बुधवार, 25 सितंबर 2013

अच्छे लोग और खराब लोग

       अच्छे लोगों में बैठो और अच्छी अच्छी बाते करो तो सबके चेहरे ऐसे भावहीन रहते हैं जैसे कोई बात ही न हुई हो .हमेशा ऐसी ठंडी प्रतिक्रिया मिलेगी कि  ये तो होता ही है, सामान्य बात है .कुछ ख़ास कहो. अब ख़ास क्या ख़ाक कहें ? सब कुछ तो तुम पहले से ही जानते हो .
 खराब लोगों में खराब बात करो तो मजा लेंगे और खराब लोगों में अच्छी बात करो तो भी मजा लेंगे, नहीं तो गरियायेंगे तो जरूर चुप हरगिज नहीं रह सकते हैं. इसका मतलब है कि वहाँ आपकी कही बात का कुछ असर होता है तभी प्रतिक्रिया होती है नहीं तो वो भी पत्थर जैसे खामोश रहते.
 यूँ मैं चुप्पे किस्म का आदमी हूँ शौर शराबा,बेमतलब की  बातचीत ज्यादा पसंद नहीं करता हूँ लेकिन ऐसी चुप्पी जिसमें हिकारत का भाव हो कतई नापसंद है. समझदार और अच्छे  लोगों की चुप्पी मुझे हमेशा ऐसी ही लगती है. इनसे अच्छे वो लोग लगते हैं जो तडाक से प्रतिक्रिया देते हैं.अब ऐसे लोग कितने ही खराब क्यूँ न हो लेकिन ऐसे लोगों के होने से अपने होने की सार्थकता का एहसास होता रहता है.इसलिए मुझे कभी कभी थोड़े से खराब लोगों के साथ होने और कभी थोडा सा खुद भी खराब हो जाने का मन करता रहता है. इसे मन की चंचलता ,बुद्धि की अपरिपक्वता या अनुभव हीनता  आप जो चाहें कह सकते हैं. लेकिन मुझे लगता है कि  ये जरुरी है.कुछ नया करने केलिए, कुछ नया सीखने के लिए .जो सिद्ध है वो ठहरा हुआ जल है और जिंदगी बहता हुआ पानी है. बहते हुए पानी में उतरें, तैरें, चाहें डूब ही क्यूँ न जाएँ.ये सड़े हुए पानी में डूबकर मरने से ज्यादा ठीक होगा.बहते हुए पानी में जिंदगी है सड़े हुए पानी में मौत के सिवा कुछ नहीं है.         

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें