रविवार, 17 नवंबर 2013

भारत रत्न 'सचिन तेंदुलकर'

    

अवसर से वंचित खेल प्रतिभाएं और भारत रत्न पुरस्कार 



        भारत सरकार द्वारा सचिन तेंदुलकर को भारत रत्न का सम्मान  दिए जाने पर सारे देश के क्रिकेट प्रेमियों में ख़ुशी का माहौल है. कुछ और महान खिलाड़ियों को भी भारत रत्न का पुरस्कार पहले ही दे दिया जाना चाहिए था जैसे मेजर ध्यानचन्द, मिल्खा सिंह आदि. यह अवसर ऐसे जायज सवालों के उठाने के साथ साथ यह देखने का भी है कि हमारे आस पास ऐसे कितने बच्चें हैं जिन्हें अवसर मिलता तो वे भी इस ऊंचाई को छू लेते. लेकिन अगर ऐसा नहीं हो सका तो इस के लिए सरकार से लेकर परिवार तक के साथ साथ समाज के वे समर्थ और समृद्ध लोग भी जिम्मेदार हैं जिन्होंने अपने दायित्व को नहीं निभाया. जो लोग बात बे बात युद्ध और द्वेष को देशभक्ति बताकर चिल्लाते रहते हैं उन्हें ये समझना चाहिए कि सच्ची देशभक्ति देश के बेटों को उनकी क्षमता के अनुरूप देश का सुयोग्य नागरिक बनाना है. 
          इस अवसर पर मुझे अपने एक सहपाठी की याद आती है जो एक बेहतरीन एथलीट था. वह कक्षा छह: से आठ तक मेरा सहपाठी रहा. वह बहुत तेज धावक था,कबड्डी, भाला फेंक, गोला फेंक का बढ़िया खिलाड़ी था लेकिन सबसे बढ़िया तो उसकी ऊँची कूद होती थी. गुरुजन सिर्फ उसकी ऊँची कूद देखने के लिए ही उसे बार बार कुदाते थे. मैंने आज तक कोई उसके जैसा ऊँची कूद कूदते नहीं देखा है. बात सिर्फ ये नहीं कि वह बहुत ऊँचा कूदता था, बात यह है कि उसका तरीका बड़ा ही मनोहारी और विस्मयकारी था. वह जब ऊंचाई पर रस्सा पार करता था तो रस्से के ऊपर अपने शरीर को बिल्कुल समान्तर सीधा कर लेता था. ज्यादातर खिलाड़ी अपने पैर सिकोड़े रस्सा पार करते थे या अपने पैरों और सर को आगे करते हुए रस्से को पार करते थे लेकिन वह ऐसे पार करता था जैसे कोई ग्लाइडर उड़ता है या कोई पक्षी आराम से पर फैलाये उड़ता है.
          वो खेलों में जितना अच्छा था पढ़ाई में उतना ही कमजोर था. हाई स्कूल तक गुरुजन उसके खेल को देखते हुए हर परीक्षा में उसे पास करते रहे लेकिन दसवीं कक्षा में बोर्ड के एक्जाम में आकर वह अटक गया. वह अनुत्तीर्ण हुआ और उसे स्कूल छोड़  देना  पड़ा. उसके बाद उसने एक दो बार निजी तौर पर दसवीं का बोर्ड एक्जाम पास करने की कौशिश की, लेकिन वह विफल रहा .
   वह एक छोटे किसान का बेटा था.उसके  गरीब परिवार के लिए यह संभव नहीं था कि वह उसकी प्रतिभा को आगे बढ़ाने के लिए कुछ अतिरिक्त व्यय कर सकते या उसे अपने गांव से दूर किसी बड़े शहर में अच्छे स्कूल में पढ़ा सकते. कुल मिलाकर जैसा बहुत से गरीब प्रतिभाशाली बच्चों के साथ होता है वही उसकी साथ हुआ. वह अपनी पढ़ाई और अपना खेल छोड़कर खेती किसानी में लग गया.आज वो एक छोटा सा किसान है और अपने छोटे से परिवार का भरण पोषण करते हुए अपना जीवन व्यतीत कर रहा है.
क्या वह देश का दूसरा  मिल्खा सिंह नहीं हो सकता था ? वह जरूर   होता और देश का नाम रौशन करता .वह और उसके जैसे दूसरे हजारों बच्चे भारत रत्न हैं लेकिन वो धूल में पड़े हीरे हैं .उन्हें पहचानने और पहचान कर  निखारने  कि जरुरत  है. 
     ये काम सिर्फ सरकारों के भरोसे नहीं छोड़ा जाना चाहिए ये सारे समाज की जिम्मेदारी  है .समाज के अगुवा लोगों की जिम्मेदारी है. हाँ सरकार को यह अवश्य करना चाहिए कि वह ऐसी  व्यवस्था कर दे जिससे स्कूली परीक्षा प्रणाली से विशेष प्रतिभा वाले बच्चों की प्रतिभा का क़त्ल न हो .                        

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