सोमवार, 16 सितंबर 2013

मेले में सरकस


    लोग मेले में नौटंकी या सरकस देखने चलें आयें और जोकर को देख कर हँसे और ताली बजाएं तो इसका ये मतलब नहीं होता कि वो उसे अपने घर की चाबी भी सोंप आते हैं .मेले में सरकस चल रहा है .कई दिन से जमकर प्रचार हो रहा है कि अबकी बार ऐसा शेर आया है जैसा किसी सरकस में नहीं है .वो शेर कभी झबरैला कुत्ता जैसा दिखता और कभी जोकर जैसा. लगता तो गधे जैसा भी है लेकिन गधा नहीं हो सकता .क्यूंकि गधा भोंकता नहीं है .जबकि वो भनकत बहुत है. हर आदमी की जिज्ञासा है कि चलो एक बार देख आयें कैसा लगता है? लेकिन वापसी में तो वही लोग यही बतियाते आतें हैं कि कुछ नहीं है यार ये तो फेकू है.
भाजपा को अपना नेता अपने तरीके से चुनने का हक़ है .उसके इस फैसले पर टीका टिपण्णी करने का कोई मतलब नहीं है .टीका टिपण्णी नेता के तौर तरीकों पर की जानी चाहिए और वो की जायेगी चाहे वो पी एम् पद के उम्मीदवार ही नहीं पी एम् ही क्यूँ न बन जाएँ .



         एक संघ मार्का लौह पुरुष हुआ करते थे, जो भारत के प्रधान मंत्री को कमजोर कहा करते थे .कोई बतायेगा वो कहाँ हैं ?उन्हें क्या हुआ? क्या उन्हें मोर्चा खा गया? सुना है वो किसी काम के नहीं रहे, उन्हें कबाड़ा समझा जा रहा है. जो बड़ा मजबूत माना जाता था, जो बड़ा भारी भरकम भी था, वो तो मिटटी का ढेर साबित हुआ है और जो हल्का फुल्का है वो मजबूत और टिकाऊ है .ये किसकी खामी है ? कारखाने की तो नहीं है जो ऐसा खराब माल बाजार में उतार रहा है ?
      जरूर ये कारखाना ही घटिया दजे का सामान बना रहा है. जनता धीरे धीरे इसकी असलियत जान जायेगी .कि झूठे प्रचार और चमक  दमक की पैकिंग में जो माल बेच जा रहा है वो जनता को ठगने के अलावा किसी काम का नहीं है. जनता बेवक़ूफ़ नहीं होती है वो एक बार धोखा खा जाए तो दुबारा वैसी गलती नहीं कर सकती है. इस कारखाने पर देर सबेर  ताला लटका मिलेगा. 

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