आज अगर खामोश रहे कल बोल नहीं सकते,
इसीलिये जो कुछ कहना है कहो बात खुलकर
वरना बहते हुए लहू को क्या जबाब दोगे?
वो पूछेगा जब जिन्दा तब क्यूँ कहते चुप कर ?
ये सारा झगडा अफवाहों से फ़ैल रहा है और आप कहते हैं लफ्फाजी से कुछ नहीं होता है ? अगर लफ्फाजी से कुछ नहीं होता तो झगडा नहीं फैलता . समझदार लोग लफ्फाजी नहीं करते वो चुप रहते हैं .न बुरा देखते हैं न सुनते हैं, न कहते हैं.ऐसे समझदार लोगों के चुप रहने से जिनकी तादाद कम नहीं बहुत बड़ी है, अमन क्यूँ नहीं कायम रहता है ? अच्छे लोगों की खामौशी अच्छी नहीं है .बोलना लाजिम है इसलिए अपनी जुबाँ से बोलो, खामोश मिजाजी हमें जीने नहीं देगी .
धर्म द्वारा विभाजित समूहो के घर्षण को दंगा कहते है ,और राष्ट्रीयता से विभाजित समूहो के घर्षण को युद्ध. इस घर्षण में मानवता पिसती है.
-अमरनाथ'मधुर'
इसी पीपल पे तो डाला था कभी झूला हमने
इसीलिये जो कुछ कहना है कहो बात खुलकर
वरना बहते हुए लहू को क्या जबाब दोगे?
वो पूछेगा जब जिन्दा तब क्यूँ कहते चुप कर ?
ये सारा झगडा अफवाहों से फ़ैल रहा है और आप कहते हैं लफ्फाजी से कुछ नहीं होता है ? अगर लफ्फाजी से कुछ नहीं होता तो झगडा नहीं फैलता . समझदार लोग लफ्फाजी नहीं करते वो चुप रहते हैं .न बुरा देखते हैं न सुनते हैं, न कहते हैं.ऐसे समझदार लोगों के चुप रहने से जिनकी तादाद कम नहीं बहुत बड़ी है, अमन क्यूँ नहीं कायम रहता है ? अच्छे लोगों की खामौशी अच्छी नहीं है .बोलना लाजिम है इसलिए अपनी जुबाँ से बोलो, खामोश मिजाजी हमें जीने नहीं देगी .
धर्म द्वारा विभाजित समूहो के घर्षण को दंगा कहते है ,और राष्ट्रीयता से विभाजित समूहो के घर्षण को युद्ध. इस घर्षण में मानवता पिसती है.
-अमरनाथ'मधुर'
कैसा हो गया शहर ये बियाबान हंसी आती है
न बचा कोई हिन्दू न मुसलमान हंसी आती है
इसी पीपल पे तो डाला था कभी झूला हमने
लाल धागों में बंधे हैं याँ भगवान् हंसी आती है
अभी जला है यह घर मज़हब के कारखाने में
अभी जला है यह घर मज़हब के कारखाने में
रोक दे ऐ मुज्ज़ींन ये अज़ान हंसी आती है
बड़े मज़े हैं, मारो काटो और फूँक डालो सब
बड़े मज़े हैं, मारो काटो और फूँक डालो सब
सियासत पे दे देंगे फिर इलज़ाम, हंसी आती है
शमा ओ लोबान में ही आता है बस खुदा मेरा
शमा ओ लोबान में ही आता है बस खुदा मेरा
ये मुफलिसी और तेरा मकान ? हंसी आती है
मेरा सुखन अब ले लो, ऐ हैवानियत के अल्फाजों
मेरा सुखन अब ले लो, ऐ हैवानियत के अल्फाजों
हमें फिर न कह दे कोई इंसान, हंसी आती है
- फैजी रेह्ररवी
- फैजी रेह्ररवी
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