'उत्तर प्रदेश में 2014 की लोकसभा चुनावों के लिए ब्राह्मण वोटों की जंग छिड़ गई है।
परशुराम जयंती के मौके पर समाजवादी पार्टी और बीएसपी दोनों ने ब्राह्मण सम्मेलन किया और एक दूसरे को ब्राह्मणों का दुश्मन बताया।
बीएसपी को ऐसे 36 ब्राह्मण सम्मेलन और करने हैं।'--------समाचार
इस एक खबर में कितने सवाल छुपे हैं.सिद्धांत: जो पार्टियां जाति के खिलाफ होनी चाहिए थी वे विशुद्ध जाति की राजनीति कर रहीं हैं .
जो स्वयं को ब्राह्मणों और मनुवाद के खिलाफ कहती हैं वे ब्राह्मण जाति की गोलबंदी करने में जुटी हैं .
जिस परशुराम के कारनामों के आगे आज के आतंकवादी भी हाथ जोड़ लेंगे उसे आदर्श बताया जा रहा है .
जो पौराणिक आतंकी है उसे भगवान का ओहदा दे दिया गया है .
यह आतंक के आगे शीश झुकाने के साथ साथ उसे महिमा मंडित करना नहीं तो और क्या है ?
यह आधुनिकता की कोन सी पहचान है जिसमें इतिहास और पुराण से खोजकर हथियार बंद आतंकियों को अभिमान से जातियों का सिरमोर बताने पर गर्व करना सिखाया जा रहा है?
जब तक ये राजनीति की कुद्रष्टि नहीं पड़ी थी तब तक कोई न परशुराम को भगवान मानता था और न ही उसकी पूजा का ऐसा पाखण्ड प्रदर्शन था.किताबों में जो कुछ लिखा है वो लिखा है लेकिन पहले कुछ मुट्ठी भर लोग पूजते होंगें सारी जाति ने उसे तभी जाना जब नेताओं ने उसके नाम पर जाति के जमावड़े शुरू कर दिए. लगता है सारी दुनिया को यह बताने और याद दिलाने की कोशिश हो रही है कि सारी दुनिया में सबसे बड़े आतंकी हम हैं. हमारा हर देवता, हर देवी, हर महापुरुष हथियार बंद है और उसका हम अनुसरण कर सकते हैं .या करते हैं तो यह हमारा धर्मानुकूल आचरण होगा .ये अलग बात है कि ब्राह्मण परशुराम को आदर्श मानेंगें तो उसकी प्रतिक्रिया में क्षत्रिय भी सहस्त्रार्जुन को अपना आदर्श घोषित कर अपनी जाति वालों से उसका अनुशरण करने की अपील कर सकते हैं . फिर जातीय संघर्ष का सहस्त्राब्दियों पुराना रूप वापिस आ जाए तो कुछ आश्चर्य नहीं होना चाहिए. अगर ध्यान से देखें तो अन्दर ही अन्दर वैसी ही कटुता फल फूल रही है जैसी पहले रही है .जिसे कभी भी राजनीतिक स्वार्थ की एक चिंगारी ज्वालामुखी की तरह धधका सकती है. फिर भी हम कहेंगे कि हम ज्ञान विज्ञान की इक्कीसवीं सदी में जी रहें हैं, हम सुसंस्कृत मानव हैं. क्या यह ये हमारे सुसंस्कृत होने की पहचान है ?
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शैलेन्द्र रावत - भाई जी समाज का कटु सत्यता लिखते हो .
अमरनाथ 'मधुर' अभी खुद्दारी है अभी भाड़े पर लिखना शुरू नहीं किया है
प्रथक बटोही - यह सुसंस्कृत शब्द भी उसी सभ्यता का है जिसको आप असभ्य मान रहे है हमने तो सिर्फ उपभोग किया हैं जल जंगल जमीन उर्जा खनिज सबका और बलात्कृत धरती को छोड़ रहे है आने वाले समय के लिए कम से कम प्रत्यक्ष में उन लोगो ने ऐसा तो नही किया।
अमरनाथ मधुर - मुझे यही भाषा विरासत में मिली है इसी से काम चलाना पड़ता है.ऐसा अक्सर होता है जब भाव के अनुरूप सही शब्द नहीं मिलते हैं.वैसे उस लहू लुहान असभ्यता का कोई सुसंस्कृत नहीं हो सकता है.
सलीम सबरी - राईट .. ई एग्री ..
जमील खान - काहे डरते नई कहे का चड्डी धरेल लगन से
भूपट शूट -इस पर बहुत गहराई से सोचने और समझने की जरुरत हैं. साथ में विचार मंथन भी. आपने सही तोर पर ताजा मुद्दे को प्रस्तुत किया. इसे अब लोग किस रूप में लेतें हैं यह तो हमारे लिए और भी गहराई से समझने की बात होगी .

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