गुरुवार, 13 जून 2013

यही सोच रहे हैं


                       1997 में तो यूनाइटेड फ्रंट के सभी दल ज्योति बसु को प्रधान मंत्री बनाने को सहमत थे लेकिन उनकी पार्टी ने ही तय किया कि जब तक हम किसी मोर्चे के बड़े घटक नहीं होंगे तब तक नेतृत्व हमारा नहीं होगा. ज्योति बसु ने बाद में एक प्रेस कांफ्रेस में इसे ऐतिहासिक भूल करार दिया लेकिन पार्टी के निर्णय का सम्मान किया पी एम् की कुर्सी के लिए उछल कूद नहीं दिखायी. भाकपा और माकपा में बुजुर्ग नेताओं ने किस तरह युवा नेताओं के लिए मार्ग दिया भाजपा के हाई फाई ड्रामें को देखते हुए वह भी याद करने लायक है . 
   एक और उदाहरण है कांग्रेस ने चुनाव  में बड़ी पार्टी के रूप में विजय हासिल की सर्वसम्मति से नेता चुने जाने और घर पर पार्टीजनों के भारी दबाव प्रदर्शन के बाद भी सोनिया गांधी ने पी एम् पद स्वीकार करने से मना कर दिया.
     लेकिन आज क्या हो रहा है ? अभी पी एम् पद बहुत दूर है. पी एम् पद के लिए पार्टी से नेता घोषित होने के लिए ही पार्टी के चाल बाज नेताओं ने अपने बुजुर्ग नेता को ठिकाने लगा दिया है. एक तरफ जहां वो सठियाया बुजुर्ग रूठ रहा है वहीँ दूसरी तरफ पार्टी के दंगाईयों का हजूम उसके घर के बाहर नारे पोस्टर लेकर टूट रहा है ,चिल्ला रहा है हमारा रास्ता खाली करो भाजपा को बख्स दो.
    ये वही पार्टी है जो हर बात में अपनी महान संस्कृति और परंपरा की दुहाई दिया करती है. क्या यही उसकी परम्परा है ? क्या इससे अच्छी परंपरा उन दलों के नेताओं ने स्थापित नहीं की है जिन्हें वे पानी पी पी कर कोसते हैं ? कभी जिनका नेतृत्व उन्हें विदेशी दिखता है और कभी विचारधारा विदेशी दिखती है .स्वदेशी सस्कृति और परंपरा का जैसा प्रदर्शन भाजपा कर रही है वो शायद ही कहीं देखने को मिलेगा .उस पर भी गरूर ये कि हम सांस्कृतिक राष्ट्रवादी हैं. अब ऐसे राष्ट्रवादियों  को क्या कहा जाए ? बस  युवा शायर वसीम अकरम त्यागी के इस शेर पर  गौर फरमाए  - 

कुछ रोज से हम लोग यही सोच रहे हैं
हम लाश हैं और गिद्ध हमें नोच रहे हैं.
            

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