गुरुवार, 19 सितंबर 2013

आरक्षण का लाभ


     उत्तर प्रदेश में अनुसूचित जाति आरक्षण का लाभ भी कुछ विशेष जातियों तक सीमित रह गया। वैसे तो इस कैटेगरी में 66 जातियॉं रखी गयी हैं लेकिन भारतीय प्रशासनिक सेवा (समूह क) में 60 फीसदी से अधिक लाभ चमार, घुसिया और जाटव का है।
हाईकोर्ट में पेश सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट में यह तथ्य उजागर हुआ है। अनुसूचित जाति में चमार, घुसिया, जाटव, धोबी व खटीक जातियों को सेवायोजन में अपेक्षाकृत अधिक लाभ मिला है। वहीं गोंड और कोल जातियों को कम फायदा हुआ। समिति ने साफ शब्दों में कहा है कि कुछ जातियॉं अपनी जनसंख्या के अनुपात में कहीं अधिक लाभ उठा चुकी हैं वहीं दूसरी ओर अधिकॉंश जातियॉं जनसंख्या की तुलना में अपेक्षित लाभ नहीं पा सकी हैं। कुछ जातियॉ तो अपनी जनसंख्या के अनुपात के 10 वें हिस्से के बराबर भी लाभान्वित नहीं हुई हैं। अनुसूचित जाति कैटेगरी में शामिल कोल, मुसहर, बधिक, बादी,बैसवार,बजनिया, बाजगी, बलहर,वनमानुस, बॉंसफोर,बावरियॉं, भुईयॉं,बेरियॉं, चबगर, धांगर, डोम, धरमी, कलाबाज आदि जातियों का प्रशासनिक सेवा में प्रतिनिधित्व शून्य था। ऐसी ही स्थिति पिछडा वर्ग में भी है। जहॉं कुछ चुनिंदा जातियों ने 50 प्रति0 से अधिक का लाभ उठा लिया।
........[ स्रोत: हिन्दुस्तान समाचार पत्र दि0 19-09-2013 मेरठ संस्करण पृ0 सं0 13 से साभार ]


हाईकोर्ट में पेश सामाजिक न्याय समिति की रिपोर्ट में यह तथ्य उजागर हुआ है कि अनुसूचित जाती के आरक्षण का साठ फी सदी हिस्सा चमार, जाटव, घासिया जाति जो वस्तुत: एक ही जाति है, को मिला है . अनुसूचित जाति वर्ग में छियासठ जातियां हैं. एक जाति के अलावा बाकी सभी जाति अपनी जनसंख्या से कम अनुपात में लाभान्वित हुयी हैं. कुछ जातियां तो ऐसी हैं जिनका प्रतिनिधित्व शून्य है. ऐसे में सामाजिक न्याय का ढोल पीटने वाले और बाबा सहाहेब के समतामूलक समाज के निर्माण ढोंग रचाने वालों की नीयत पर संदेह होना वाजिब है .यह इसलिए भी वाजिब है कि जब भी आरक्षण के अन्दर जातिवार आरक्षण की माँग उठायी जाती है तो ये लोग हकलाने लगते हैं और इसे आरक्षण विरोधियों की फूट डालने की चाल बताते हैं. लेकिन सवाल ये है कि ये मांग किस तरह फुट डाले सकती है? ये तो वस्तुत: सामाजिक न्याय को सर्व जन  सुलभ कराने और समता मूलक समाज के निर्माण में एक कदम आगे बढाने की का सबसे उचित  है. क्योंकि अगर सामाजिक रूप  से पिछड़ी जातियाँ सामान रूप से सशक्त होंगी तो उनमें भाईचारा बढेगा और वे एक महाजोट बनाकर बाबा साहेब के मिशन को बेहतर तरीके से उसके सही मुकाम तक पहुंचा सकेंगी. लेकिन ऐसा वे लीडरान नहीं होने देंगे जो आडम्बरवादी  हैं न कि अम्बेडकर वादी जैसा कि वे स्वयं को कहते हैं.    
 यही  हाल  अन्य  पिछड़े  वर्ग के आरक्षण का है वहाँ  भी एक दो जातियों ने कब्ज़ा  किया  हुआ  है . और यही  वजह  है कि इन एक दो जातियों से  जो समाज की किसी भी दूसरी जाति से ज्यादा समृद्ध हैं, वास्तविक रूप से पिछड़ी जातियाँ कोई जुडाव महसूस नहीं करती हैं. खैर ये आरक्षण की वो तल्ख़ हकीकत है जिसे सब जानते हैं लेकिन निहित स्वार्थों के कारण स्वीकार नहीं करते हैं .
    ये सब लिखने का मेरा उद्देश्य संविधान सम्मत आरक्षण को उसके वास्तविक हकदारों के लिए दिए जाने की मांग के साथ साठ इस और भी ध्यान दिलाना है कि क्या इससे अच्छी भी कोई आरक्षण व्यवस्था हो सकती है?
सर्व प्रथम तो मैं यही कहूँगा जैसा कि मैंने पहले ही कहा है कि वर्तमान में जारी आरक्षण को आरक्षित श्रेणी कि जातियों में उनकी जनसंख्या के अनुपात में विभाजित कर देना चाहिए .दूसरे यह आरक्षण सामाजिक पिछड़ेपन के आधार पर नहीं आर्थिक पिछड़ेपन के आधार पर होना चाहिए तथा अन्त्योदय के रूप में लागू होना चाहिए  .तीसरे यह एक परिवार को केवल एक ही बार मिलाना चाहिए ताकि उसी वर्ग के एनी लोगों तक भी आरक्षण का लाभ पहुंचाया जा सके.
    यूँ मुझे यह कहने में भी  कोई हिचक नहीं है कि यदि आरक्षण के लिए कुछ एनी कैटेगरी के लोगों को प्राथमिकता दिया जाना बेहतर होगा. जैसे शहीदों के आश्रितों को,विशिष्ट प्रतिभा वाले अभ्यार्थियों को [ जिनमें खिलाड़ी, साहित्यकार, कलाकार,आदि शामिल हों ],आकस्मिक आपदा प्रभावितों को [जैसे दंगा, दुर्घटना आदि से पीड़ित ],विकलांगों, असाध्य रोग पीड़ितों [एड्स, केंसर, कोढ़ आदि ],  निराश्रित विधवा,परित्यक्ता आदि के लिए सबसे पहले आरक्षण का लाभ दिया जाए. ऐसे लोगों को तुरंत उनकी कार्यक्षमता के अनुसार कार्य दिया जाए और शीघ्र से शीघ्र उन्हें अधिक कार्यक्षम बनाकर बेहतर पद और वेतन देने के साथ साथ उन्हें समाज पर भार होने से मुक्त किया जाए .
  इन सबसे ऊपर सरकार को विशेष पदों पर विशिष्ट प्रतिभा वाले अभ्यार्थियों को सारे नियमों को शिथिल करके नियुक्त करना चाहिए .ऐसे प्रतिभाशाली व्यक्तियों को राष्ट्र की सेवा करने के लिए सभी संभव सुविधाएं उपलब्ध करना सरकार की पहली जिम्मेदारी है. इसके लिए सुयोग्य व्यक्तियों के चयन के लिए पूर्ण पारदर्शी व्यवस्था का होना सबसे आवश्यक है और जन हित में  ऐसी व्यवस्था करना सरकार के लिए कोई असम्भव   नहीं है. सरकार में इच्छा शक्ति होनी चाहिये हर सही काम के लिए व्यवस्था हो सकती है .



          

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