बुधवार, 4 दिसंबर 2013

'क्या कर लोगे' - अमर नदीम


गेहूं,चने,ज्वार मेरे तुम काट ले गये
अब मैनें सपने बोये हैं;- क्या कर लोगे ?
पण्डित जी, पैलाग, चलो बस रस्ता नापो
होरी अब गोदान नहीं, कुछ और करेगा
भेद खुल चुका धरम-करम और पुन्य-पाप का
जो करना है – आज,अभी, इस ठौर करेगा।
लेखपाल जी, मेरे सारे खेत बिक गये
अब बोलो मेरा कैसे नुकसान करोगे?
मुझे खतौनी खसरा कुछ भी नहीं चाहिये
मैं तो अब नंगा हूं; मुझसे क्या ले लोगे?
हवलदार जी मेरा मूंगफली का ठेला
छूट गया है- क्या छीनोगे क्या खाओगे?
सचमुच बहुत तरस आता है तुम लोगों पर
मैं न रहा तो तुम भी भूखे मर जाओगे।
अब मैं चौराहे पर हूं- वो भी कितने दिन!
आज नहीं तो कल रस्ता तय कर ही लूंगा;
और चल पड़ा जब तो रुकने की तो छोड़ो;
ये न समझना पीछे मुड़ कर भी देखूंगा।          
  ------- अमर  नदीम  

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