हम मील के पत्थर हैं, जाते न कहीं आते
सब लोग हमें पढ़ते, मंजिल को चले जाते .
देखी हैं कई सदियाँ आँखों ने हमारी भी
पूछा जो हमसे होता इतिहास भी बतलाते .
माजी की दास्ताने सीने पे नक्श मेरे
तुम भी उन्हें पढ़ लेते,थोडा ठहर जाते
जिस राह पे मुसाफिर रोते हुए हैं जाते .
भटके हुए राही को मंजिल का पता देंगे
पूछे तो कोई हमसे, हम झूठ न बतलाते .
मौसम की तरह हमने सीखी न बेवफाई
बादल भी बहुत गरजे, अंधड़ भी बहुत आते .
गड़कर भी जमीनों में सर हमने रखा ऊँचा
हम वक्त के शाहों को सिर न कभी झुकाते .
कुछ हमसे 'मधुर' सीखों दुनिया में यदि रहना
फूलों से तजुर्बे तो कुछ काम नहीं आते .
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