मंगलवार, 17 सितंबर 2013

हम मील के पत्थर हैं


हम मील के पत्थर हैं, जाते न कहीं आते
सब लोग हमें पढ़ते, मंजिल को चले जाते .

देखी हैं कई सदियाँ आँखों ने हमारी भी 
पूछा जो हमसे होता इतिहास भी बतलाते .

माजी की दास्ताने सीने पे नक्श मेरे
तुम भी उन्हें पढ़ लेते,थोडा ठहर जाते

खुशियों के काफिलें भी इस राह से गुजरें हैं
जिस राह पे मुसाफिर रोते हुए हैं जाते .

भटके हुए राही को मंजिल का पता देंगे
पूछे तो कोई हमसे, हम झूठ न बतलाते .

मौसम की तरह हमने सीखी न बेवफाई
बादल भी बहुत गरजे, अंधड़ भी बहुत आते .

गड़कर भी जमीनों में सर हमने रखा ऊँचा
हम वक्त के शाहों को सिर न कभी झुकाते .

कुछ हमसे 'मधुर' सीखों दुनिया में यदि रहना
फूलों से तजुर्बे तो कुछ काम नहीं आते .






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