मंगलवार, 24 सितंबर 2013

सोशल मीडिया और हम

               

 मंचीय और प्राध्यापकीय टाईप कवि फेसबुक या ब्लॉग पर लिखने वालों को कवि / लेखक नहीं मानते हैं .उनका कहना है ये सब कुंठित लोग हैं जिन्हें कहीं जगह नहीं मिली तो यहाँ लिखने लगे. इनके लिखने विकने से क्या होता है ?
 इनकी ये बात कुछ हद तक  सही है कि कहीं जगह न मिली तो यहाँ लिखने लगे लेकिन यहाँ लिखने विखने  से क्या होता है ? इस बात से सहमत नहीं हुआ जा सकता है . यह सोशल मीडिया की ताकत को नजर अंदाज करना है जिसे अब सरकारें भी नजर अंदाज नहीं कर रहीं हैं . दिल्ली की केंद्र  सरकार से लेकर यू पी की राज्य सरकार तक  को फेसबुक ने हिलाकर रख दिया है .दिल्ली में दामिनी कांड के बाद यू पी में दुर्गा शक्ति नागपाल के प्रकरण और अब मुजफ्फर नगर काण्ड में फेसबुक की प्रभाव क्षमता ने सत्ताधीशों को सिर से सिर जोड़कर बैठने के लिए विवश कर दिया है . वे गंभीरता से ये सोच रहें हैं कि सोशल मीडिया को कैसे नियंत्रित किया जाए ? अगर मुजफ्फरनगर फेक वीडियों जैसी घटनाएँ लगातार होती रहीं तो सरकारों को स्वतंत्र मीडिया के इस रूप को नियंत्रित करने का बहाना मिल जाएगा और अगर एक बार इस या उस कारण से सरकार सोशल  मीडिया को नियंत्रित करने का जन समर्थन और विधिक अधिकार हासिल कर लेती है तो फिर सराकारें अपने खिलाफ एक भी शब्द बोलने नहीं देंगी. इससे वे सभी लोग प्रभावित होंगे जो स्वतंत्र सोच रखने के कारण ही संवाद के पूर्व स्थापित माध्यमों से छिटकें हुयें हैं, बिदकें हुए हैं .इसमें अन्य लोगों के साथ साथ साहित्य के अध्येता एवं लेखक  भी शामिल हैं.
  इसलिए यह आवश्यक हो गया है कि सोशल मीडिया की स्वायत्तता बरकरार रखने के लिए इसका इस्तेमाल करने वाले अपनी भावाभिव्यक्ति को जनहित में आत्मनियंत्रित रखें ताकि सरकारों को इसका दम घोंटने का कोई मौका न मिलने पाए . 

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