गुरुवार, 8 अगस्त 2013

हमको हँसने भी दो,हमको गाने भी दो,



अपनी आजादी पूरी समाजवादी है
मेरी जिंदगी ही ये थोडा हरामजादी है
इसको राजपथ बिलकुल सुहाता नहीं
तोडा पगडंडियों से है नाता नहीं .

टेढ़े, मेढे कटीले,बड़े रास्ते
शेर की आहटें,नाग फुत्काराते,
जिसके दायें हैं गहरी बड़ी खाईयाँ
और बायें हैं पर्वत की ऊँचाईयाँ

इसने लम्बा सफ़र उन पे तय है किया
ये न पूछो कि आवारा कैसे जिया ?
एक ही धुन थी होटों पे एक ही सदा
सर कटाने की हम हैं न भूलें अदा .

हमको हँसने भी दो,हमको गाने भी दो,
राजगद्दी हमें तुम, ये ताने ना दो ,
तुमने आजादी दी, बोल हम ये सकें
काम भी हम करें, खुश रहें न थकें .

हमको मौका तो दो, हम पे रखो यकीं
जो लड़े साथ थे आज भी हम वही ,
खौफ के काले दिन, हम न भूले कभी
लौट आयेंगे फिर जो हो गफलत अभी.

कौन चाहेगा फिर वैसे मनहूस दिन
बेवजह  कोई  मारे  हमें  रोज गिन .
उन अँधेरे दिनों को न फिर आने दो
हमको हँसने भी दो,हमको गाने भी दो.
                     -------- अमरनाथ 'मधुर'

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