शनिवार, 20 जुलाई 2013

'मैं कश्मीर हूँ'--- इमरान प्रताप गढ़ी


न बुज़ुर्गों के ख़्वाबों की ताबीर  हूँ
न मैं जन्नत की अब कोई तस्वीर  हूँ!
जिसको मिल करके सदियों से लूटा गया,
मैं वो उजड़ी हुई एक जागीर  हूँ!!
                                  हां मैं कश्मीर हूँ , हां मैं कश्मीर  हूँ.

मेरे बच्चे बिलखते रहे भूख से,
ये हुई है सियासत की इक चूक से !
रोटियां मांगने पर मिलीं गोलियां,
चुप कराया गया उनको बंदूक से !

न कहानी  हूँ न कोई किस्सा हूँ मैं
मेरे भारत तेरा एक हिस्सा  हूँ मैं !!
जिसको गाया नही जा सका आज तक
ऐसी इक टीस  हूँ ऐसी इक पीर  हूँ………!
                                     हां मैं कश्मीर हूँ हां मैं कश्मीर  हूँ.

यूं मेरे हौसले आज़माए गए,
मेरी सांसों पे पहरे बिठाए गए !
पूरे भारत में कुछ भी कहीं भी हुआ,
मेरे मासूम बच्चे उठाए गए !!

यूं उजड़ मेरे सारे घरौंदे गए,
मेरे जज़्बात बूटों से रौंदे गए !
जिसका हर लफ़्ज आंसू से लिक्खा गया,
ख़ूं में डूबी हुई ऐसी तहरीर  हूँ….!
                                          हां मैं कश्मीर  हूँ, हां मैं कश्मीर  हूँ.

मैं बग़ावत का पैग़ाम बन जाऊंगा,
मैं सुबह हूं मगर शाम बन जाऊंगा !
गर सम्भाला गया न मुझे प्यार से,
एक दिन मैं वियतनाम बन जाऊंगा !!

मुझको इक पल सुकूं है न आराम है,
मेरे सर पर बग़ावत का इल्ज़ाम है !!
जो उठाई न जाएगी हर हाथ से
ऐ सियासत मैं इक ऐसी शमशीर  हूँ…..!
                                          हां मैं कश्मीर  हूँ, हां मैं कश्मीर हूँ.
                                                          --- इमरान प्रताप गढ़ी


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