पन्द्रह अगस्त को भारत में स्वतंत्रता दिवस मनाया जाता है| आज ही के दिन भारत ने अग्रेंजों की दासता से मुक्ति पायी थी। लेकिन कुछ लोग इस आजादी को झूठी बताते हैं और कुछ लोग इसे खंडित आजादी कहकर नकारते हैं।दोनों के अपने तर्क है। झूठी आजादी बताने वालों का कहना है कि यह केवल गोरे शासकों से काले काले शासकों को सत्ता का हस्तान्तरण मात्र है| आम आदमी के लिये इससे कुछ बदलाव नहीं आया है। यह बात एक सीमा तक सही है लेकिन ये स्वीकार करना कि देश आजाद नहीं हुआ किसी भी तरह सही नहीं लगता है। जो अपने सपनों का भारत बनाना चाहते हैं, वे बनायें । उसके लिये काम करने की आजादी है| हॉं जो ये समझते हों कोई व्यवस्था स्वयं को उलटने की आजादी देगी तो ऐसी आजादी ना किसी व्यवस्था ने कभी किसी को दी है और ना देगी।
दूसरे वे लोग जो भारत की आजादी को भारत विभाजन से जोडकर खंडित आजादी कहते है। ये वे लोग हैं जो भारत विभाजन को मजबूरी में मानते हैं, दिल से स्वीकार नहीं करते हैं| वे चाहते हैं कि भारत पुन अखन्ड देश बन जाये। ऐसी सदभावना किसे अच्छी न लगेगी? ऐसा शुभदिन जितनी जल्दी हो आये ऐसी हम सबकी कामना है लेकिन उसके क्या तौर तरीके हों उन पर जरूर गौर करना होगा। अभी तो कुछ तात्कालिक प्रश्न हैं जिनका उत्तर खोजने का प्रयास हमें करना चाहिये ।
स्वतंत्रता से एक दिन पहले भारत का विभाजन किया गया और पाकिस्तान नाम के नये देश की स्थापना हुई। शायद इसीलिये चौदह अगस्त के दिन को पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस कहा जाता है। लेकिन ये समझ में नहीं आता कि ये पाकिस्तान का स्वतंत्रता दिवस कैसे हो सकता है ? पाकिस्तान किसी का गुलाम तो था नहीं। जिस देश का अस्तित्व ही ना हो वो गुलाम या आजाद कैसे हो सकता है? कायदे से यह पाकिस्तान का स्थापना दिवस है और इसे इसी रूप में देखा जाना चाहिये।
इसी के साथ एक प्रश्न ये भी जुडा है कि क्या भारत को उसको बधाई संदेश देना चाहिये? ये सवाल इसलिये उत्पन्न होता है कि क्यूकि पाकिस्तान की स्थापना भारत का अंग भंग करके की गई है और कोई भी अंग भंग कराना और उस पीड़ादायक शल्य क्रिया को याद करना पसन्द नहीं करेगा। फिर इससे भी बडी बात ये है कि भंग अंग के लिये बधाई देना कौन चाहेगा ?ऐसे बेतुके सवाल शायद मेरे ही नहीं किसी दूसरे के मन में भी उठते रहें हो तो कुछ आश्चर्य नहीं होना चाहिये। मैं सोचता हूँ कि शायद ऐसे टेडे सवाल ही रहें हैं जिसके कारण अभी तक दोनों देशों के शासनाध्यक्ष या राष्ट्राध्यक्ष कभी एक दूसरें के राष्ट्रीय समारोह में मुख्य अतिथि नहीं बने हैं। पर मुझे लगता है ऐसा करने हर्ज क्या है ?
इसी से जुडा सवाल ये भी है कि जब हम इस हकीकत को जानते हैं कि पाकिस्तान नाम का देश हमसे अलग होकर अस्तित्व में है तो उसके राष्ट्रीय पर्व पर उसे बधाई प्रेषण और उसके बेहतर भविष्य के लिये शुभकामनायें क्यूँ नहीं करना चाहिये ? क्या भाई भाई के बॅंटवारे के बाद भाई को भाई से तमाम शिकायतें होने के बावजूद उसकी तरक्की से सुख और बदहाली से दुख नहीं होता है? अगर पडौसी कंगाल हो तो वो अपने पडौसियों को ही परेशान करेगा लेकिन अगर वो धनवान हो तो मदद चाहे ना करे लेकिन कुछ मॉंगने तो नहीं आयेगा। फिर ये तो भाई भाई के बीच की बात है। ये कैसे हो सकता है कि वे एक दूसरे को खुश ना देखना चाहें और हमेशा अतीत की कडवी यादों से पीडित होते रहें ?
विभाजन के दर्द को दूसरी तरह देखें। कुछ ऐसे जीव भी होते हैं जो स्वयं विभाजित हो जाने पर पृथक पृथक दो पूर्ण स्वस्थ शरीर धारण कर नया जीवन शुरू कर देते हैं। देश भी ऐसा ही होता है। ऐसा कौन सा देश है जिसकी सीमायें घटती बढती नहीं रही हैं ? सरहदी इलाको का तो ये हाल है कि वे कुछ सौ बरस एक पडौसी की सीमा में रहते हैं कुछ सौ बरस दूसरें पडौसी की सीमा में। जब दोनों पडौसी कमजोर हों तो ये सरहदी इलाके आजाद भी हो जाते हैं और मौका लगे तो स्वयं ही अपना विस्तार कर अपने पडौसियों को समाहित कर लेते हैं। इसका एक अच्छा उदाहरण मंगोलिया है। मानव जाति के इतिहास में चगेंज खान से बडा साम्राज्य किसी का नहीं हुआ। अटलान्टिक महासागर से प्रशान्त महासागर तक काकेकश पर्वत से हिमालय पर्वत श्रंखला तक उसका साम्राज्य फैला था। आज मंगोलया एक छोटा सा देश होकर रह गया है। उसका एक बडा हिस्सा रूस में है तो दूसरा बडा भाग चीन के पास है। ये वही देश हैं जो कभी उसके घोडों की टापों तले रहते थे। भारत की ही बात करें तो आज का अफगानिस्तान कभी भारत का मुख्य अंग हुआ करता था। पूर्वोत्तर और दक्षिणी भारत की अपेक्षा वह हर दृष्टि से भारत का हिस्सा रहा है। लेकिन आज कोई भी नहीं ये सोचता की अफगानिस्तान भारत का एक हिस्सा है। भारत में आम समझ ये है कि नेपाल भारत का अंग है जबकि अफगानिस्तान की तो बात छोडिये पाकिस्तान पराया मुल्क है और उससे भी बढकर दुश्मन देश है।
ये भावना क्यूँ है ? ऐसा नहीं है कि हमारे पूर्वज अफगानिस्तान को खाली करके यहॉं आ गये हों और वहॉं विदेशी काबिज हों गये हों इसलिये उससे कोई लगाव नहीं रहा। बसावट तो जैसे देश के दूसरे हिस्सों में हुई वैसे ही वहॉं भी हुई| इससे कोई खास फर्क नहीं पडता| लेकिन जिस चीज ने सबसे ज्यादा असर डाला निष्चित रूप से वह धर्म है। अफगानिस्तान के लोगों ने जब इस्लाम धर्म को अपना लिया तो वो उन देशों के ज्यादा निकट हो गया जो इस्लामी थे और धीरे धीरे अपने अतीत से कट गया। सीमान्त पर होने के कारण उसे इसमें कोई परेशानी नहीं हुई। अगर वह भारत के मध्य भाग में होता तो उसके लिये ऐसा करना आसान नहीं था। हमारे द्वारा उसे भुला दिये जाने का भी यही कारण है वरना हमारी संस्कृति और धर्म के लिये जितना अफगानिस्तान महत्वपूर्ण क्षेत्र है उतना शायद अन्य भूभाग ना हो।
यही बात पाकिस्तान पर भी लागू होती है। बस पाकिस्तान और अफगानिस्तान में एक बडा फर्क यह हैं कि अफगानिस्तान के मुकाबले पाकिस्तान अभी की देन है। पाकिस्तान का पूर्व में कोई अस्तित्व भी नहीं था। यूँ अस्तित्व तो अफगानिस्तान का भी नहीं था लेकिन उसका निर्माण ऐसी कडुवाहटों से नहीं हुआ है जैसी कडुवाहटों ने पाकिस्तान को जन्म दिया है। अफगानिस्तान के अलगाव और आजादी को भी कभी भारत ने खुशी से स्वीकार न किया होगा लेकिन वो पुरानी बात है और वो तब हुआ होगा जब स्वयं भारत का शेष भाग भी टुकडों में बॅंटा हुआ होगा। इसलिये उन टुकडों की एकता पर ज्यादा ध्यान रहा बजाये इसके कि एक विधर्मी सीमान्त क्षेत्र के लिये लडा जाये।
क्या आपने कभी ध्यान दिया कि हम पाकिस्तान के बारे में जितना सोचते बोलते हैं उसका दशमॉंश भी बंग्लादेश के बारे में नहीं सोचते हैं। वह भी हमारे देश का भाग रहा है लेकिन दिल्ली से लेकर बम्बई तक सिर्फ पाकिस्तान छाया रहता है। मैं समझता हूँ इसका एक बडा कारण यही है कि पाकिस्तान अपनी भाषा, बोली, पहनावे और खानपान से हमारे जितना नजदीक है उतना बंग्लादेश नही है। इसलिये बंग्लादेश की हम ज्यादा परवाह नहीं करते हैं । लेकिन पश्चिमी बंगाल वालों के दिल से पूछों तो बंग्लादेश को भारत के किसी भी दूसरे हिस्से ज्यादा अपना बतायेंगे। उन्मादी राष्ट्रवाद के दौर को अगर हम छोड दें तो शान्तिकाल की हकीकत यही है कि हम देश या धर्म से नहीं अपने पडौस से प्रभावित होते हैं। हमारा सुख दुख हमारे पडौसी से जुडा होता है। इसलिये जब भी कोई धर्म या देश के नाम पर पडौसी से लडने को उकसाता है तो वो मुझे इन्सान नहीं शैतान नजर आता है। अब वक्त आ गया है कि हम खुले दिल से पाकिस्तान को उसके सुखद और समर्द्ध भविष्य के लिये बधाई दें और पाकिस्तान के हुक्मरान अमन के पैगाम के साथ भारत के स्वतंत्रता दिवस समारोह में शामिल हों और यहॉं आकर कहें कि 'हमारा अतीत एक है और इन्शा अल्लाह हमारा भविष्य भी एक होगा। भारत की जो बडी सैन्य शक्ति है उससे हमें भय नहीं है बल्कि हमें ये पूरा भरोसा है कि हमारे सकंटकाल में ये हमारी हिफाजत करेगी।'
.मुझे पूरा विश्वास है वो सुबह कभी तो आयेगी जब दोनो देशों के आसमान से आंशकाओं के गहरे काले बादल छंट जायेंगे और आशा और उल्लास का नया सूर्य उदित होगा, अमन के पंछी चहचहायेंगे।
हमको है विश्वास एक दिन धुंध हटेगी कुहर हटेगा.
सूरज लाल लाल निकलेगा यूँ अंधियारा नहीं रहेगा .
---------- अमरनाथ मधुर
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