बुधवार, 7 अगस्त 2013

'जंग के खिलाफ '

गर गीदड़ सत्ता सिंहासन पर बैठा है  
समझ जाओ जंगल के सारे जीव मृत हैं
गीदड़ केवल शव पर ही बैठा करता है
देश नहीं शव, नहीं देश में गीदड़ रहते
शेर यहाँ है, सर्प यहाँ है,
गर्व यहाँ है. दर्प यहाँ है
जो अब भी फुंकार रहा है
दबे अगर तो डस सकता है
चीर फाड़ कर खा सकता है,
सोया है पर, सोने ही दो
गंध नहीं अच्छी होती है
मनुज रक्त की
जग जाएगा ,खा जाएगा .-------अमरनाथ 'मधुर'



'ऐसा क्यों होता है जब कोई विशेष मुद्दा जोर पकडे रहता है तो कहीं न कही हमला हो जाता है ..कहीं ये ध्यान भटकाने का तरीका तो नहीं '...............आदर्शिनी श्रीवास्तव 




जंग के खिलाफ हम हैं जंग के खिलाफ 
सब गुनाह माफ़ होंगे, ये ना होगा माफ़.

जंग के लिए खड़ी हुई जो पलटनें
क्या जरूरी सरहदों पे मौत वो चुनें.
क्या जरूरी घर कोई उजाडती रहें
मुस्तकबिल मुल्क का बिगाड़ती रहें .

जंग के तो और भी मैदान हैं बहुत
जीत लें तो आन बान शान है बहुत
जंग हम लड़ेंगे एक भूख के खिलाफ
जुर्म के खिलाफ और जुल्म के खिलाफ.

जंग के खिलाफ हम हैं जंग के खिलाफ
जंग के खिलाफ हम हैं जंग के खिलाफ. 
----------- अमर नाथ 'मधुर'

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