मंगलवार, 18 जून 2013

'क्या फर्क है?' लघु कथा - वसीम अकरम त्यागी

लघु कथा 'क्या फर्क है?' - वसीम अकरम त्यागी, 



'पापा ये लोग हमेशा यही नारा क्यों लगाते हैं कि मंदिर वहीं बनायेंगे, ? क्या हमारे गांव के मंदिर में यादराम पुजारी से काम नहीं चल रहा है ? वैसे ये कहां मंदिर बनाने का नारा लगाते हैं कल हमारे मास्टर जी भी कह रहे थे कि इस बार  रामलला को विराजमान करके ही दम लेंगे....... '
 'पापा बताओ न ऐसा क्या है उस जगह में ?' 

'बेटा कुछ नहीं ये सब बेकार की बातें हैं.' 

'नहीं पापा ये बेकार की बातें नहीं है. मेरे दोस्त रोहन, सुनील भी कल कह रहा था इस बार मुल्लाओं को पाकिस्तान भेज दिया जायेगा.'

'बताओ न पापा ये मुल्ला कौन लोग हैं ? उन्हें ये क्यों पाकिस्तान भेजना चाहते हैं ?' 

      बच्चा अपने पापा से ये सवाल लगातार दोहरा रहा था.  बच्चे की बातों को सुनकर उसके पापा की आंखों में 1992 का मंजर उतर आया था, और पाकिस्तान भेजने का नाम सुनकर वह माजी के उन जख्मों को कुरेदने लगा था जिसमें इंसानों से भरी ट्रेनों को काटा गया था. खौफ उसके माथे पर उभर आया था. इतने में ही बच्चा फिर बोल उठा.  

'पापा वो शाहिद खान कल रोहन को कह रहा था कि तुम्हारा धर्म गलत है हम तुम्हारे धर्म से नफरत करते हैं तुम काफिर हो.'

'क्या पापा उनका धर्म गलत है ? क्या पापा रोज सुबह सुबह आप भी इन्हें गाली देने जाते हो सर पर वो टोपी लगाकर ?' 

'उसने अपने बेटे के सर पर हाथ फैरते हुऐ कहा बेटा ऐसा नहीं है. मैं किसी को गाली नहीं देता और न ही हमारा धर्म इसकी इजाजत देता है.'

'तो फिर पापा शाहिद........ '

'वह कुत्सित मानसिकता का शिकार है. इस्लाम तो यह कहता है कि तुम उनके मज्हब को बुरा न कहो ताकि  वो तुम्हारे मज्हब को बुरा न कहें.  उनका धर्म उनके लिये और तुम्हारा धर्म तुम्हारे लिये..... '

'तो पापा शाहिद ऐसा क्यों कह रहा था ?'

'बेटा ये उसके घरवालों ने बताया होगा.'

'मगर पापा रोहन मुल्ला किसे कह रहा था ?' 

'बेटा वह भी उसी माहौल की पैदाईश है जिसका शाहिद. बस इतना अंतर है कि शाहिद के पापा टोपी लगाते हैं और रोहन के पापा तिलक लगाते हैं........ '

तब से बच्चा टोपी और तिलक के अंतर को समझने की कोशिश कर रहा है......

 - वसीम अकरम त्यागी

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