गुरुवार, 6 जून 2013

मैंने आठो याम लिखा



सुबह लिखा और शाम लिखा है मैंने आठो याम लिखा
दिल के इस कोरे कागज़ पर केवल तेरा नाम लिखा .

लिख लिख रोज मिटाता हूँ मैं शब्द लिखूँगा नहीं वृथा
एक दिन तुम तक पहुँचानी है, अपने मन की यही व्यथा
तुम अनमोल रत्न हो जग में मैं ही बस बेदाम  बिका .


यूँ तो अपनी भी राहों में फूल हजारों खिले मिले
जिनकी रंगत ललचाती थी महकाती थी गले गले
किन्तु कोई तुम्हारे जैसा फूल नहीं सरनाम दिखा.


यूँ तो मेरी सख्त हथेली में भी कई लकीरें हैं
पर उनमें तुझसे मिलने की दर्ज कहाँ तहरीरें हैं
ढूँढ रहा दिन रात उन्हें मैं उनका मुझे मुकाम बता.

सबकी प्रेम कहानी में जो गीत मिलन के गाता है
शायद भूल गया लिखने से, हमको भी ये आता है
मैं लिखूँगा स्वयं गीत वो तू गा मुक्त विराम दिखा.


 
   

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें