सोमवार, 15 जुलाई 2013

हम गुजरे अंगारों से


आती रही सदायें हमको जुल्फों औ रुखसारों से .
लेकिन हम मुँह मोड़ न पाए कुछ किस्मत के मारों से.

वो आये थे अभी जिन्हें है फूलों की सौगात मिली
हमने सारी उम्र बितायी साथ निभाते खारों से .

अपना दिल है कांच का यारों ठेस लगी तो बाल भी है
कैसे इसे निखारोगे तुम पत्थर के ओजारो से .

हम दीवाने, हमसे पूछो हाल न कभी,सवाल कभी
इस हालत में तब आये जब हम गुजरे अंगारों से .

क्या है हाले वक्त हमारा  वो बतलाने आये हैं
हमने मनसब कब माँगा है हाकिम से, दरबारों से .

हमको मारा है तो अपनी खुददारी ने मारा है
हमको कोई खौफ नहीं था दुश्मन की तलवारों से .

जब भी दर्दे दिल उठता है 'मधुर' गजल कहते हैं हम
हम कब रहे मुक़ाबिल यारों इस फन के फनकारों से .

آتی رہی سدايے ہم جلپھو او ركھسارو سے.
لیکن ہم منہ موڑ نہ پائے کچھ قسمت کے مارو سے.

وہ آئے تھے ابھی جنہیں ہے پھولوں کی سوغات ملی
ہم نے ساری عمر بتايي ساتھ ادا كھارو سے.

اپنا دل ہے کانچ کا یاروں ٹھیس لگی تو بال بھی ہے
کس طرح اسے نكھاروگے تم پتھر کے اوجارو سے.

ہم دیوانے، ہم سے پوچھو حال نہ کبھی، سوال کبھی
اس حالت میں اس وقت آئے جب ہم گزرے انگاروں سے.

کیا ہے ہالے وقت ہمارا وہ بتلانے آئے ہیں
ہم منسب کب مانگا ہے حاکم سے، دربارو سے.

ہم کو مارا ہے تو اپنی كھدداري نے مارا ہے
ہم کو کوئی خوف نہیں تھا دشمن کی تلواروں سے.

جب بھی درد دل اٹھتا ہے 'میٹھی' غزل کہتے ہوں ہم
ہم کب رہے مقابل یاروں اس فن کے پھنكارو سے.

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