
पश्चिम से कहीं सूरज निकालता है ? सूरज हमेशा पूरब से निकालता आया है और पश्चिम में डूबता रहा है . आप पश्चिम की तरफ मुँह करके क्या ताक रहे हो ? डूबने वाले सूरज से सुबह नहीं होने वाली है और डूबते हुए सूरज को अर्ध्य चढाने की न हमारी सस्कृति है और न ये कोई समझदारी की बात है.
वैसे एक बात की मैं संघी स्वयं सेवकों की तारीफ़ करता हूँ कि वो झूठ बड़ी दिलेरी और खूबसूरती से बोलते हैं .झूठ बोलते हुए शर्माते तो हरगिज नहीं हैं .ये हम टी वी न्यूज चैनलों पर भी रोज देख सकते हैं.
न्यूज चैनल पता नहीं क्या सोच समझकर मोदी मोदी चिल्लाने में लगे हैं। अगर किसी राजनेता का मुप्त प्रचार हो रहा है तो वा मोदी है.कुछ समय के लिये नीतीश कुमार भी चर्चा में आ गये हैं लेकिन आप देखना वे ज्यादा दिन चलने वाले नहीं हैं , मीडिया सिर्फ मोदी की चर्चा करेगा. भारत के चुनाव जब होंगें तब होंगें भरतीय मतदाता जब वोट डालेंगें तब डालेंगे लेकिन मीडिया मोदी को प्रधान मंत्री बना चुका है. ये अलग बात है कि एक बार नहीं अनेक बार मीडिया ने जिसे ताज पहनाया जनता ने उसे सिंहासन के पास भी नहीं फ टकने दिया है। मीडिया मुगल के बादशाह बनने के दिन लद गये हैं. ये बात पहले भी साबित हो चुकी है और अगले चुनाव में भी साबित हो जायेगी ।
ध्यान देने की बात है कि मोदी और उस का भगवा साम्प्रदायिक गठबन्धन ऐसा है जो सत्ता से बहुत दूर है क्योंकि उनके साथ कोई दूसरा दल आने को तैयार ही नहीं है इसके विपरीत राहुल गॉंधी और उनकी पार्टी काग्रेस आज भी अन्य दलों को स्वीकार्य है। राहुल गॉंधी के नाम पर तो शायद ही कोई विरोध कर पाये क्योंकि वह बिना दाग धब्बे वाले युवा हैं लेकिन उनको लेकर कोई कयास नहीं लगाये जा रहे हैं और ज्यादा संभावना यही है कि देश के अगले प्रधान मंत्री वहीं होंगे। इस आकलन का आधार यही है कि अगर मीडिया का पुर्वानुमान भी सच मान ली जाये जो अक्सर सच होता नहीं हैं तो अगले लोक सभा चुनाव परिणाम के बाद भाजपा पहली बडी पार्टी होगी तो दूसरी बडी पार्टी काग्रेंस ही रहेगी । कांग्रेस को अन्य दलों का सहज समर्थन मिलेगा जबकि भाजपा नीत गठबन्धन को बडी मुश्किल से कोई अन्य दल समर्थन देगा। ऐसे में सरकार राहुल गाँधी के नेतृत्व में ही बनेगी। अगले चुनाव में किसी एक दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलने वाला है इस पर सब एक राय हैं लेकिन एक ओर भी संभावना है कि तीसरा मोर्चा भी इन बडों दलों के गठबन्धन के आसपास ही रहे और सरकार उसके नेतृत्व में ही बने । अब इसकी चर्चा मीडिया क्यूॅ नहीं करता है ये बात समझ से परे है।
भारत के वर्तमान राजनीतिक परिदृश्य को देंखेगे तो आप पायेंगें कि हर राज्य में दो मुख्य क्षेत्रीय पार्टियॉं हैं जो किसी भी तीसेर या चोथे मोर्चे में एक साथ नहीं रह सकती हैं. यही तीसरे और चौथे मोर्चें के खडे होने में सबसे बडी बाधा है। लेकिन ये भी साफ है कि चुनाव उन्हीं के बीच होना है, राज्य स्तरीय अन्य छोटे क्षेत्रीय दल और राष्ट्रीय पार्टियॉं उनमें से किसी एक का हाथ पकडकर चुनाव लडने को मजबूर है. अकेले दम चुनाव लडने पर उन कथित राष्ट्रीय दलों की स्थिति खराब होती है। जब हर राज्य ऐसे चुनाव परिणाम देगा जिसमें दो क्षेत्रिय दलों के के गठबन्धन के पास अधिक संख्या में सीटें होंगी तो फिर उन्हें जोडकर चुनाव के बाद भी तीसरा और चोथा मोर्चा खडा करने में क्या कठिनाई हो सकती है?
यह कल्पना दूर की कोडी लग सकती है लेकिन देश की जनता जिस प्रकार काग्रेंस और भाजपा से तंग आो गयी है उस स्थिति को देखते हुये ऐसी संभावना के साकार होने की बहुत गुंजायश है। इसमें सबसे बडी कठिनाई यही है कि राष्ट्रीय स्तर पर गैर भाजपा और गैर कांग्रेस की राजनीतिक धारा सूख रही है लेकिन ये भी नहीं भूलना चाहिये कि पहली दो धारायें भी सिमट रही हैं और क्षेत्रीय दल मजबूत हो रहे हैं। कुछ राजनितिक पण्डितों के लिये यह राजनीतिक स्थिति निराशा पैदा करने वाली जरूर है लेकिन इसी हताशा के माहौल से हमारे संसदीय लोकतत्र के संघीय ढॉंचे के मजबूत होने के अवसर भी पैदा होगें, जब सत्ता क्षेत्रीय दलों के संघीय मोर्चे के हाथ में आयेगी तो वो मिल बैठकर राज्यों के संवैधानिक अधिकारो की रक्षा करते हुये भारत गणराज्य के संघीय स्वरूप को व्यवारिक रूप् देने का काम जरूर करेंगें जिससे लोकतंत्र सबल होगा। लेकिन मीडिया ऐसे विषयों पर कब ध्यान देता है ? वह तो हरेक दल ओर हरेक नेता को घेर घोटकर इस बात का हलफनामा लेने में लगा है कि आप मोदी के साथ हो या नहीं हो ? क्या यही मीडिया का काम है ? क्या यही मीडिया की स्वतंत्रता है ? अगर स्वतंत्र मीडिया का काम यही है कि वह मोदी के रास्ते में खडण्जा लगाने और नाली साफ करने का काम करे तो हमारी उससे अपील है कि वह गन्दगी चाहे जहॉं फेंकें उसे सार्वजनिक स्थान पर ना फैलाये। उसकी बदबू हमें घर में भी बैटने नहीं दे रही है। किसी को हमारी जीने की स्वतंत्रता में बाधा उत्पन्न करने का अधिकार नहीं है।

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