मैं उन लोगों में नहीं हूँ भारत में गुलामी एक हजार साल से बताते हैं. अगर ऐसा मान लिया जाए तो फिर यह सिलसिला बहुत दूर तक जाएगा. शकों.हूणों .कुषाणों,आर्यों और वहाँ तक जहां तक यह धरती आदमी के चरण मुक्त थी. मुगलों ने भारत को पूरे मन से अपनाया. उनकी आस्था इतनी भी अपने मूल स्थान पर नहीं थी जितनी विदेशों में भारत मूल के लोग रखते हैं .अग्रेंजों ने कभी भारत को अपना देश नहीं माना उनकी आस्था अपनी मातृभूमि इंग्लैण्ड से हमेशा जुडी रही और वे उसके प्रति ही वफादार रहे भारत के प्रति कभी नहीं हुए. अगर इस मोटे से फर्क को समझ जाओगे तो आपको गुलामी और आजादी का सही अर्थ समझ में आ जाएगा
क्या कहा अंग्रेजों ने हवाई जहाज दिया, रेल दी, पुल दिया ? और ये पुष्पक विमान ? ये राम सेतु ? साफ़ साफ़ बताओ राम जी पुल बनाना जानते थे या नहीं ? या जिसे तुम राम सेतु कहते हो वो पुल ही है या कुछ और है ? अगर श्रीराम पुल बना सकते थे तो ऐसा तो नहीं हो सकता कि उसके बाद हमने पुल बनाने बिल्कुल छोड़ दिए हों.
धर्म और देश दोनों पर विचार की जरूरत है. धर्म का मुद्दा मैंने उठाया ही नहीं है इसलिए इस पर चर्चा नहीं करूँगा वरना यह विषय बहुत फ़ैल जाएगा . जहाँ तक देश भक्ति की बात है जिस कसौटी पर मुस्लिम हमलावरों को रखा जाता है उस पर ही अंग्रेजों,कुषाणों. हूणों,शकों, आर्यों आदि को भी रखा जाना चाहिए. यह भी देखा जाना चाहिए कि विदशों में बसे भारतवंशी लोगों की भारत भक्ति को हम किस नजर से देखते हैं ? अगर हम निष्पक्ष होकर इन सबका अवलोकन करेगें तो यह पायेंगे कि भारत के मुसलमान वो चाहे बादशाह रहें हों या आम लोग अपने प्रवासी पूर्वजों की मूल जन्म भूमि से इतनी भी आस्था नहीं रखते हैं झितानी भारत वंशी भारत से रखते हैं .इतिहास में कोई उल्लेख नहीं है कि कोई मुग़ल बादशाह अपने पूर्वजों की भूमि फरगाना के लिए छटपटाया हो .बाबर को जरूर फरगाना याद आता था लेकिन वह वहाँ पैदा हुआ था.बाकी किसी ने न तो उसे याद किया और न उसकी तीर्थ यात्रा को गया. आक्रमणकारी के रूप में मुसलमानों को जिन गुनाहों का दोषी माना जाता है वो सारे गुनाह उनसे पहले और उनके बाद आने वाले हमलावरों ने भी किये हैं .पहले आने वाले कैसे भारत देश के हकदार हो गए और मुसलमान कैसे बाहर के रह गए ये समझ से परे है . अग्रेज भी अगर इंग्लैण्ड से अपना नाता तोड़कर भारत को ही अपना देश स्वीकार कर लेते जैसा उनहोंने अमेरिका में किया था तो हमें उनके यहाँ रहने में कोई आपत्ति ना होती लेकिन अग्रेजों ने कभी इंग्लैण्ड से अपना नाता नहीं तोडा और मुसलमानों ने कभी बाहर आस्था नहीं रखी है .ये एक बड़ा फर्क है जिसे जान बूझकर गुम कर दिया गया है .
अग्रेजों के विकसित होने की बात भी बहुत सही नहीं है.जिस समय अंग्रेज यहाँ आये विज्ञान और तकनीक के कई क्षेत्रों में हम उनसे आगे थे.उदाहरण के लिए टीपू सुलतान के पास राकेट थे जो अग्रेजों के पास नहीं थे.कपड़ा बनाने में हमारा कोई सानी नहीं था.कुछ क्षेत्रों में अग्रेज आगे थे. लेकिन उन्होंने जबरदस्ती हमें पीछे धकेला और स्वयं सारे संसाधन हड़प कर विकास करते गए जिसके कारण एक बड़ा फर्क पैदा हो गया.
आप कहते हैं केवल धर्मान्तरित मुसलमानों की ही आस्था भारत देश में है बाहर से आने वालों की नहीं है तो ये एक बड़ा झूठ है. धर्मांतरण से देश भक्ति पर क्या फर्क पड़ता है ? मुझे नहीं लगता इससे कोई फर्क पड़ता है या पड़ना चाहिए. फिर कोन है जिसने धर्म परिवर्तन नहीं किया है ? आदि मानव का धर्म क्या था और उसके वारिसों ने कितनी बार धर्म बदला है इसका कोई हिसाब किताब है? इसलिए आप गुलामी और आजादी को तय करते समय अंग्रेजों से लेकर इस धरती पर पहला कदम रखने वाले इंसान तक को तोलिये फिर कुछ बोलिए. सिर्फ अंग्रेजों के अलावा और कोई दूसरी जाति नहीं है जिसने भारत को अपना देश स्वीकार न किया हो .,इसीलिए देश के इतिहास में सम्पूर्ण गुलामी का काल केवल अंग्रेजी शासन का है और किसीका नहीं कहा जा सकता है.
धर्म परिवर्तन है क्या ? आदमी को इसकी जरूरत क्या है ? मेरी समझ से धर्म परिवर्तन वस्त्र परिवर्तन से अधिक कुछ नहीं है.जैसे आदमी मौसम,फैशन और अपनी सुविधा के हिसाब से अपने कपडे बदलता है वैसे ही वह धर्म भी बदल लेता है. अब ये न कहना कि आदमी तो रोज ही कपडे बदलता है. दुनिया में अभी भी ऐसे करोड़ों लोग हैं जो सारी उम्र गिनती के चीथड़ों में बिता देते हैं. गरम सूट तो अधिकाश लोगों को दूल्हा बनने पर ही मिलता है और उसी एक सूट से वे पूरी उम्र गुजार देते हैं. कुछ लोग सामर्थ्यवान होते हुए भी दूसरा सूट बनवाना अपव्यय समझते हैं. वो एक ही सूट को संभाल कर इस्तेमाल करते हैं. कुछ लोगों को तो यह भी ध्यान नहीं रहता है कि उन्होंने कैसे कपडे पहने हैं .क्यूँकी उनके दिमाग में और कई महत्वपूर्ण विचार रहते हैं.कपडे उनके लिए महत्वपूर्ण नहीं हैं.उनका चिंतन, उनका कर्म महत्व पूर्ण है. धर्म भी ऐसे ही इस्तेमाल हो रहा है. लोग इसका इतना भी ध्यान नहीं रखते हैं जितना अपने कपड़ों का रखते हैं लेकिन कपड़ों की ही तरह लफडा इस धर्म का भी बहुत है.
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