गुरुवार, 26 सितंबर 2013

सेकुलर और फेकुलर


कुछ ख़ास किस्म के लोग सेकुलर लोगों से बहुत परेशान रहते हैं .सेकुलर लोगों को बहुत गरियाया गया ,बहुत धकियाया गया, लेकिन बात बनी नहीं. अपने सिर पर संस्कृति के मुकुट और मुख पर राष्ट्रवाद के मुखौटे भी खूब  ओढ़े, लेकिन बात बनी नहीं. सेकुलर लोग कोई बड़ी संगठित शक्ति नहीं हैं और न ही सेकुलर बुद्धिजीवियों में कोई ऐसा एका  है जो कथित सांस्कृतिक राष्ट्वादियों को कोई नुकसान पहुँचा सके, लेकिन ये बुद्धिजीवी फिर भी इनके रास्ते के रोड़े बने ही रहते हैं.जितनी परेशानी इन सेकुलर लोगों से उतनी उन्हें अपने प्रतिद्वंद्वी संगठित गिरोहों  से भी नहीं है.  असल में इस देश का मिजाज ही सदा से सेकुलर है, उसे सेकुलरिज्म का पाठ किसी से सीखना नहीं पड़ता है. जब वक्त आता है वो धर्मान्धता का विरोध करने के लिए एक साथ उठ खड़ा होता है. इसलिए कथित धार्मिक और सांस्कृतिक राष्ट्रवादी परेशान रहते हैं कि इन सेकुलर लोगों से कैसे निपटा जाए. इत्तफाक से उन्हें एक नाम उनके विरोधियों से मिला है फेकू से फेकुलर. अब वो बाकायदा सेकुलर के मुकाबले फेकुलर को खड़ा कर सकते हैं. अब उसका दार्शनिक आधार खड़ा करना और उसे महिमंडित करना तो कोई कठिन काम है नहीं, इसमें तो वे सिद्ध हस्त हैं .जब स्वतंत्रता संग्राम के गद्दारों को देश भक्त और हत्यारों को धर्म योद्धा बताया जा सकता है तो इसमें ही क्या बड़ी बात  है? 

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