिन्दी नहीं पढेंगें प्रांतीय भाषा पढेंगें.प्रांतीय भाषा नहीं पढेंगें मातृभाषा भाषा पढेंगें. ये किसने कहा कि गैर की माँ को माँ मानो तो अपनी माँ माँ नहीं रहती है? या किसने कहा कि अपनी माँ को भूलकर दुनिया में किसी की माँ को भी माँ कहा जा सकता है ?भाषा से हमारा रिश्ता माँ और बेटे जैसा होता है .यदि हमारे मन में अपनी माँ के प्रति प्यार है सम्मान है तो फिर हम सारी दुनिया में हर माँ को माँ जैसा सम्मान देंगें और माँ भी माँ होती है जो उसे माँ का दर्जा देता है वो भी उसे बेटे जैसा प्यार करती है .-अमरनाथ 'मधुर'
गिरिजेश तिवारी - मित्र, आपकी कामना हम सब की कामना है. मगर बिना इन्कलाब के इसे लागू करना असंभव है, शासक वर्ग भाषा के सहारे ही गुलाम बनाता है, बांटता है और शासन करता है. क्रान्ति ही भाषा के संकट का भी समाधान करने में समर्थ है.
अजय सिंह - मै भी इन विद्यालयों का विरोध करता हूँ जो बच्चों को सिर्फ गुमराह कर रहे हैं, जो अध्यापक फ्रेश को फरेस और फ्रंट को फारेंट बोलता है उनसे पढ़वाता है , और तो और अब कुछ लोग हिंदी को अंग्रेजी बनाने में मशगूल है उदाहरणार्थ रिजिड में ता जोड़ कर रिजिडत और स्टैंडर्ड को स्टेन्डरतम , दृढ को दृढनेस व् अन्य, क्यूँ कि अभिभावक को ही नहीं पता कि उसके बच्चे को क्या पढाया जा रहा है, क्या आप उन अध्यापकों को माफ करेंगे ? बड़े शहरों में अभिभावक यूनियन है जो इनकी जांच करते है पर छोटे शहरों में ये नहीं हो पता जिसका परिणाम आज का छात्र भुगत रहा है,
अमरनाथ 'मधुर' - एक और महत्वपूर्ण बात मैं यहाँ कहना उचित समझता हूँ कि हिन्दी की चिंता करने वाले अन्य भारतीय भाषाओं के प्रति आपराधिक उपेक्षा का रुख अपनाए हुए हैं .खासतौर से उर्दू के प्रति ये हिकारत का भाव रखते हैं जबकि उर्दू और हिन्दी में लिपि के अतिरिक्त और कोई बुनियादी फर्क नहीं है. सही मायने में जो आम भाषा है वही वास्तविक हिन्दी है, उर्दू है. लेकिन जो किताबी भाषा है और जो निश्चय ही आम आदमी की भाषा नहीं है वो एक दूसरे से बहुत फासले पर दिखाई देती है. आजादी के बाद जिस भाषा का सबसे ज्यादा अहित हुआ है वो उर्दू है जिसके लिए हिन्दी के प्रति अतिरिक्त उत्साह भी जिम्मेदार है.विद्यालय स्तर पर हिन्दी और उर्दू एक साथ पढाई जानी चाहियें. साहित्य की पाठ्य पुस्तकें एक और देवनागरी लिपि में और दूसरी और फारसी लिपि में छापी जानी चाहियें ताकि बच्चें भी यह तय कर सकें कि दुष्यंत कुमार की गजलें हमारी भाषा की हैं या बशीर बद्र की गजलें हमारी भाषा की हैं?ये दोनों एक भाषा की हैं ?या बशीर बद्र उर्दू के और दुष्यंत कुमार हिन्दी के शायर हैं ? भाषाई आक्रमणकारियों को आईना दिखाना जरूरी है.
Ashok Dogra
If the present trend persists and I do not see in near future any reverse then Hindi will follow Urdu infect it is already doing so. Madhurji If you talk about " आजादी के बाद " then your beloved leader Nehru is responsible for this trend.
Because Nehru was Indian by birth only he was a Englishman by thought and action and he was never interested in Hindi. If Russians, Japanese and Chinese can study in their own languages and compete the world why not Indians. This Congress party never tried to implement even tribhasha formula.9 hours ago · · 2
अमरनाथ 'मधुर' -हिन्दी भाषी राज्यों ने त्रिभाषा फार्मूला ईमानदारी से लागू नहीं किया है. उनहोंने तीसरी भाषा के रूप में संस्कृत को ले लिया जबकि उन्हें किसी अन्य प्रांत की भाषा को पढ़ना था.अब अहिन्दी भाषी राष्ट्र भाषा हिन्दी, अंगरेजी और अपने राज्य की भाषा पढते हैं जबकि हिन्दी भाषी प्रदेश अंगरेजी, राष्ट्र भाषा हिन्दी और तीसरी भाषा के रूप में संस्कृत पढ़कर छुट्टी पा जाते हैं. अहिन्दी भाषा भाषियों में अगर राज्य की भाषा और मात्र भाषा अलग अलग हैं तो एक चौथी भाषा सीखने का दबाव और बढ़ जाता है.चारों भाषाओं के सीखने की वकालत प्राथमिक शिक्षा के स्तर से ही की जाती है ऐसे में बाल्यावस्था पर शिक्षा का कितना बोझ बढ़ जाता है.
गुरुवार, 23 अगस्त 2012
एक बहस भाषा पर
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