शुक्रवार, 3 अगस्त 2012

आओ चलें इरोम शर्मीला से राखी बंधवाये



      ये समाज सेविका नहीं है स्वतंत्रता सेनानी है. मणिपुर में भारतीय फोजों द्वारा आदिवासी औरतों के शीलहरण और फ़ौज को दिए गए असीमित अबाध अधिकारों के खिलाफ गांधी वादी तरीके से अनशन पर है .और यह साबित कर रही है कि उसकी शांतिपूर्ण आवाज को न सुनकर निर्दयी सरकारें बेबस जनता को  हथियार उठाने पर मजबूर करती हैं.इस वीरांगना पर ध्यान दीजिये जो ग्यारह बरस से अनशन पर है. ये पोस्ट इसलिए दी गयी है ताकि अन्ना अन्ना चिल्लाने वाले ये देख लें कि एक औरत अपनी जायज मांग के लिए कितने लम्बे समय से अनशन पर है और देशवासी खामोश हैं. क्या देश में आदिवासियों ,महिलाओं के पक्ष में कोई आवाज नहीं उठेगी ?  कहते हैं जब बंगलादेश की स्थापना हो गयी तो जिन लड़कियों के साथ पाकिस्तानी फोजों ने बलात्कार किया था उन्हें समाज से तिरस्कृत करने की बजाय बंगाली  युवकों ने शादी करने के लिए लाईन लगा दी थी.स्वतंत्रता सेनानी वही नहीं थे जिन्होंने मुक्तिवाहिनी में भर्ती होकर युद्ध किया  या जेल में बंद रहे स्वतंत्रता सेनानी वह भी थीं जिनका तन ही नहीं अंतर्मन भी जख्मी हुआ था.उनके लिए आत्मसम्मानी और भावुक बंगाली युवक तनकर खड़े हो गए थे. अब अपने देश को देखिये आदिवासी औरतों के मान सम्मान और मणीपुर के लोगों के सवैंधानिक  अधिकारों की हिफाजत के लिए इरोम शर्मीला शर्मीला ग्यारह सालों से भूख हड़ताल पर है और अन्ना के लिए जमीन आसमान एक करने वाला मीडिया चुप है, सारा देश चुप है. क्या हमारे लिए ये शर्म की बात नहीं है कि इस देश में इरोम शर्मीला ,सीमा आजाद, सोनी सोरी अकेले दम लड़ती रहें और हम भाई द्वारा बहिन की रक्षा करने का नाटक करते रहें.
آؤ چلیں اروم شرمیلا سے راکھی بدھوايے

یہ سماج سےوكا نہیں ہے آزادی سےناني ہے. منی پور میں بھارتی پھوجو کی طرف سے قبائلی عورتوں کے شيلهر اور فوج کو دیئے گئے لامحدود ابادھ حقوق کے خلاف گاندھی وادی طریقے سے انشن پر ہے. اور یہ ثابت کر رہی ہے کہ اس کی پرامن آواز کو نہ سن کر نرديي حکومتیں بے بس عوام کو ہتھیار اٹھانے پر مجبور کرتی ہیں. اس ويراگنا پر توجہ دیجئے جو گیارہ برس سے انشن پر ہے. یہ پوسٹ اس لئے دی گئی ہے تاکہ انا انا چلانے والے یہ دیکھ لیں کہ ایک عورت اپنی جائز مطالبہ کے لئے کتنے طویل عرصے سے انشن پر ہے اور دیشواسی خاموش ہیں. کیا ملک میں قبائلیوں، خواتین کے حق میں کوئی آواز نہیں اٹھے گی؟
کہتے ہیں جب بنگلہ دیش کا قیام ہو گی تو جن لڑکیوں کے ساتھ پاکستانی پھوجو نے عصمت دری کیا تھا انہیں سماج سے ترسكرت کرنے کی بجائے بنگالی نوجوانوں نے شادی کرنے کے لئے لائن لگا دی تھی. آزادی سےناني وہی نہیں تھے جنہوں نے مكتواهني میں داخل ہو کر جنگ کیا یا جیل میں بند رہے آزادی سےناني وہ بھی تھیں جن کا تن ہی نہیں اترمن بھی زخمی ہوا تھا. ان کے لئے اتمسمماني اور جذباتی بنگالی نوجوان تنكر کھڑے ہو گئے تھے. اب اپنے ملک کو دیکھیے قبائلی عورتوں کے مان احترام اور ميپر کے لوگوں کے سوےدھانك حقوق کی حفاظت کے لئے اروم شرمیلا شرمیلا گیارہ سالوں سے بھوک ہڑتال پر ہے اور انا کے لئے زمین آسمان ایک کرنے والا میڈیا خاموش ہے، سارا ملک چپ ہے. کیا ہمارے لئے یہ شرم کی بات نہیں ہے کہ اس ملک میں اروم شرمیلا، سرحد آزاد، سونی سوری اکیلے دم لڑتی رہیں اور ہم بھائی کی طرف سے بہن کی حفاظت کرنے کا ڈرامہ کرتے رہیں.



1 टिप्पणी:

  1. 1-रोहित शर्मा -जरुर .

    2-आतिश शर्मा -यही शर्मिला अलग मिज़ोरम की बात करती है .

    3-श्रद्धान्शु शेखर -शराब (ब्रश्ताचार के मुद्दा ) ने शरीर (समाज और देश ) का दर्द (दूरी महत्वपूर्ण समस्याए ) भुला दिया है ..सुबह होने प् r नशा उतरेगा ..

    4-सुजीत सिंह- i wonder why she in not being supported by the people of another noble कौसे

    5-Imam Ali- She is really great social activist.

    6-अनाम विद्रोही सहत शत प्रणाम

    7-
    फारुख दोन - इसकी तो मीडिया को भी खबर नहीं होगी ,बस सब अन्ना के पीछे भाग रहें हैं ,

    8
    देशभक्त जाट- ‎अमरनाथ भाई इसमें कसूर मेरे जैसे अन्ना -अन्ना चिल्लाने वालो या आम इंसानों का नहीं यदि इमाम भाई का कमेन्ट न पढता तो मुझे तो पता ही नहीं था की ये महान समाज -सेविका है इसके लिए दोषी मीडिया है जो समाज -सेवको की बजाये नेताओ के कुत्ते दिखता है
    ‎अमरनाथ भाई जानकार i देने के लिए शुक्रिया अब आपसे एक सवाल भाई मैं डेल्ही में बैठा हूँ कैसे पता चलता मुझे इनके बारे में यदि पता होता तो जैसे अन्ना -अन्ना चिलाया इस महान वीरांगना की भी जय होती क्यूंकि अछे काम करने वालो की हमेश जय ही होती है

    9-अमरनाथ मधुर- दिल्ल्ली ही पूरा भारत नहीं है . इरोम के बारे में नेट पर सर्च कर लें .

    10-सत्येन्द्र यादव - कुछ आयातित बिचार्धरा के बीमार लोग ही सपना जैसा सोचते है ... मधुर जी का मुद्दा काबिल -इ -तारीफ है .. आवाज उठनी ही चाहिए ..

    11-गोविन्द सिंह परमार - इनके दर्द में न कराहों तो कोई बात नहीं
    इनके दर्द को महसूस कर लिया जाए.

    12-मनु राणा- मैं इनके जज़्बे को सलाम करती हूँ

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