शनिवार, 26 अक्तूबर 2013

जोश मलीहाबादी बनाम जावेद अख्तर


जोश के लिखे इस गीत को कुछ लोग पूरा पढ़ना चाहते थे। सन 50 के कुछ साल आगे या पीछे जोश मलीहाबादी ने फिल्म मन की जीत के लिए एक गीत लिखा था, जो इस प्रकार है।

मोरे जोबना का देखो उभार,
पापी, जोबना का देखो उभार ।।

जैसे नदियों की मौज,
जैसे तुर्कों की फौज,
जैसे सुलगे से बम,
जैसे बालक उधम ,
जैसे कोयल पुकार।

जैसे हिरणी कुलेल,
जैसे तूफान मेल,
जैसे भंवरे की गूंज,
जैसे सावन की धूम,
जैसे गाती फुहार।

जैसे सागर पे भोर,
जैसे उड़ता चकोर,
जैसे गेंदा खिले,
जैसे लट्टू हिले,
जैसे गद्दार अनार।

मोरे जोबना का देखो उभार।
पापी, जोबना का देखो उभार।।

इस गीत को लिखने के बाद उस समय जोश की खूब किरकिरी हुई थी। उसके बाद से जोश ने किसी भी फिल्म के लिए गीत नहीं लिखा। लेकिन, इसके ठीक 40-45 साल बाद जावेद अख्तर ने फिल्म 1942-ए लव स्टोरी के वास्ते यह गीत लिखा था।

इक लड़की को देखा तो ऐसा लगा।
इक लड़की को देखा तो ऐसा लगा।।

जैसे खिलता गुलाब,
जैसे शायर का ख्वाब,
जैसे उजली किरण,
जैसे वन में हिरण,
जैसे चांदनी रात,
जैसे नरमी की बात,
जैसे मंदिर में हो...एक जलता दीया।
इक लड़की को देखा तो ऐसा लगा।।

जैसे सुबह का रूप,
जैसे सर्दी की धूप,
जैसे बीणा की तान,
जैसे रंगों की जान,
जैसे बलखाए रेल,
जैसे लहरों का खेल
जैसे खुशबू लिए आई ठंडी हवा…।
इक लड़की को देखा तो ऐसा लगा।।

जैसे नाचता मोर,
जैसे रेशम की डोर,
जैसे परियों के राग,
जैसे चंदन की आग,
जैसे सोलह श्रृंगार,
जैसे रस की फुहार,
जैसे आहिस्ता-आहिस्ता बहता नशा...।
इक लड़की को देखा तो ऐसा लगा।।

तो आप समझ गए होंगे कि बॉलीवुड में कैसे बन जाता है कोई बेहतरीन गाना !
                                       -Abdullah Aqueel Azmi

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