["सोचा था बुढापे में एक तीर्थ कर लें, तो पुण्य मिलेगा. मगर अब कसम खाई बाबू, कभी पहाड़ नहीं जाएँगे." - एक बह गए व्यक्ति
का शॉल ओढ़कर जिन्दा रहने वाले अवधेश के शब्द]
बाबा हे बाबा केदार! कैसे आयें तेरे द्वार
कैसे आयें तेरे द्वार? हम पर है कुदरत मार .
बाबा हे बाबा केदार !कैसे आयें तेरे द्वार .
हम हैं कितनी कांवड़ लायें
बाबा द्वार तुम्हारे आये
अपनी बस्ती के चौपाये
तेरे परसादों को खायें
रमुआ रहता बिन आहार उसको गम हैं कई हजार
कैसे आयें तेरे द्वार ? बाबा हे बाबा केदार!........बाबा हे बाबा केदार !कैसे आयें तेरे द्वार
घर में होता नित उपवास
रहता,मेरा तीरथ वास
मेरा तुम पर था विश्वास
रोटी की बातें बकवास
मैं तो डूब रहा मझधार, कैसे होगा बेडा पार
कैसे आयें तेरे द्वार ? बाबा हे बाबा केदार!..बाबा हे बाबा केदार !कैसे आयें तेरे द्वार
हमने हाथ लिए हैं जोड़
चाहे कोई बाँह मरोड़
फिर से द्वार तुम्हारे लाये
बख्से दौलत कई करोड़ .
मैं तो देखूंगा घर बार, मुझको प्यारा है परिवार
कैसे आयें तेरे द्वार ? बाबा हे बाबा केदार!..........कैसे आयें तेरे द्वार ? बाबा हे बाबा केदार!


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